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प्रभात झा: लोकसंग्रह और संघर्ष से बनी शख्सियत

प्रो.संजय द्विवेदी यह नवें दशक के बेहद चमकीले दिन थे। उदारीकरण और भूमंडलीकरण जिंदगी में प्रवेश कर रहे थे। दुनिया और राजनीति तेजी से बदल रहे थी। उन्हीं दिनों मैं छात्र आंदोलनों से होते हुए दुनिया बदलने की तलब से भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई करने आया था। एक दिन श्री प्रभात झा जी अचानक […]

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दमदार है राहुल का नया अवतार

आनंद सिंह भाजपा ने जिस शिद्दत के साथ राहुल गांधी को पप्पू की छवि में कैद कर रखा था, राहुल ने उसे फाड़ कर रख दिया है. नये अवतार वाले राहुल गांधी को देखना सुखद है. वह मोदी के सामने ही कहते हैं कि मोदी जी का जन्म नहीं हुआ, उनका अवतार हुआ है. वह […]

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जमीन लाल है और सरकार का मुंह काला

सुधीर राघव हाथरस के फुलवईपुर गांव में जहां भगदड़ मची वहां की जमीन अभी लाल है और सरकार का मुंह काला। चालीस मुल्कों की पुलिस डॉन को नहीं ढूंढ सकी थी? यूपी पुलिस की चालीस टीमें बाबा को ढूंढ रही हैं मगर यह लेख लिखे जाने तक ढूंढ नहीं पाई हैं। मोबाइल लोकेशन के आधार […]

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व्यंग्य : हार के आगे प्यार है…

सुधीर राघव बीवी को प्यार से डर लगता है, झगड़े से नहीं! अगर आप चाहते हैं कि आपकी बीवी आपसे डरे तो ताबड़तोड़ प्यार करते रहो! गलती से भी झगड़े का ट्रेक पकड़ा तो आपका बैंड बजना तय है. वह पृथ्वीराज नहीं है कि इक्कीस बार जीतने के बाद बाइसवीं बार हार जाए. बाइसवीं बार […]

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व्यंग्य : अबकी बार, नदिया पार

सुधीर राघव नेता नाव में है. और नाव पानी में. नेता अकेला नहीं है. उसने पूरी पार्टी को नाव में भर लिया है. नेता लालची है. इसलिए उसने दूसरी पार्टियों के लोगों को भी अपनी नाव में लाद लिया है. ज्यादातर को तो बाकायदा गुंडे भेजकर उठवाया है और तब अपनी नाव में लादा है. […]

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क्योंकि भैंस भी कभी गाय थी…

सुधीर राघव बहुत से लोगों को लगता है कि भैंस भी कभी गाय रही होगी! उसकी कमर भी बाइस- चौबीस रही होगी! उसका रंग भी साफ रहा होगा! भैंसों की भी कभी जॉलाइन दिखती होगी! मगर ऐसा नहीं है. भैंस भी कभी गाय थी, यह भ्रम बस उनको होता है, जिन्होंने चार्ल्स डार्विन के क्रम […]

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व्यंग्य : सच की मर्दाना कमजोरी

सुधीर राघव झूठ की महिमा न्यारी है. झूठ से दुनिया चल रही है. विद्वानों ने जगत को मिथ्या कहा है. उपनिषद कहते हैं कि असत्य पांच भौतिक तत्वों से बना है, जबकि जगत का सत्य नेति नेति अर्थात न इति न इति मायने कुछ भी नहीं है। जगत झूठा और नेति नेति ही परम सत्य […]

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व्यंग्य : नफ़रत के बीज और वोटों की बारिश

सुधीर राघव अंग्रेजी में जिसे यूनियन बोलते हैं, हिंदी में उसे संघ कहते हैं. इस तरह हर यूनियनिस्ट संघी है. संघी या यूनियनिस्ट होना बुरी बात नहीं है. बुरा तब लगता है जब मछली तेजराम खाए और कांटा संघी के फंस जाए. मछली का सारा स्वाद और प्रोटीन तेजराम को मिले और दर्द से बिलबिलाना […]

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व्यंग्य : पत्नी पीड़ित और पराई

सुधीर राघव बीवी पर व्यंग्य करना दुनिया का सबसे आसान काम है. पत्नी का उपहास उड़ाकर न जाने कितने कलमघिस्सू व्यंग्यकार हो गए और न जाने कितने हास्य रस के मंच शिरोमणि कवि! खूंखार बीवी के चुटकुले सुनाकर महफ़िल लूटने वालों की भी कोई कमी नहीं है. मगर क्या आपने कभी किसी पुरुष को दूसरे […]

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व्यंग्य : पहन ले चड्डी, छोड़ दे हल

सुधीर राघव पंडित तोताराम मंडी की ओर जा रहे थे. शहर-कस्बों में तो रोज मंडी लगती है. गांवों में लोग साप्ताहिक और पाक्षिक मंडी जाते हैं. पंडित तोताराम जिस मंडी में जा रहे थे, वह तो पूरे पांच साल बाद लगी थी. इसलिए इस मंडी को लेकर उत्साह बहुत ज्यादा था. पंडिताइन के लाख मना […]