विचार

प्रज्ञा यादव की कविताएं – 3

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तलाश…

जाने लोग यहां क्या-क्या तलाश करते हैं
पतझड़ों में हम सावन की राह तक़ते हैं
अनसुनी चीखों का शोर है यहां हर तरफ़
खामोश स्वरों से नगमे सुनने की बात करते हैं
जाने लोग यहां क्या-क्या तलाश करते हैं …
बंट गयी है ज़िंदगी यहां कई टुकड़ों में
टूटते सपनों में, अनचाहे से रिश्तों में
अजनबी लगते हैं सब चेहरे यहां पर
हम इन में अपनों की तलाश करते हैं
जाने लोग यहां क्या-क्या तलाश करते हैं …
हर गली हर शहर में डर है यहां फैला हुआ
सहमा-सहमा सा माहौल है हर तरफ़ बिखरा हुआ
दिलों की धड़कनें भी हो गईं संगदिल हो यहां
बंद दरवाज़ों में हम रोशनी तलाश करते हैं
जाने लोग यहाँ क्या-क्या तलाश करते हैं…
सब की ज़ुबान पर है यहां अपने दर्द की दास्तान
फैली हुई हर तरफ़ नाकाम मोहब्बत की कहानियां
टूटा आईना लगता है हर शख़्स का वज़ूद यहां
अपने गीतों में फिर भी खुशी की बात करते हैं
जाने लोग यहां क्या-क्या तलाश करते हैं …..
ख़ुद को ख़ुद में पाने की एक चाह है यहां
प्यार का एक पल मिलता है यहां धोखे की तरह
बरसती चंद बूंदों में सागर तलाश करते हैं
घायल रूहों में अब भी जीने की आस रखते हैं
जाने लोग यहां क्या-क्या तलाश करते हैं…

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