मान पर सम्मान पर।
विधाओं के नाम पर।
जीवन हो प्रतिकूल पर अनुरूप कैसे जीना है।
पिता हो जो साथ में तो कह दो हिमालय से।
तेरा गुरुर मेरे स्वाभिमान से बौना है।
पिता से सीखा है मैंने
हुनर को तराशना।
जीवन में जितना अंधेरा
उतना मन को थामना,
गिरना सम्भलना यह तो भाग्य का खिलौना है ।
पिता ही जो साथ में तो कह दो हिमालय से।
तेरा गुरुर मेरे स्वाभिमान से बौना है।
लौह पुरुष पटेल सुभाष कहां देखे मैंने।
पर अपने पिता में उनको तपता धूप में देखा मैंने।
जीवन पर्यंत दुख में सदा खुश दिखे,
बेटियों की आगे, कभी बेटा न चुना जिन्होंने
सब कर्म फलों को प्रभु प्रसाद बन के जीमा है।
पिता ही जो साथ में तो कह दो हिमालय से।
तेरा गुरुर मेरे स्वाभिमान से भी बौना है।
डॉ निशा शर्मा, सहायक प्रोफेसर
इनवर्टिस विश्वविद्यालय, बरेली