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Maharashtra politics : फकीरों केे दर पर सियासत के ‘शाह’

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
सियासत के सफर पर मतलब के हमसफर कब तक साथ निभाते हैं इसकी बानगी महाराष्ट्र की सियासी जमीन पर देखने को मिल रही है. कल तलक जो बादशाह हुआ करते थे वो आज फकीरों की जमात में शामिल हो चुके हैं. मझधार में छूटे साथियों को अब भी किनारे की तलाश है. शायद भटकते-भटकते उन्हें मंजिल मिल भी जाए लेकिन जो गुमराह हुए वो कहां जाएंगे.
कभी किसी शायर ने क्या खूब कहा था-
घर से निकले थे हौसला करके
लौट आए खुदा-खुदा करके
देवेंद्र फड़नवीस के इस्तीफे के बाद भाजपा की हालत भी कुछ ऐसी ही हो चुकी है. पहले तो वो सुबह-सुबह ही सरकार बना बैठे और जब बहुमत साबित करने की बारी आई तो फ्लोर टेस्ट से पहले ही लिटमस टेस्ट में फेल हो गए और इस्तीफा देकर चलते बने.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद वहां जिस तरह का सियासी खेल देखने को मिला वह इतिहास में पहले कभी नजर नहीं आया. इस पूरे सियासी घटनाक्रम ने भारतीय जनता पार्टी की छवि को पूरी तरह से धूमिल कर दिया है. सत्ता की जोड़-तोड़ में भाजपा अपनी फजीहत आप ही करा बैठी. न सरकारी तोता काम आया और न ही ईडी का डंडा. तिस पर अजित पवार की टूटी हुई बैशाखी सत्ता की राहों पर चंद कदमों का फासला भी तय नहीं कर सकी.
वो कहते हैं न
बर्बाद-ए-गुलिस्तां की खातिर                 जब एक ही उल्लू काफी था
हर शाख पे उल्लू बैठा है
अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा?

भाजपा यह बात नहीं समझ सकी और शिवसेना से मुंह की खाने के बावजूद अजित पवार के सामने झोली फैलाकर खड़ी हो गई. यह बात अगर भाजपा की समझ में आ जाती तो शायद वह अजित पवार जैसे 76000 करोड़ रुपए के घोटाले में फंसे दागी नेता को अपनी शाख पर कभी बैठने ही नहीं देती. लेकिन भाजपा के शाह भी मौके की नजाकत को नहीं समझ सके.
भाजपा ने यहां पर दो गलतियां कीं. पहली दागी नेता को साथ लेकर सुबह सवेरे शपथ ग्रहण करना और दूसरी शरद पवार की पावर को अंडरएस्टीमेट करना. अगर भाजपा ये दोनों गलतियां नहीं करती तो शायद उसका ये हाल नहीं होता. जब तक सीएम और डिप्टी सीएम का शपथ ग्रहण समारोह नहीं हुआ था तब तक भाजपा का सम्मान भी बरकरार था. लेकिन जिस अंदाज में यह शपथ ग्रहण हुआ उसने भाजपा की पूरी लीडरशिप को कठघरे में तो खड़ा कर ही दिया, उसकी फजीहत अलग से करवा दी. भाजपा का कोई भी हमसफर उसके साथ मिलकर सत्ता का फासला तय नहीं कर पाया. पहले शिवसेना ने ठोकर मारी तो बाद में अजित पवार लुटिया डुबो बैठे. भाजपा चाहती तो वह इस फजीहत से बच सकती थी लेकिन कहते हैं न – विनाश काले विपरीत बुद्धि. भाजपा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. न भाजपा के चाणक्य आने वाले संकट को भांप सके और न ही चंद्रगुप्त शत्रुओं की ताकत को पहचान सके.
आपाधापी में हुए शपथ ग्रहण के कार्यक्रम ने भाजपा को बेनकाब कर दिया. इसी बीच 76000 करोड़ रुपये के घोटाले में अजित पवार को मिली क्लीन चिट ने आग में घी का काम किया. अब तक जो फजीहत शिवसेना की हो रही थी वो अब भाजपा की होने लगी. जनता के बीच सीधा सा यह संदेश गया कि भाजपा के लिए भ्रष्टाचार और घोटालेबाज नेता सिर्फ जुमलों तक ही सीमित हैं. जरूरत करने पर वह किसी भी दागी नेता के आगे घुटने टेक सकती है. यकीन नहीं होता कि यह वही पार्टी है जो महज छह माह पहले देशभर में शानदार जीत हासिल करके केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई थी. और आज वह समर्थन में चंद विधायक भी नहीं जुटा सकी. भाजपा की साख और विश्वसनीयता में आई यह गिरावट निश्चित तौर पर मंथन का विषय है. साथ ही उसके नेतृत्व पर भी सवाालिया निशान खड़े करती है. ये हार फड़़नवीस की नहीं बल्कि अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हार है. महाराष्ट्र मेें रातों रात शपथ ग्रहण का जो खेल खेला गया निश्चित तौर पर उसकेे सूत्रधार फड़नवीस तो नहीं ही रहे होंंगे. भाजपा का यह दांव उल्टा पड़ गया. और उसके इस कदम ने शिवसेना के लिए डैमेज कंट्रोल का काम किया. जो एनसीपी और कांग्रेस कल तक शिवसेना को नाच नचाती नजर आ रही थीं, वह तत्काल सरकार गठन के लिए तैयार हो गईं. शिवसेना के उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई. वह 28 नवंबर की शाम को शपथ ग्रहण करेंगे.

इस पूरे प्रकरण ने यह साबित कर दिया है कि सियासत के हमाम में सभी एक जैसे हैं. फिर चाहे वो भाजपा हो, शिवसेना हो, एनसीपी हो या फिर कांग्रेस. शिवसेना के उद्धव ठाकरे 28 नवंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. महाराष्ट्र की यह खिचड़ी सरकार कितनी स्थाई होगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा की इस हार का असर निश्चित तौर पर देश के विभिन्न राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों पर जरूर पड़ेगा.
इस उठापटक के साथ ही लगभग छह साल पहले शुरू हुआ भाजपा की जीत का सफर अब खत्म होता नजर आ रहा है. हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भाजपा की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. झारखंड और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद तस्वीर और साफ हो जायेगी. अगर महाराष्ट्र की तर्ज पर देशभर में विपक्ष एकजुट हो जाए तो निश्चित तौर पर भाजपा को रसातल में जाने से कोई नहीं रोक पाएगा. फिर न अमित शाह की रणनीति काम आएगी और न ही मोदी लहर. अब भी वक्त है कि भाजपा इस वन मैैैन शो को यहीं खत्म कर दे वरना जनता और उसके अपने खुद ही इस शो का पर्दा गिरा देंगे.

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