गिले अपनी मजबूरियों से जिंदगी भी क्या अजब सवाल पूछती है क्यों दुःख और निराशा एक साथ देती है कुछ जी नहीं पा रहे हैं इनके बोझ तले कुछ ढूंढ रहे अपनी रिहाई के नए रास्ते पर चल सब रहे कुछ मन कुछ बेमन से कुछ अपनी पहचान से कुछ गुमनाम से कितनो को हैं […]
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प्रज्ञा यादव की कविताएं – 7
जीवन का आधार हैं पेड़… जीवन के आधार हैं वृक्ष, जीवन के ये अमृत हैं फिर भी मानव ने देखो इनमें विष बोया है स्वार्थ मनुष्य का हर पल उसके आगे आया है अपने ही हाथों से उसने अपना गाला दबाया है काट काट कर उसने वृक्षों को अपना लाभ कमाया है पर अपनी ही […]
प्रज्ञा यादव की कविताएं – 4
दिल पे मुश्किल है दिल की कहानी लिखना, जैसे बहते हुए पानी में पानी लिखना. बहुत आसां है किसी के दिल पे दस्तकें देना, जैसे अपने आईने में अक्स को पाना. ऐ आसमां समझाओ इन चांद तारों को, तुम रोक लो वापस इन बेलगाम हवाओं को, ये दुनिया ये लोग एक गहरा समंदर है, जितना […]
प्रज्ञा यादव की कविताएं – 3
तलाश… जाने लोग यहां क्या-क्या तलाश करते हैं पतझड़ों में हम सावन की राह तक़ते हैं अनसुनी चीखों का शोर है यहां हर तरफ़ खामोश स्वरों से नगमे सुनने की बात करते हैं जाने लोग यहां क्या-क्या तलाश करते हैं … बंट गयी है ज़िंदगी यहां कई टुकड़ों में टूटते सपनों में, अनचाहे से रिश्तों […]
प्रज्ञा यादव की कविताएं – 2
काफी बदल सी गई है जिंदगी तेरा यूं मेरे शहर में आना और ज़िंदगी में ख़ास बन जाना, ये एक महज इत्तेफाक तो नहीं जरूर साजिश रही होगी खुदा की भी इसमें पता नहीं क्या लिखा था इन हाथों की लकीरों में कि तू आया तो मगर जाने के लिए तेरे होने की खुशी से […]