विचार

क्योंकि भैंस भी कभी गाय थी…

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सुधीर राघव

बहुत से लोगों को लगता है कि भैंस भी कभी गाय रही होगी! उसकी कमर भी बाइस- चौबीस रही होगी! उसका रंग भी साफ रहा होगा! भैंसों की भी कभी जॉलाइन दिखती होगी! मगर ऐसा नहीं है.

भैंस भी कभी गाय थी, यह भ्रम बस उनको होता है, जिन्होंने चार्ल्स डार्विन के क्रम विकास को सिर्फ मोटा मोटा पढ़ा है. या फिर जिन्हें ससुराल वालों ने अपनी बेटी गाय बोलकर थमाई थी. भले ही गाय और भैंसों में इतनी समानताएं हैं कि गाय के प्रस्ताव में बस दो ही लाइनें बदलने पर वह भैंस का प्रस्ताव हो जाता है। एक पंक्ति यह कि गाय का रंग सफेद होता है तथा दूसरी यह कि गाय के बछड़े बड़े होकर बैल बनते हैं. इसके अलावा सब समान है. दोनों के चार पैर, दो कान, एक लंबा मुंह और एक लंबी पूंछ होती है. दोनों ही दूध देती हैं और दोनों के ही दूध से मिठाइयां तथा गोबर से उपले बनते हैं.

इसी भ्रम से हर सच्चा और कच्चा डार्विनवादी यह मान लेता है कि गाय जब गर्म इलाकों में पहुंची तो उसे बहुत दिक्कत हुई. उसकी अगली पीढ़ियों में क्रम विकास हुआ और गाय भैंस बन गईं. यहां तक कि बहुत सी भैंसें भी यह दावा करती प्रतीत होती हैं कि वे भी कभी गाय थीं. मेरी न मानो तो किसी डेयरी फार्म में जाकर देखो, जहां भैंस और गाय पास पास बंधी हों. दोनों में आपको इतना प्रेम और बहनचारा (भाईचारा नहीं) दिखाई देगा, जैसे सदियों की बिछड़ी बहनें हों. चाहे आपको यह लगे कि भैंस भी कभी गाय थीं, भले ही भैंस को भी यही लगे मगर यह सच नहीं है. प्रमाणित सच यह है कि कोई भी भैंस कभी गाय नहीं थी. …और न ही कोई गाय कभी भैंस थी. दोनों के पूर्वज एकदम अलग हैं.

बृजभाषा में जैसे भैंसन (भैंस का बहुवचन) होता है, वैसे ही उत्तर अमेरिका में बायसन है। पहले वैज्ञानिक यही मानते थे कि भारतीय भैंसों के पूर्वज अमेरिकी बायसन ही थे. चार लाख साल पहले बायसन के समूह दक्षिण एशिया तक आ गये थे. इन्हीं से वाटर बफेलो यानी हमारी भैंसें बनीं. गाय की तुलना में भैंस को कम इज्जत मिलती है तो इसका मतलब यह नहीं कि भैंस विदेशी है. यहां भी घर की मुर्गी दाल बराबर मामला है. विज्ञान की जब ओर तरक्की हुई, उसने डीएनए पढ़ना सीखा तो पता चला कि 34 से 26 लाख साल पहले अमेरिकी बायसन के पूर्वज भारत-और चीन की धरती पर ही घूमते थे. यानी भैंस शुद्ध स्वदेशी हैं, जबकि गाय के स्वर्ग से आने का जिक्र पुराणों में भी है. समुद्र मंथन की कथा में गाय के समुद्र के रास्ते आने का जिक्र है. वैज्ञानिक भी गाय का मूल इलाका उत्तरी सीरिया, तुर्की, ईराक और ईरान के मैदानों को मानते हैं.
गोरी चिट्टी गाय परदेश यानी स्वर्ग से आई और उसे हमने खूब इज्जत दी. दूसरी ओर हमारी स्वदेशी भैंसें जिनका डंका अमेरिका तक बजता है, ज्यादा दूध देने पर भी हिकारत से हांकी गईं. मेसोपोटामिया के इतिहास में मेलुहा (सिंधु सभ्यता) से भैंस मंगवाने का जिक्र है मगर हमारे किसी ग्रंथ में भैंस की पूछ नहीं है, बस गायों के चर्चे हैं. गाय के सामने भैंस की इज्जत उतनी ही है, जितनी आज विदेशी कुत्तों के आगे स्वदेशी कुकुरों की है. कुल मिलाकर हम वो लोग हैं जो अपनों की कद्र नहीं करते और विदेशी माल के आगे बिछ जाते हैं.
#सुधीर_राघव

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