बिन मेहनत के दौलत का
कोई हकदार नहीं होता।
लेकर न चले साथ सब को
वो सरदार नहीं होता।।
बिना काबलियत के ताज
न मिले किसी को।
जो निकल पड़े मांगने को
वो खुद्दार नहीं होता।।
जो टिक न पाये वायदे पर
वो असरदार नहीं है।
जो काम न आये किसी के
वो रसूखदार नहीं है।।
जो न बिके वही होती है
सच्ची ईमानदारी।
बगिया न हो गुलज़ार कोई
वो बसंत बहार नहीं है।।
जो न रख पाये काबू जुबां पे
वो समझदार नहीं है।
सामने से न दो चुनौती तो वो
ललकार नहीं है।।
तन अच्छा मन अच्छा हो वही
है ठीक सुधार।
जब न मिले कीमत पसीने की
तो वो रोजगार नहीं है।।
हर मुद्दे पर करनी नुक्ताचीनी
बात शानदार नहीं है।
जो देश के लिए न सोचे वह
तो वफ़ादार नहीं है।।
माता पिता के उपकार को कोई
उतार नहीं सकता।
माँ बाप के लिए सेवा तो कोई
उपहार नहीं है।।
पेट भरा हो जिसका खूब वह
तो जरूरतदार नहीं है।
बेवजह जो उड़ाये मजाक वो
आदमी मजेदार नहीं है।।
जिसने किया था काम को वही
है सही दावेदार।
जिसे पहचान नहीं खरे सोने
की वो सुनार नहीं है।।
सब्र बहुत जरूरी हर बात तुरंत
पलट वार नहीं होता।
दर्द किसी का न समझ पायें जब
वो सरोकार नहीं होता।।
संवेदनाएं बहुत जरूरी मानवता
के उद्धार के लिए।
हर जन मानस न हो सुरक्षित वो
सुखी संसार नहीं होता.
-एस के कपूर “श्री हंस”
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