विचार

प्रज्ञा यादव की कविताएं – 2

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काफी बदल सी गई है जिंदगी

तेरा यूं मेरे शहर में आना और ज़िंदगी में ख़ास बन जाना, ये एक महज इत्तेफाक तो नहीं
जरूर साजिश रही होगी खुदा की भी इसमें
पता नहीं क्या लिखा था इन हाथों की लकीरों में कि तू आया तो मगर जाने के लिए
तेरे होने की खुशी से ज्यादा गम था तेरे ना होने का यहां
फिर दिन बदले, साल बीते और देख मैं भी बदल ही गई
तेरी मौजूदगी अब बस फोन पर थी
हां, मुझे याद है आज भी वह मैसेज पैक से घंटों बातें करना
तुझे अपने नए प्यार की हर एक बात बताना और तेरा मुझे चिढ़ाना और सताना
और याद है मुझे आज भी तेरा मुझ पर पहली बार चिल्लाना
क्योंकि कहीं तो था प्यार दबा तेरे दिल में भी
मेरे हर टूटे दिल के टुकड़ों को जोड़कर वापस देना और कहना कि ठीक हो जाएगा सब
याद है मुझे आज भी तेरा यूं मेरा हर वक़्त साथ देना शायद इशारा था खुदा का कहीं तेरी वापसी का मेरी जिंदगी में एक और बार
कुछ अधूरा सा तो था जो पूरा हुआ तेरे आने से
हां याद है मुझे तेरा वह पहली बार मुझसे इजहार ए मोहब्बत शायद
शायद यही नहीं बल्कि हां बिल्कुल यही तो था जो अधूरा था
तेरी मौजूदगी को नाम मिला और मुझे जिंदगी का इनाम मिला
तू है तो मैं हूं वरना मैं भी नहीं पर अब ये बदली सी जिंदगी बहुत हसीन लगती है
दोबारा जीने का मन करता है, दोबारा हंसने का मन करता है
…हां काफी बदल सी तो गई है जिंदगी.

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