यूपी

मम्मा और अतुल कपूर ने बढ़ाईं शहर विधायक की मुश्किलें, महेश पांडेय, संजय आनंद और अब्दुल कयूम ने सपा के दावेदारों की उड़ाईं नींदें

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नीरज सिसौदिया, बरेली
वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बरेली की सियासत गर्मा चुकी है. बरेली की कैंट और शहर दोनों ही विधानसभा सीटों पर सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं लेकिन फिलहाल सबसे ज्यादा चर्चाएं शहर विधानसभा सीट के दावेदारों और कद्दावर नेताओं की हो रही हैं.
सबसे पहले बात करते हैं सत्ताधारी पार्टी भाजपा में चल रही सियासी खींचतान की. यहां अबकी बार शहर विधायक डा. अरुण कुमार की टिकट कटने की चर्चाएं जोरों पर हो रही हैं लेकिन फिलहाल इसकी सिर्फ अटकलें लगाई जा रही हैं, पुष्टि नहीं हुई है. इन्हीं अटकलों के बीच दो भाजपाई चेहरों ने शहर विधायक डा. अरुण कुमार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. इनमें पहला नाम है पुराने राजनीतिज्ञ और नगर निगम का एक भी चुनाव न हारने वाले पार्षद और बरेली विकास प्राधिकरण के सदस्य सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा का तो दूसरा नाम पहली बार पार्षद का चुनाव जीतकर उपसभापति की कुर्सी हथियाने वाले पूर्व उपसभापति एवं पार्षद अतुल कपूर का. अब जरा इस बात पर गौर फरमाते हैं कि इन दोनों नेताओं ने शहर विधायक की मुश्किलें किस तरह बढ़ाईं. सबसे पहले बात करते हैं पुराने दिग्गज राजनेता और हरफनमौला सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा की. मम्मा ने इस बार एक नया शिगूफा छेड़ दिया है. मम्मा का कहना है कि भाजपा ने आज तक कभी भी किसी भी सभासद को विधानसभा का टिकट नहीं दिया. क्या पार्षद बनना कोई गुनाह है? क्या चार-चार, पांच-पांच बार से पार्षद का चुनाव जीतते आ रहे लोगों को विधायक बनने का कोई अधिकार नहीं? इस बार मम्मा ने यह मुद्दा लगभग दो-तीन महीना पहले ही उठाया था. मम्मा ने न सिर्फ यह मुद्दा उठाया था बल्कि खुद लखनऊ जाकर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को इस संबंध में एक मांग पत्र भी सौंपा था. दिलचस्प बात यह है कि मम्मा ने खुद शहर विधायक को भी मांग पत्र सौंपा था.

सतीश चंद्र सक्सेना कातिब उर्फ मम्मा

इसके अलावा केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार, महानगर अध्यक्ष केएम अरोड़ा आदि को भी मांग पत्र सौंपा था. मम्मा वैसे तो खुद भी टिकट के मजबूत दावेदार हैं और वह अपनी दावेदारी पार्टी मंच पर कर भी चुके हैं लेकिन वह कहते हैं कि अगर पार्टी उन्हें टिकट नहीं भी देती है तो किसी भी पार्षद को टिकट दिया जाए. अब डा. अरुण कुमार की मुसीबत यह है कि मम्मा की इस मांग के समर्थन में सभी पार्षद एकजुट होने लगे हैं. अगर पार्टी मंच पर सभी पार्षद एकजुट होकर यह मुद्दा उठाते हैं तो शहर विधायक का पत्ता साफ भी हो सकता है.
वहीं, सियासत में आते ही उपसभापति की कुर्सी पर काबिज होने वाले पूर्व उपसभापति अतुल कपूर ने अलग ही दांव खेल दिया है. अतुल कपूर खत्री पंजाबी समाज की आवाज बनकर उभरे हैं. खत्री पंजाबी समाज की बढ़ती वोटर संख्या को देखते हुए उन्होंने इस विधानसभा सीट से समाज के किसी भी नेता को शहर विधानसभा सीट से टिकट देने की मांग उठाई है.

पूर्व उपसभापति अतुल कपूर

अतुल कपूर की मांग इसलिए भी जायज है कि भाजपा ने आज तक इस समाज के नेता को कभी विधानसभा का टिकट ही नहीं दिया. इस बार भाजपा महानगर अध्यक्ष डा. केएम अरोड़ा सहित समाज के कई नेता भी यही चाहते हैं. ऐसे में अगर यह समाज सपा के पाले में चला गया तो शहर विधानसभा सीट भाजपा किसी भी सूरत में नहीं जीत पाएगी क्योंकि मुस्लिम-पंजाबी समीकरण भाजपा के किले को ध्वस्त कर देगा. ऐसे में पार्टी हाईकमान इस ओर ध्यान देता है तो भी शहर विधायक डा. अरुण कुमार का पत्ता साफ हो सकता है.
अब बात करते हैं विपक्षी समाजवादी पार्टी में टिकट को लेकर चल रही सियासी खींचतान की. शहर विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के पास दावेदारों की लंबी कतार है. लगभग दो दर्जन दावेदार टिकट की दौड़ में शामिल हैं लेकिन इनमें कोई कद्दावर हिन्दू चेहरा शामिल नहीं है. महेश पांडेय के रूप में एकमात्र कद्दावर हिन्दू चेहरा शहर विधानसभा सीट पर पार्टी के पास मौजूद तो है मगर वह दावेदारों की कतार में खड़ा ही नहीं है. महेश पांडेय का कहना है कि अगर पार्टी उन्हें टिकट के लायक समझेगी तो वह चुनाव जरूर लड़ेंगे. अगर पार्टी उन्हें टिकट नहीं देगी तो वह पार्टी के प्रत्याशी को चुनाव जिताने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे. महेश पांडेय पुराने और मंझे हुए सियासतदान हैं. वह मुलायम सिंह यादव के साथ उस वक्त से जुड़े हुए हैं जब मुलायम सिंह यादव स्व. चौधरी चरण सिंह की पार्टी के सिपाही हुआ करते थे और समाजवादी पार्टी का गठन भी नहीं हुआ था. लगभग साढ़े चार दशक से मुलायम सिंह यादव की वफादारी का ईनाम भी उन्हें तीन बार लगातार जिला सहकारी संघ की चेयरमैनी के रूप में मिल चुका है. 25 साल तक सपा के जिला महासचिव का पद भी उन्हें इसी वफादारी के ईनाम स्वरूप ही मिला है. महेश पांडेय ब्राह्मण हैं और शहर विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वोटों का आंकड़ा भी पचास हजार के आसपास बताया जा रहा है. कायस्थ, बनिया और खत्री पंजाबी समाज में भी उनकी खासी पैठ है. मुस्लिम वोट बैंक पहले से ही सपा के खाते में है. भाजपा की सत्ता होने के बावजूद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के खिलाफ सजा के आदेश करवाने वाले महेश पांडेय जनता की आवाज विधानसभा में किस मजबूती के साथ उठा सकते हैं इसका अंदाजा खुद ब खुद लगाया जा सकता है.

महेश पांडेय

कुल मिलाकर महेश पांडेय के पास वह सबकुछ है जो सपा उम्मीदवार में होना चाहिए लेकिन वह पार्टी से टिकट मांगना नहीं चाहते. महेश पांडेय की अखिलेश यादव के भरोसेमंद एमएलसी जगजीवन प्रसाद से नजदीकियां और बतौर सियासतदान उनकी खूबियों ने ही समाजवादी पार्टी के दावेदारों की नींदें उड़ा रखी हैं. अगर पार्टी हाईकमान अपने अहम को त्याग कर महेश पांडेय को उम्मीदवार बनाती है तो शहर विधानसभा सीट पर सपा की जीत लगभग सुनिश्चित कही जा सकती है.
वहीं, शहर विधानसभा से मुस्लिम चेहरे की बात करें तो यहां सिर्फ एक ही कद्दावर दावेदार अब्दुल कयूम मुन्ना के तौर पर नजर आ रहा है. मुन्ना चार बार से लगातार पार्षद तो बनते आ ही रहे हैं, वह पूर्व मंत्री अताउर्रहमान और जिला अध्यक्ष अगम मौर्या के करीबी भी बताए जाते हैं. शहर विधानसभा के दबंग सपा नेताओं में शुमार अब्दुल कयूम मुन्ना जनता के हर छोटे बड़े काम के लिए विपक्ष में रहते हुए भी तत्पर रहते हैं. पार्टी के कुछ कार्यक्रमों में जिस तरह से अखिलेश यादव ने खुद मुन्ना को पास बुलाकर उनका मान बढ़ाया उससे पार्टी दावेदारों की नींदें उड़ी हुई हैं. मुन्ना की दावेदारी इसलिए भी ज्यादा मजबूत नजर आती है क्योंकि सपा को मुस्लिम तुष्टिकरण नीति के तहत शहर या कैंट विधानसभा सीट से एक मुस्लिम प्रत्याशी उतारना है. कैंट विधानसभा सीट से सपा के पूर्व महानगर अध्यक्ष व पूर्व डिप्टी मेयर डा. मो. खालिद मजबूत प्रत्याशी हो सकते थे लेकिन अब वह प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं और सपा को अलविदा कह चुके हैं. इनके अलावा इं. अयूब हसन का निधन हो चुका है. जो पठान होने के बावजूद मुस्लिमों की अंसारी बिरादरी को भी साध सकते थे. ऐसे में सपा के पास कैंट सीट पर कोई भी मजबूत मुस्लिम दावेदार नहीं रह गया है. अत: शहर सीट से अब्दुल कयूम मुन्ना को उतारना पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है.

अब्दुल कयूम मुन्ना
डा. मोहम्मद खालिद, पूर्व डिप्टी मेयर

हालांकि मुन्ना का कहना है कि चार बार पार्षद बनने के बाद आगे बढ़ने की इच्छा के चलते उन्होंने टिकट के लिए दावेदारी की है लेकिन पार्टी जिस किसी को भी उम्मीदवार बनाएगी वह उसका पूरा समर्थन करेंगे. उनका मकसद विधायक बनना नहीं, प्रदेश में सपा की सरकार बनाने में योगदान देना है.
सपा के दावेदारों की मुसीबत बढ़ाने वाला तीसरा चेहरा समाजवादी पार्टी के लिए नया तो है मगर बरेली के लिए नया नहीं है. यह चेहरा पंजाबी महासभा के अध्यक्ष संजय आनंद का है. संजय आनंद बरेली में समाजसेवा के क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम बना चुके हैं. सपा जिला अध्यक्ष अगम मौर्या के करीबी संजय आनंद खत्री पंजाबी वोट बैंक का सियासी गणित सपा के लिए साधने में सक्षम हैं.

संजय आनंद

चूंकि भाजपा में खत्री पंजाबी समाज के नेता को टिकट देने की मांग उठने लगी है, ऐसे में संजय आनंद सपा के लिए बेहतर विकल्प हो सकते हैं. संजय आनंद सपा में भले ही नए हों मगर राजनीति में नए नहीं हैं. वह छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते रहे और जब प्रदेश और देश में कांग्रेस की तूती बोला करती थी उस दौर में कांग्रेस में कई अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं.
बहरहाल, सपा की टिकट भले ही किसी को भी मिले मगर इन तीन चेहरों ने पार्टी के अन्य दावेदारों की नींदें जरूर उड़ा दी हैं.

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