इंटरव्यू

पार्षद का चुनाव जीत चुके हैं चार बार, अब विधानसभा के हैं प्रबल दावेदार, क्या होंगे मुद्दे और कैसे मिलेगी जीत, पढ़ें सपा नेता और पार्षद अब्दुल कयूम मुन्ना का स्पेशल इंटरव्यू

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बरेली की सियासत में अब्दुल कयूम मुन्ना का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं. उनकी गिनती समाजवादी पार्टी के उन चुनिंदा पार्षदों में होती है जो कभी भी नगर निगम का चुनाव नहीं हारे. मुन्ना इन दिनों शहर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट की दावेदारी को लेकर चर्चा में हैं. शहर विधानसभा सीट से आज तक सपा ने कोई मुस्लिम चेहरा नहीं उतारा. ऐसे में क्या इस बार मुस्लिम पर दांव खेला जाना चाहिए? वह कौन से स्थानीय मुद्दे हैं जिन पर अब्दुल कयूम मुन्ना विधानसभा चुनाव में सत्ता धारी पार्टी को घेरने की तैयारी कर रहे हैं. वर्तमान सरकार और वर्तमान शहर विधायक डा. अरुण कुमार के कार्यकाल को वह किस नजरिये से देखते हैं? प्रदेश में इस बार सपा की सरकार क्यों बननी चाहिए? ऐसे ही विभिन्न मुद्दों और निजी जिंदगी को लेकर सपा पार्षद और वरिष्ठ नेता अब्दुल कयूम मुन्ना ने इंडिया टाइम 24 के संपादक नीरज सिसौदिया के साथ खुलकर बात की. पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश…

सवाल : आप का बचपन कहां बीता? पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या रही?
जवाब : मेरे पिता मूल रूप से आंवला के रहने वाले थे लेकिन मेरा जन्म बरेली के विरामपुरा में हुआ था. मेरा बचपन भी इन्हीं गलियों में बीता है. इस्लामिया इंटर कॉलेज से मैंने 12वीं तक पढ़ाई की. इसके बाद पिता के साथ कारोबार में हाथ बंटाने लगा. मेरे पिता सिंचाई विभाग में ठेकेदारी का काम करते थे. उसी से हमारे परिवार का भरण पोषण होता था. मेरी कोई भी पारिवारिक राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही.
सवाल : आपका राजनीति में आना कब हुआ और पहली बार पार्षद कब चुने गए?
जवाब : वर्ष 1992 में जब समाजवादी पार्टी का गठन हुआ तो मैं समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया था. उससे पहले राजनीति से मेरा कोई वास्ता नहीं था. पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की नीतियों ने मुझे काफी प्रभावित किया जिसकी वजह से मैं समाजवादी पार्टी का हिस्सा बना और आज तक समाजवादी पार्टी से ही जुड़ा हुआ हूं. पहली बार मैंने पार्षद का चुनाव वर्ष 2000 में लड़ा था. उस वक्त समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर ही मैं चुनावी मैदान में उतरा और जीत हासिल की. पहली बार में ही चुनाव जीतने का उत्साह कुछ अलग ही होता है. मैं भी पहली बार चुनाव जीतकर काफी उत्साहित था और लगातार जनता के लिए काम करता गया. यही वजह रही कि मुझे कभी भी वार्ड 69 शाहबाद से हार का सामना नहीं करना पड़ा. इस बार मैं चौथी बार नगर निगम के सदन में बतौर पार्षद पहुंचा हूं.
सवाल : क्या कभी पार्टी में भी आप किसी महत्वपूर्ण पद पर भी काबिज रहे हैं?
जवाब : जी हां, मुझे पार्टी में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं. मैं अल्पसंख्यक सभा का जिला अध्यक्ष भी रहा हूं. कदीर अहमद साहब के महानगर अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान मैं उनकी कार्यकारिणी का तीन बार लगातार सदस्य भी रहा और आज भी बतौर कार्यकर्ता पार्टी की सेवा कर रहा हूं.
सवाल : आप लगभग 30 साल से पार्टी की सेवा कर रहे हैं. 4 बार से लगातार पार्षद का चुनाव भी जीतते आ रहे हैं, कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं होने के बावजूद आप इस मुकाम पर हैं. कितना आसान या कितना मुश्किल था इस मुकाम को हासिल करना?
जवाब : देखिए मुश्किलात तो बहुत आए लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी. उतार चढ़ाव आते रहे. विरोधियों ने मुझ पर फर्जी मुकदमे तक दर्ज कराए लेकिन क्योंकि मैं अपनी जगह सही था इसलिए अपनी लड़ाई लड़ता रहा और आगे बढ़ता रहा. वैसे भी अगर मुश्किलें नहीं आएंगी तो आदमी कुछ सीख नहीं पाएगा. मुश्किलें हमें बहुत कुछ सिखाती हैं और एक सबक भी देकर जाती हैं. मैंने जो भी सीखा इन्हीं मुश्किल से सीखा. वह कहते हैं न ‘गम के सांचे में ढलने से पहले जिंदगी जिंदगी नहीं होती’ तो मुश्किलात आते हैं और आने भी चाहिए. तभी एक इंसान मजबूत होता है और आगे बढ़ने के लायक भी उसे मुश्किलें ही बनाती हैं.

जानकारी देते वरिष्ठ सपा नेता अब्दुल कयूम मुन्ना.

सवाल : इस बार आपने शहर विधानसभा सीट से पार्टी के टिकट के लिए दावेदारी की है. यह सीट कायस्थ बाहुल्य सीट है. क्या आपको लगता है कि इस सीट से मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारना चाहिए?
जवाब : देखिए मैं पार्टी से वर्ष 1992 से जुड़ा हूं. 4 बार से लगातार सभासद भी बनता आ रहा हूं. जिस तरह हर राजनीतिक आदमी को एक आशा होती है कि अब अगली सीढ़ी की ओर बढ़ा जाए तो इसी नाते मैंने पार्टी में विधानसभा के टिकट के लिए आवेदन किया है, मांग की है कि हमें भी टिकट दिया जाए. अब यह फैसला पार्टी को करना है कि वह हमें मैदान में उतारती है या किसी और को. जो भी पार्टी का फैसला होगा वह सर आंखों पर होगा. पार्टी किसी गैर मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारती है तो हम पूरे तन मन धन से उसे चुनाव लड़ाएंगे या पार्टी किसी और मुस्लिम दावेदार को टिकट देती है तो हम उसे भी पूरे तन मन धन से चुनाव लड़एंगे. हमारा मकसद पार्टी की सरकार बनाना है टिकट हासिल करना नहीं. हमें आपसी लड़ाई में उलझ कर पार्टी को कमजोर नहीं बनाना है बल्कि साथ रहना है और अखिलेश यादव जी को मुख्यमंत्री बनाना है.
सवाल : आपको ऐसा क्यों लगता है कि जनता को इस बार समाजवादी पार्टी को वोट देना चाहिए और भाजपा को नहीं देना चाहिए?
जवाब : जब वर्ष 2012 में हमारी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव लड़े थे तो उससे पहले वह किसी भी पद पर नहीं थे. इसके बावजूद मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने 5 साल के कार्यकाल में जिस तेजी से विकास करके दिखाया, नए-नए काम करके दिखाए वह सराहनीय है. बरेली में जो 300 बेड अस्पताल बना है अगर यह अखिलेश जी की देन नहीं होता तो हालात बहुत बदतर होते. उन्होंने न जाने कितने ओवरब्रिज बनवा दिए जिनमें बरेली के ओवर ब्रिज भी शामिल हैं. इतने विकास कार्य किए हैं कि भाजपा अभी तक उनके विकास कार्य ही पूरे नहीं करा पाई है. दूसरी बात यह कि यह सरकार तो गरीबों की है ही नहीं. गरीबों की जो जो योजनाएं थीं उन पर ग्रहण लग चुका है. कन्या विद्या धन, समाजवादी पेंशन योजना, बेटियों की शादी की योजना, लैपटॉप देना, जो लड़कियां हाईस्कूल और इंटर में पढ़ती थीं उनको सहायता राशि दी जाती थी, वह सारी योजनाएं आज इस सरकार ने बंद कर दी हैं. समाजवादी पेंशन योजना से तो गरीबों को बहुत लाभ था लेकिन आज बुरी हालत है.
सवाल : आपने शहर विधानसभा सीट से टिकट के लिए दावेदारी की है. वर्तमान विधायक के कार्यकाल को आप कितना सफल मानते हैं और आपकी नजर में शहर विधानसभा क्षेत्र का प्रमुख स्थानीय मुद्दा क्या है?
जवाब : वर्तमान शहर विधायक डॉ अरुण कुमार का व्यवहार, काम करने का तरीका किसी से छुपा नहीं है. उनका यह तरीका तारीफ के काबिल है लेकिन सवाल यह उठता है कि उन्होंने शहर की जनता को क्या दिया? सरकार में रहते हुए कोई बड़ी योजना शहर के लिए लेकर आते, फैक्ट्रियां लगाते, इंडस्ट्रियल एरिया डेवलप कराते, व्यापार को बढ़ावा देते, जब फैक्ट्रियां आतीं तो कारोबार बढ़ता और कारोबार बढ़ता तो रोजगार बढ़ता, रोजगार बढ़ता तो बेरोजगारी दूर होती लेकिन डॉ अरुण कुमार ऐसा कुछ भी नहीं करा पाए. यह विधायक और सरकार का फेलियर है. वर्ष 1983 से यहां बीजेपी के नेता ही विधायक बनते आ रहे हैं लेकिन शहर में एक भी काम बता दीजिए जो यह कहा जा सके कि बीजेपी ने कराया है या बीजेपी की बहुत बड़ी उपलब्धि है और उससे शहर के विकास में चार चांद लग गए हैं. सारी सड़कें टूटी हुई हैं, सीवर युक्त पानी की सप्लाई हो रही है, हमारा क्षेत्र भी इससे प्रभावित है. आर्य समाज मंदिर की मैंने कंप्लेन भी की है लेकिन कंप्लेन जितनी कर दें कोई फर्क नहीं पड़ता, जमीनी स्तर पर काम नहीं हो रहा है. विकास की दौड़ में हमारा विधानसभा क्षेत्र पिछड़ता जा रहा है.
सवाल : शहर विधानसभा हलके के वह कौन से इलाके हैं जिन्हें आप पिछड़ा मानते हैं.
जवाब : लगभग 80% इलाके नारकीय स्थिति में हैं. किला की तरफ जाइये, खन्नू मोहल्ला, जखीरा, बजरिया संदल खां, किला पुल पार करके परसाखेड़ा तक जो गांव नगर निगम से जुड़े उन्हें देखकर आज तक नहीं लगता कि ये नगर निगम में आते होंगे. इज्जत नगर बेल्ट में चले जाइए, फरीदापुर, परतापुर रहपुरा, करमपुर चौधरी, परतापुर सहाय, जीवन सहाय में देख लीजिए कैसी नारकीय स्थिति बनी हुई है?
सवाल : अगर पार्टी आपको मौका देती है तो आप किन मुद्दों पर चुनाव लड़ना चाहेंगे, आपका विकास का विजन क्या होगा?
सवाल : हमारी कोशिश यही रहेगी कि हम कुछ नया करके दिखाएं. जिन बातों के लिए इतने वक्त से जनता आस लगाए बैठी है उन उम्मीदों को पूरा करें. शहर विधायक का कद पार्षद से बहुत ऊंचा होता है. अगर उसकी पार्टी सत्ता में है तो वह अपनी जनता के लिए चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है. हम लोगों को रोजगार से जोड़ेंगे, सड़क की, सीवर युक्त पानी की समस्याओं का हल करना वैसे तो नगर निगम की जिम्मेदारी है क्योंकि हम चार बार से लगातार पार्षद बनते आ रहे हैं और नगर निगम की समस्याओं को समझते आ रहे हैं हमारे पार्षद साथी भी हमें अवगत कराते रहते हैं इसलिए अनुभव भी हम प्रयोग करेंगे व जनता को इन समस्याओं से भी निजात दिलाएंगे. जो रोजगार पिछ्ड़ता जा रहा है उसे बढ़ावा देने की जरूरत है. हम उस दिशा में प्रयास करेंगे. युवाओं को रोजगार दिलाएंगे और बरेली शहर के लिए ऐतिहासिक योजनाएं भी लेकर आएंगे ताकि युगो युगो तक समाजवादी पार्टी को जनता याद कर सके.
सवाल : क्या आपको लगता है कि इस बार का चुनाव भी हिंदुत्व के मुद्दे पर या हिंदू मुस्लिम के आधार पर लड़ा जाएगा?
जवाब : देखिए, मैं मानता हूं कि मुस्लिम या गैर मुस्लिम की बात नहीं है. नफरत की राजनीति ज्यादा दिन नहीं चलती है, बहुत जल्द ही इसका भी दिएंड हो जाएगा. बहुत लड़ा लिया हिंदू-मुसलमान करके, कब तक बेवकूफ बनाएंगे जनता को? जनता बार-बार बेवकूफ बनने वाली नहीं है. वह अब सब कुछ समझ चुकी है. जनता त्राहि-त्राहि कर रही है इसलिए परिवर्तन लाजमी है और इस बार समाजवादी पार्टी की सरकार बन रही है. सबकी नजरें अखिलेश यादव पर हैं और इस बार अखिलेश यादव ही मुख्यमंत्री बनेंगे.

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