नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
एक के बाद एक चुनावी हार और हाथों से सरकती सत्ता की डोर ने कांग्रेस को सियासी समझौते के लिए मजबूर कर दिया है| यही वजह है कि जो सियासी दल कभी कांग्रेस के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे आज कांग्रेस अध्यक्ष की ओर से उन्हें मुख्यमंत्री का पद ऑफर किया जा रहा है| आजादी के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस कभी इतनी लाचार नजर नहीं आई| आलम यह है कि कांग्रेस हर हाल में अपनी खोई हुई सियासी जमीन हासिल करना चाहती है| यही वजह है कि वह धुर विरोधी पार्टियों से भी हाथ मिलाने को मजबूर हो गई है|
बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भले ही देश की जनता विकास पुरुष के रूप में स्वीकार करे अथवा ना करे लेकिन कांग्रेस की वर्तमान हालत के लिए निश्चित तौर पर नरेंद्र मोदी की शख्सियत भी उतनी ही जिम्मेदार है जितनी कि विगत कांग्रेस सरकार की नाकामियां|
विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के मौजूदा हालात पर नजर डालें तो सिर्फ 3 राज्यों में ही पार्टी सत्ता में है| पंजाब, पुडुचेरी और मिजोरम में कांग्रेस सत्ता में तो है लेकिन इन 3 राज्यों में लोकसभा सीटों की कुल संख्या लगभग 15 है|
वहीं, 13 राज्यों में कांग्रेस विपक्ष में या दूसरे नंबर की पार्टी है| इनमें गोआ, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, असम, केरल, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, मणिपुर और अरुणाचल शामिल हैं| इन राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या लगभग 176 है| बात अगर उड़ीसा दिल्ली और महाराष्ट्र की करें तो यहां कांग्रेस तीसरे नंबर पर है| खासकर दिल्ली में तो कांग्रेस जैसे ही बाहर नजर आती है| यहां आम आदमी पार्टी के उदय ने कांग्रेस के अंत में अहम भूमिका निभाई| अब यहां कांग्रेस की वापसी फिलहाल दूर की कौड़ी नजर आती है| इन तीन राज्यों में अगर लोकसभा सीटों की बात करें तो आंकड़ा 76 पर पहुंचता है| बंगाल झारखंड तेलंगाना आंध्र प्रदेश यूपी और बिहार में कांग्रेस का और भी बुरा हाल है| यहां कांग्रेस को अस्तित्व बचाना भी मुश्किल पड़ रहा है| पार्टी यहां चौथे नंबर पर कही जा सकती है लेकिन इस नंबर पर वह अकेली नहीं है| उदाहरण के तौर पर बिहार में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी उसे टक्कर दे रही है| इन छह राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या 215 है| वही तमिलनाडु जाते-जाते कांग्रेस एक पायदान और नीचे पहुंचकर पांचवें नंबर पर आ जाती है| जम्मू और कश्मीर में भी कांग्रेस का हाल कुछ ठीक नहीं है| पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और भाजपा के बाद कांग्रेस का नंबर आता है| ऐसे में क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता कांग्रेस की मजबूरी बन गई है|
अगर 2019 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस इन दलों के साथ मिलकर लड़ती है तो उसका अपना वजूद ही दलों में खो कर रह जाएगा और अगर कांग्रेस यह चुनाव इन सियासी दलों के बिना लड़ती है तो भी उसे वजूद बचाना मुश्किल हो जाएगा| कांग्रेस फिलहाल मझधार में है| खोई हुई सियासी जमीन को हासिल करना कांग्रेस के लिए फिलहाल आसान नहीं होगा| ऐसे में अगर तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आता है जैसी अपील चंद्रबाबू नायडू ने कुछ दिन पहले की थी| नायडू ने सभी गैर कांग्रेसी दलों को एकजुट होने का आह्वान किया था| अगर यह सभी गैर कांग्रेसी दल एकजुट हो जाते हैं तो कांग्रेस के लिए अस्तित्व बचाना नामुमकिन हो जाएगा| अगर तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आता है तो वह दिन दूर नहीं होगा जब कांग्रेस इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगी| कांग्रेस भी इस बात से भली भांति वाकिफ है| तीसरे मोर्चे के इसी खतरे को भागते हुए कांग्रेस ने जनता दल एस खुशनसीब सरकार बनाने का न्योता दिया बल्कि मुख्यमंत्री पद भी ऑफर किया| बहरहाल, 2019 के चुनाव के लिए कांग्रेस क्या रणनीति अपनाएगी यह देखना दिलचस्प होगा|