विचार

प्रमोद पारवाला की कविताएं : “हिंदी दिवस’

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एक ही अर्थ है दोनों के ही ,
बिंदी , हिंदी भाषा के,
एक सजती माथे जन-जन के,
दूजी भारत-माता के।

मन की अभिव्यक्ति की भी तो ,
यह ही माध्यम बनती है,
प्रेम,स्नेह,श्रद्धा शब्दों में,
यह ही व्यंजित करती है।

कितनी समृद्ध,स्नेहमयी सी,
यही पुरातन भाषा है,
भावों की कर सरल व्यंजना,
जन-मन भरती आशा है।

भावों, की अतिरंजकता के,
व्यंजित इसमें विकल्प है,
इसको जाने बिना हमारा ,
ज्ञान,मान ,विज्ञान अल्प है।

भाषा भावप्रबोधिनी है यह,
मानस में वस जाती है,
अपने सुन्दर शब्दों से यह,
भावों को महकाती है।

मानव के मुख से झरती तो,
शोभा यही बढ़ाती हे,
संस्कारों से बंधी हुई ,
सभ्यता ही सिखलाती है।

नवरस और अलंकारों से,
सजी हुई है वेशभूषा ,
छंदोबद्ध मधुरिमा सी यह,
भरती जीवन में आशा ।

परिलक्षित होती है इसमें,
माँ के ही जैसी स्निग्धता,
अन्तस में वसती है इसकी,
फूलों जैसी मादकता।

नित नयी रचना रचते,गढ़ते,
नये रूप की परिभाषा
कवियों को लक्षित जिसके,
उत्थान जतन की अभिलाषा।

व्यक्त करती जन मन में वसे,
भावों को उद्गारों को,
प्रवासी भी सीख के इसको ,
करते मृदु व्यवहारों को।

लेखिका – प्रमोद पारवाला
बरेली उत्तर प्रदेश ।

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