इंटरव्यू

कोई भी पार्टी मुसलमानों को टिकट दे या न दे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मुस्लिम आज भी वहीं है जहां 1947 में था, पढ़ें मौलाना शहाबुद्दीन का स्पेशल इंटरव्यू…

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मौलाना शहाबुद्दीन रजवी दरगाह आला हजरत बरेली शरीफ का जाना-पहचाना नाम है. पिछले लगभग ढाई दशक से वह समाजसेवा के क्षेत्र में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. सियासत और धर्म को देखने का उनका नजरिया क्या है? मुस्लिम समाज की बदहाली के लिए वह किसे जिम्मेदार मानते हैं? उनकी नजर में मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन को कैसे दूर किया जा सकता है? विधानसभा चुनाव नजदीक आ चुके हैं. इन चुनावों में मुस्लिम समाज के प्रतिनिधित्व को लेकर उनकी क्या राय है? मौलाना शहाबुद्दीन रजवी का अब तक का समाजसेवा का सफर कैसा रहा? ऐसे कई पहलुओं पर मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…
सवाल : आप मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं और पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : बिस्मिल्लाह-ए-रहमान-ए- रहीम, मेरा नाम मौलाना शहाबुद्दीन रजवी है. हम मूल रूप से बहराइच, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. मैं किसान परिवार से ताल्लुक़ रखता हूं और मेरे पिता किसानी करते थे. आज भी बहराइच में लगभग 80-85 बीघा जमीन है हमारी. मेरा जन्म बहराइच में हुआ और विश्व प्रसिद्ध आला हजरत के आस्ताने शरीफ से मुतस्सिब मेरा गरीब खाना है. यहीं मैंने दारुल उलूम मजहरे इस्लाम से पढ़ाई की. यहीं से मैंने आलिम फाजिल की डिग्री हासिल की.
सवाल : आपका सक्रिय रूप से समाज सेवा के क्षेत्र में कब आना हुआ?
जवाब : वर्ष 1995 में यहां जो जिलाधिकारी हुआ करते थे उनका दरगाह शरीफ पर आना-जाना रहता था तो उन्होंने मुझे समाज सेवा के लिए प्रेरित किया. फिर वह मुझे अपने साथ पूरे जिले के 16 ब्लॉक 6 तहसीलों में लेकर जाने लगे. उसके बाद पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम शुरू हुआ. उस दौरान बहुत सारी गलत-फहमियां थीं लोगों के बीच इस अभियान को लेकर उन गलत-फहमियों को दूर करने के लिए डीएम साहब ने मुझे पूरा अभियान सौंपा. उस दौरान हमने पोलियो उन्मूलन अभियान को लेकर समाज के अंदर खास तौर पर अल्पसंख्यक समाज के अंदर जो गलत-फहमियां फैली हुई थीं उन्हें दूर करने के लिए काम किया. जब पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी तक यह बात पहुंची तो उन्होंने मुझे बुलाया और उत्तराखंड में जिला उधम सिंह नगर और जिला नैनीताल की जिम्मेदारी सौंपी. वहां मैंने पोलियो उन्मूलन अभियान के संबंध में जो गलतफहमियां थीं उन्हें दूर करने का काम किया. इस तरह से मेरा सक्रिय समाज सेवा का सफर शुरू हुआ.
सवाल : समाज सेवा का सफर आगे कैसे बढ़ा और अब तक का सफर कैसा रहा?
जवाब : बड़ी कठिनाइयां आईं, बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन मैंने अपना सफर जारी रखा और वह सफर आज भी जारी है. अभी जब कोरोना वैक्सीन इंडिया में नहीं आई थी और खास तौर पर मैं बरेली की बात कर रहा हूं तो यहां गलत फहमियां फैलने लगीं. मुसलमानों में गलतफहमी थी कि वैक्सीन में सूअर की चर्बी मिलाई गई है और हिंदू समुदाय में यह गलतफहमी थी कि इसमें गाय का खून मिलाया गया है तो यहां के जिलाधिकारी, सीएमओ साहब और डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों ने मुझसे सहयोग की अपील की तो मैंने पब्लिक में जाकर, मीडिया के माध्यम से एवं मस्जिद से अपील जारी करते हुए उन गलतफहमियों को दूर कर लोगों को जागरूक करने का काम किया. जब तक वैक्सीन आई तो तब तक सबकी गलतफहमियां दूर हो चुकी थीं और सब वैक्सीन लगवाने लगे.

इंटरव्यू के दौरान जानकारी देते मौलाना शहाबुद्दीन रजवी

सवाल : आतंकवाद विरोधी अभियान में आपकी क्या भूमिका रही?
जवाब : जब आतंकवाद का हिन्दुस्तान में बहुत ज्यादा जोर हुआ तो मैंने आतंकवाद विरोधी मुहिम चलाई, उस सिलसिले में वर्ष 2015 में सबसे पहले रामलीला ग्राउंड दिल्ली में एक बहुत बड़ी कॉन्फ्रेंस की. उसके बाद 2016 में तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली में और फिर 2017 में तीसरी बार हमने रामलीला मैदान दिल्ली में एक अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस का आयोजन किया. जयपुर, लखनऊ, मुंबई और विभिन्न शहरों में आतंकवाद के विरोध में हमने बड़ी-बड़ी कॉन्फ्रेंस आयोजित कीं और लोगों को खास तौर पर नौजवानों को जागरूक किया. मुल्क विरोधी ताकतों का पूर्ण बहिष्कार करने की अपील की.
सवाल : मुस्लिम समाज आज भी काफी पिछड़ा हुआ है. इन लोगों के उत्थान के लिए आपने कभी कोई प्रयास किया? आपके हिसाब से पिछड़ों का विकास कैसे हो सकता है?
जवाब : देखिए, मुसलमानों में जो पसमंदगी है वह पसमंदगी किसी एक स्तर पर नहीं है. शैक्षिक रूप से, सामाजिक रूप से और आर्थिक रूप से मुसलमान पसमंद है. मुसलमानों में पसमंदगी कोई नई बात नहीं है. किसी भी कम्युनिटी को डेवलप करने की जिम्मेदारी वहां की स्टेट गवर्नमेंट और सेंट्रल गवर्नमेंट की होती है. किसी एक व्यक्ति से पूरा समाज डेवलप नहीं हो सकता. एक-दो परिवार को हम लोग मिलकर डेवलप कर सकते हैं पर सामूहिक रूप से समुदाय को डेवलप करने की, तरक्की देने की जिम्मेदारी सरकारों की है. प्रदेश और देश में अब तक जितनी भी सरकारें रही हैं उनमें मुसलमान हाशिए पर रहा है. कोई खास तरह की ऐसी कोई प्लानिंग सरकारों में नहीं की गई जिससे मुसलमान का सर्वांगीण विकास हो सके. जब मुल्क आजाद हुआ था तो 45 परसेंट मुसलमान सरकारी नौकरियों में थे और आज अगर अनुपात देखें तो आज पौने दो पर्सेंट मुसलमान ही गवर्नमेंट सेक्टर में है. यह पसमंदगी वही लोग लेकर आए जो सरकार चला रहे हैं. यह जिम्मेदारी उन्हीं लोगों की बनती है और यही उसके जिम्मेदार भी हैं. हमने अपने स्तर से कॉलेज खोले, स्कूल खोले, बड़े-बड़े मदरसे खोले. गवर्नमेंट से बिना एक पैसा लिए काम कर रहे हैं. स्कूल चलाते हैं, दरगाह चलाते हैं लेकिन एक पैसा भी सरकार का हम लोग नहीं लेते हैं और न ही गवर्नमेंट में आज तक कभी हमसे पूछा कि आपने बहुत बड़ा बोझ हमारे सिर से उतार रखा है. एक बड़ी कम्युनिटी को आप बड़ी तालीम दे रहे हैं, सरकार को पूछना चाहिए कि आप पैसा लेकर कहां से लेकर आते हैं, कैसे इसे चला रहे हैं? हमारे कॉर्पोरेशन की कहां जरूरत है? कभी नहीं पूछा. सरकारें तो चाहती ही नहीं हैं कि मुसलमान डेवलप हो. वह चाहती है कि मुसलमान पहले से पिछड़ जाए.

नेपाल से आए उलमा दल के साथ मौलाना शहाबुद्दीन रजवी

सवाल : समाजवादी पार्टी भी प्रदेश की सरकार में रही, कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों के लिए काफी काम किए. क्या आपको लगता है कि ऐसा है?
जवाब : देखिए मैं किसी एक पॉलिटिकल पार्टी की बात नहीं करता, मैं सभी पार्टियों की बात करता हूं. अब तक जो भी सरकारें यूपी में आईं, चाहे वह सपा की हो, भाजपा की हो, चाहे बसपा की हो, मुसलमानों के लिए कोई भी एक काम कायदे का नहीं किया गया. तालीमी पसंदगी पहले से थी, पिछड़ापन पहले से था और आज भी पिछड़ापन है. और ये जो कुछ लोग डेवलप हुए हैं वह भी अपनी मेहनत से अपने कारोबार से हुए हैं गवर्नमेंट का इसमें कोई योगदान नहीं है.
सवाल : क्या चाहते हैं आप? किस तरह की सरकार को सुविधाएं देनी चाहिए मुस्लिमों के लिए?
जवाब : सरकार को चाहिए कि हर कम्युनिटी के डेवलपमेंट के लिए खुसूसी प्लानिंग करे और प्लानिंग के बाद उनको अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश की जाए.
सवाल : आरक्षण दे तो रही है सरकार?
जवाब : हम तो चाहते हैं कि मुसलमानों को रिजर्वेशन दिया जाए आर्थिक आधार पर. मुसलमान सबसे पिछड़ा तबका है. आपको याद होगा जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने सच्चर कमेटी बनाई थी और इस समिति ने एक सर्वे किया था. उनके पॉलिटिकल एडवाइजर हुआ करते थे डॉक्टर जफर महमूद. डॉ. जफर महमूद को उन्होंने सेक्रेटरी बनाया था और वह हर स्टेट में जा- जा कर सर्वे कर रहे थे. सच्चर कमेटी ने जब वजीरे आजम को अपनी रिपोर्ट दी तो उसमें साफ-साफ लिखा था कि मुसलमानों की हालत दलितों से भी ज्यादा बुरी है. जब सरकार सब देख रही है, समझ रही है तो फिर आंख बंद करके क्यों बैठी हुई है? कोई ऐसा मंसूबा बनाए जिससे मुसलमान की तरक्की हो. जब एक बहुत बड़ी हिंदुस्तान की कम्युनिटी डेवलप होगी तो हमारा हिंदुस्तान भी डेवलप होगा.
सवाल : आज तालिबान में जो कुछ हो रहा है उसको आप किस नजरिए से देखते हैं?
जवाब : तालिबान एक आतंकवादी संगठन है जिस कारण पर भरोसा नहीं किया जा सकता. वे कट्टरपंथी विचारधारा को मानने वाले लोग हैं जो सरगर्मियां हैं वह इस्लाम के खिलाफ हैं. इस्लाम यह नहीं कहता किसी के साथ जुल्म और ज्यादती की जाए. इस्लाम यह कहता है कि हर किसी के साथ इंसाफ किया जाए, उसकी मदद की जाए. फिर चाहे वह हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो या इसाई हो तो इस्लाम सबके साथ रवादारी चाहता है. अब यह शरीयत की आड़ में तालिबान अफगानिस्तान में नंगा नाच कर रहा है अभी फिलहाल पूरी दुनिया इसके खिलाफ एकजुट है और कोई भी समर्थन नहीं कर रहा. तालिबान ने अब अफगानिस्तान पर कंट्रोल हासिल कर लिया है तो तालिबान को चाहिए कि अफगानिस्तान पर हिंदुस्तान के बहुत सारे एहसानात हैं. 22000 करोड़ रुपए भारत ने इन्वेस्ट किया है अफगानिस्तान के डेवलपमेंट में. वहां जो भी विकास दिख रहा है वह हमारे हिन्दुस्तान की ही देन है. वहां की जितनी भी सरकारें रही हैं वे हिंदुस्तान के एहसान तले दबे हुए हैं. इसलिए तालिबान को चाहिए कि वह अफगानिस्तान की सरजमीन को हिंदुस्तान के खिलाफ इस्तेमाल न होने दे. चीन और पाकिस्तान जैसे देश जरूर अफगानिस्तान की सरजमीन को भारत के लिए इस्तेमाल करना चाहेंगे लेकिन तालिबान को उनका साथ नहीं देना चाहिए.
सवाल : बरेली शहर को आपने बहुत करीब से देखा है और बचपन से देखा है, इसके विकास को आप किस नजरिए से देखते हैं? क्या आप विकास की रफ्तार से संतुष्ट हैं?
जवाब : यह सच है कि विकास की रफ्तार उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए थी लेकिन फिलहाल बरेली नगर निगम के मेयर डॉ. उमेश गौतम काफी कोशिश में हैं बरेली के डेवलपमेंट के लिए. फ्लाईओवर बन रहे हैं, कुछ प्रोजेक्ट का काम अभी भी चल रहा है. कुछ और आने वाला है और एक जरी आर्ट का बहुत बड़ा ₹2000 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट का काम शुरू होने जा रहा है. दलितों के भी काम हो रहे हैं. नाले का भी काम हो रहा है तो फिलहाल इस वक्त काम की रफ्तार शुरू हुई है और मैं यही उम्मीद करता हूं कि यह काम तकरीर तक पहुंचे.


सवाल : विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व देने को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. ऐसे में बरेली के लोगों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे? वोट किस आधार पर करना चाहिए?
जवाब : देखिए एक व्यक्ति के डेवलप हो जाने से पूरा समाज डेवलप नहीं होता. एक आदमी विधायक बन जाए तो ऐसा नहीं है कि जिस कम्युनिटी से वह ताल्लुक रखता है तो वह पूरा समाज विकसित हो जाएगा. हां एक आदमी हो सकता है. मुस्लिम आज भी वहीं खड़ा है जहां 1947 में खड़ा था. कोई भी पार्टी मुसलमान को टिकट दे या न दे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
उत्तर प्रदेश में जो चुनाव होता है उसका रुख हमेशा हिंदू-मुस्लिम हो जाता है, यह राजनीतिक लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि वे हमेशा काम की बात करें. वह काम करें जिससे हमारा समाज एकजुट हो और हिंदू-मुसलमानों में जो मोहब्बत और प्यार कायम है वह बरकरार रहे, हमारी जो दरगाहें हैं, खानकाहे हैं वहां से हमेशा प्यार, मोहब्बत, भाईचारगी का पैगाम दिया गया है, कभी भी हम लोग तोड़ने की बात नहीं करते, हम हमेशा दिलों को जोड़ने की बात करते हैं और यही हमारे मुल्क की तहजीब है, यही हमारा कल्चर है.

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