जीवन का आधार हैं पेड़…
जीवन के आधार हैं वृक्ष, जीवन के ये अमृत हैं
फिर भी मानव ने देखो इनमें विष बोया है
स्वार्थ मनुष्य का हर पल उसके आगे आया है
अपने ही हाथों से उसने अपना गाला दबाया है
काट काट कर उसने वृक्षों को अपना लाभ कमाया है
पर अपनी ही संतानों के सुखों को खुुुद ही खाया है
आज जिधर देखो प्रदूषण फ़ैल रहा है
वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से ये दुःख उपजा है
क्यों नहीं समय रहते इंसान जागा है
सच्चाई के डर से आज मानव भागा है
बिना वृक्षों के क्या जीवन संभव होगा
क्या इस प्रदूषण में सांस लेना संभव होगा
आज अग्रसित हो रहा मानव विनाश की ओर
इस धरती पर मानव जीवन क्या रह पाना संभव होगा
कुछ करना है अगर काम तो ये कर डालो
पौधों को रोपो और वृक्षों को दुलारो
आज समय रहते अगर तुम चेत जाओगे
तो ही आने वाली पीढ़ी को कुछ दे पाओगे
हे मनुज! अंत में प्रार्थना है मेरी तुमसे
वृक्षों को निज संपत्ति मानो
वृक्ष तुम्हारी संपत्ति हैं, तुम्हारी धरोहर हैं
इस सच को अब तो तुम पहचानो
– प्रज्ञा यादव