नीरज सिसौदिया, लखनऊ
गणतंत्र दिवस पर सरकार की ओर से सौ से भी अधिक लोगों को पद्म पुरस्कार देने का ऐलान किया गया। सात हस्तियां ऐसी हैं जिन्हें मरणोपरांत यह सम्मान प्रदान किया जा रहा है। इनमें से एक समाजवादी पार्टी के संस्थापक और यूपी के भूतपूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी हैं। जहां सभी पुरस्कार विजेताओं ने इस सम्मान के लिए सरकार का आभार जताया है वहीं, कुछ समाजवादी स्व. मुलायम सिंह को पद्म विभूषण सम्मान देना उनके साथ मजाक करना बता रहे हैं। उनका मानना है कि मुलायम सिंह यादव को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। खुद मुलायम सिंह यादव की पुत्रवधु डिंपल यादव ने भी मुलायम सिंह को भारत रत्न देने की मांग की है। वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि केंद्र सरकार ने पद्म विभूषण देने का ऐलान करके मुलायम सिंह का मजाक उड़ाया है। इसके बाद एक नई बहस छिड़ गई है कि क्या वाकई में मुलायम सिंह का अपमान किया गया है? क्या वाकई मुलायम सिंह यादव भारत रत्न के हकदार हैं। अगर हैं तो क्या उन्हें भारत रत्न दिलाने के लिए पद्म विभूषण जैसे नागरिक सम्मान को मजाक कहा जाना सही है? क्या नेताजी का व्यक्तित्व किसी सम्मान के मोहताज हैं? उन्हें भारत रत्न दिलाने की मांग को राजनीतिक रंग देना कितना सही है, क्या इस तरह की बयानबाजी नेताजी को वास्तव में भारत रत्न दिला सकती है?
ऐसे में जरूरी हो जाता है मुलायम सिंह यादव के कृतित्व और व्यक्तित्व के बारे में विस्तार से जानना। मुलायम सिंह का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा था। एक सामान्य किसान परिवार में गुलाम भारत में जन्मे मुलायम सिंह ने जो मुकाम हासिल किया वह अपने दम पर हासिल किया था। उनकी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव आए लेकिन अपनी राजनीतिक कुशलता से वह हमेशा विरोधियों को मात देने में सफल रहे। उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की आवाज बुलंद करने और उन्हें एक विशेष सम्मान दिलाने में मुलायम सिंह यादव की जो भूमिका रही वह निश्चित तौर पर सराहनीय है। मुलायम सिंह जमीन से जुड़े नेता थे इसलिए उन्हें धरती पुत्र भी कहा जाता है।
हालांकि यूपी के सियासी गलियारे में उन्हें नेताजी के नाम से ज्यादा जाना जाता है। वह तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे और केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री भी रहे। यूपी के पिछड़ों को एकजुट करना और उन्हें अपनी ताकत का अहसास कराने में सही मायनों में अगर किसी का योगदान रहा तो वह मुलायम सिंह ही थे। लेकिन मुलायम सिंह की सियासत सिर्फ पिछड़ों तक ही सिमटकर रह गई। उनके कार्यकाल में जितने पिछड़ों को नौकरी मिली उतनी शायद ही यूपी के किसी और सीएम के कार्यकाल में मिली होगी। लेकिन उनके कार्यकाल में दलितों और सवर्णों ने जितना खुद को उपेक्षित महसूस किया उतना भी शायद ही किसी और सीएम के कार्यकाल में किया होगा। मुलायम सिंह का मुस्लिम प्रेम किसी से छिपा नहीं था। उनकी सेना में वैसे तो हर जाति धर्म के लोग थे लेकिन उनकी सियासत के केंद्र में हमेशा पिछड़े ही रहे। उन्होंने अपनी पार्टी को समाजवादी पार्टी का नाम तो दे दिया लेकिन उनके समाजवाद की परिभाषा पिछड़ों के विकास तक ही सीमित रही। शायद यही वजह रही कि जब तक समाजवादी पार्टी की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथों में रही तब तक यूपी के लगभग हर जिले में सपा जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष की कुर्सी या तो यादवों के हाथों में रही या फिर मुसलमानों के हाथों में। अगर पिछड़ों के उत्थान के लिए मुलायम सिंह यादव के कार्यों को देखा जाए तो निश्चित तौर पर वह देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न पाने के हकदार हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यह नहीं है कि नेाजी को भारत रत्न मिलना चाहिए या नहीं, सवाल यह है कि क्या पद्मविभूषण जैसे नागरिक सम्मान से नवाजा जाना किसी के साथ मजाक की श्रेणी में आता है। पद्म पुरस्कार हमारे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक हैं। ऐसे में इस सम्मान को मजाक करार देने से पहले हमारे सियासतदानों को यह जरूर सोचना चाहिए कि इस तरह की से वह पूरे देश का और उन कर्मठ जीवट लोगों का खुद मजाक बना रहे हैं जिन्होंने वर्षों की तपस्या के बाद इस सम्मान को हासिल किया गया है। मुलायम सिंह यादव के प्रति अपने प्रेम काे दर्शाने का मतलब यह कदापि नहीं होना चाहिए कि आप देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले सैकड़ों लोगों का अपमान करें। उन्हें मुलायम सिंह यादव के लिए भारत रत्न की मांग जरूर करनी चाहिए लेकिन उन्हें दिए गए पद्म विभूषण सम्मान का अपमान करके नहीं। उन्हें तो गौरवान्वित होना चाहिए कि नेताजी ने अपनी जीवन में ऐसे कार्य किए कि आज विरोधी भी उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित करने पर मजबूर हो गए। उन्हें नेताजी के कार्यों के जन-जन तक पहुंचाना चहिए ताकि उन्हें भारत रत्न देने की मांग और मजबूती हासिल कर सके और यही सरकार उन्हें भारत रत्न देने को भी मजबूर हो जाए। इसे राजनीतिक मुद्दा बिल्कुल नहीं बनाया जाना चाहिए। ऐसे सियासतदानों को यह समझना होगा कि इस तरह की बयानबाजी से तो नेताजी को भारत रत्न कतई नहीं मिलने वाला। ऐसी बयानबाजी से वे खुद ही नेताजी को अपमानित कर रहे हैं। सबसे अहम बात यह है कि अगर वे मानते हैं कि नेताजी ने अपने जीवन में ऐसे कार्य किए हैं कि उन्हें भारत रत्न से नवाजा जाना चाहिए तो उन्हें बिल्कुल भी नेताजी के लिए भारत रत्न की मांग नहीं करनी चाहिए क्योंकि सच्ची सेवा किसी सम्मान की मोहताज नहीं होती है। नेताजी का सबसे बड़ा सम्मान तो वो था जब उनके जनाजे के पीछे लाखों की भीड़ चल रही थी। उनका अंतिम संस्कार सैफई में हो रहा था लेकिन उनकी मौत का मातम यूपी के हर गांव में मनाया जा रहा था। मुझे नहीं लगता कि इससे बड़ा सम्मान कुछ और हो सकता है। नेताजी के बारे में उनकी अंतिम यात्रा पर कुछ लोग बस इतना ही कहते सुनाई दे रहे थे-
किसी को हो न सका उसके कद का अंदाजा
वो आसमां था मगर सर झुका के चलता था।