भगवत सरन साहू
पति-पत्नी के झगड़े यूं तो आम होते हैं लेकिन कभी-कभी छोटी-छोटी बातें दिलों की दूरियां बढ़ा देते हैं और रिश्तों में दरार पैदा होने लगती है. कभी पति घर से निकाल देता है तो कभी महिला पति को छोड़कर अलग जिंदगी गुजारने का फैसला कर लेती है. ऐसे में अगर पत्नी नौकरीपेशा या आर्थिक रूप से सशक्त है तो वह अपनी जिंदगी आसानी से गुजार लेती है और बच्चों का पालन पोषण भी कर लेती है लेकिन अगर उसकी आय का कोई साधन नहीं है तो वह पति से गुजारा भत्ता पाने का पूरा अधिकार रखती है. अगर पति गुजारा भत्ता देने के लिए तैयार न हो तो पीड़ित महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत न्यायालय में गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर कर सकती है. यदि महिला के साथ उसके नाबालिग बच्चे भी रहते हैं तो वह उन बच्चों के लिए भी दंड प्रक्रिया संहिता 125 के तहत आवेदन कर सकती है. न्यायालय में महिला स्वयं अथवा अपने अधिवक्ता के जरिये अपना पक्ष रख सकती है. संतुष्ट होने पर न्यायालय पीड़िता के पति को पोषण भत्ता देने का अादेश दे सकता है. याद रहे कि यह गुजारा भत्ता वही महिला अपने पति से प्राप्त कर सकती है जो अपने पति पर पूरी तरह से निर्भर हो. वह पूर्ण रूप से घरेलू महिला हो और उसका अपना आमदनी का कोई स्रोत न हो. ऐसी प्रत्येक महिला अपने पति से उसकी मासिक आय का तीस प्रतिशत गुजारा भत्ता मांग सकती है. महिला को कितना गुजारा भत्ता मिलेगा यह तय करने का अंतिम फैसला न्यायालय ही करेगा. यह गुजारा भत्ता महिला की मांग से कम भी हो सकता है. अगर महिला का आय का अपना कोई स्रोत है या वह नौकरी करती है तो वह अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी. उसकी अपील अदालत में स्वीकार्य नहीं होगी लेकिन नाबालिग बच्चों के लिए वह गुजारा भत्ता मांग सकती है. इसका अधिकार उसे है कि वह बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांग सके.
भगवत सरन साहू, एडवोकेट, बरेली
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