विचार

व्यंग्य : पत्नी पीड़ित और पराई

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सुधीर राघव

बीवी पर व्यंग्य करना दुनिया का सबसे आसान काम है. पत्नी का उपहास उड़ाकर न जाने कितने कलमघिस्सू व्यंग्यकार हो गए और न जाने कितने हास्य रस के मंच शिरोमणि कवि! खूंखार बीवी के चुटकुले सुनाकर महफ़िल लूटने वालों की भी कोई कमी नहीं है.

मगर क्या आपने कभी किसी पुरुष को दूसरे की बीवी का उपहास उड़ाते देखा है? क्या कोई मर्द का बच्चा साली, भाभी, पड़ोसन की शान में ऐसी गुस्ताखी कर सकता है. क्या वह उनकी चुड़ैल से तुलना कर सकता है. क्या वह उनकी कोई भी बात अनसुनी कर सकता है. बड़े से बड़ा शूरवीर इतनी हिम्मत नहीं रखता कि पड़ोसन पर एक अदद चुटकुला बना सके. सार्वजनिक रूप से उसका उपहास उड़ा सके. वह जानता है कि एक उपहास से संभावनाओं के सारे द्वार बंद हो जाएंगे. उसके सारे सपने उसी पल मर जाएंगे.

अपनी बीवी की दिन रात खिल्ली उड़ाने वाले पुरुष अक्सर दूसरों की बीवी के आगे खीसें निपोरते नजर आएंगे. ऐसे मर्द जो रोज समय से इसलिए घर नहीं आते कि बीवी कहीं उन्हें घर- गृहस्थी के काम में हाथ बंटाने को न कह दे, वे सभी पड़ोसन से कहते मिल जाएंगे, भाभीजी कोई काम हो संकोच न करना. आधी रात को भी काम पड़े तो बस एक फोन कर दीजियेगा. आखिर अपने ही अपनों के काम आते हैं.

मगर, आधी रात को भी पड़ोसन के काम को आतुर रहने वाले ऐसे जीवों की पत्नियां अक्सर यह शिकायत करते मिलेंगी कि चार दिन से रसोई का बल्ब बदलने की कह रही हूं, मगर ये आलसी हिलकर नहीं देता. एकदम निखट्टू मेरे पल्ले बांध दिया. बेचारी पत्नी उससे दिनभर ए जी! सुनते हो! कहती रहती है, मगर ये किसी काम के लिए सुनकर नहीं देता.

लेकिन , इसमें पुरुष का ज्यादा दोष नहीं है. पुरुष प्रकृति से ही काम प्रेरित संभावनावादी जीव है. उसके आदि पूर्वज भी सिर्फ शिकार करना पसंद करते थे न कि उसका बोझ लादना. वे एक शिकार के बाद दूसरे शिकार की संभावना का जायजा लेते थे. हर पुरुष को अपनी पत्नी जिम्मेदारी का बोझ लगती है मगर दूसरे की बीवी नई स्वछंद संभावना. इस संभवाना को अवसर में बदलने के लिए वह अक्सर विक्टिम कार्ड खेलता है. पत्नी की क्रूरता के झूठे किस्से गढ़ता है, ताकि अन्य स्त्रियों को उस पर दया आए और उसकी पत्नी पर इतना गुस्सा कि वे गुस्से में अंधी होकर उसकी सौत बन जाएं.

पुरुष उत्पीड़न के किस्सों का बड़ा बाजार है. मंच पर इन्हें हाथों-हाथ लिया जाता है. ये किस्से हर पुरुष की दमित इच्छाओं को तृप्ति की राह दिखाते हैं. अक्सर पुरुष अपना मकड़जाल बुनता है. उसे लगता है कि हर पराई स्त्री के सपनों का राजकुमार एक पत्नी पीड़ित ही होगा. वह सोचता है कि पत्नी की प्रताड़ना झेल जाने वाले पति को भला कौन स्त्री नहीं चाहेगी? पुरुष अपने डीएनए से ही परपीड़क है मगर हमेशा खुद को पीड़ित दिखाता है. हर स्त्री पुरुष के इस चौंचले को खूब समझती है. इसलिए पुरुष हर बार अपने बुने मकड़जाल में खुद ही फंस जाता है.

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