सुधीर राघव बहुत से लोगों को लगता है कि भैंस भी कभी गाय रही होगी! उसकी कमर भी बाइस- चौबीस रही होगी! उसका रंग भी साफ रहा होगा! भैंसों की भी कभी जॉलाइन दिखती होगी! मगर ऐसा नहीं है. भैंस भी कभी गाय थी, यह भ्रम बस उनको होता है, जिन्होंने चार्ल्स डार्विन के क्रम […]
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व्यंग्य : सच की मर्दाना कमजोरी
सुधीर राघव झूठ की महिमा न्यारी है. झूठ से दुनिया चल रही है. विद्वानों ने जगत को मिथ्या कहा है. उपनिषद कहते हैं कि असत्य पांच भौतिक तत्वों से बना है, जबकि जगत का सत्य नेति नेति अर्थात न इति न इति मायने कुछ भी नहीं है। जगत झूठा और नेति नेति ही परम सत्य […]
व्यंग्य : नफ़रत के बीज और वोटों की बारिश
सुधीर राघव अंग्रेजी में जिसे यूनियन बोलते हैं, हिंदी में उसे संघ कहते हैं. इस तरह हर यूनियनिस्ट संघी है. संघी या यूनियनिस्ट होना बुरी बात नहीं है. बुरा तब लगता है जब मछली तेजराम खाए और कांटा संघी के फंस जाए. मछली का सारा स्वाद और प्रोटीन तेजराम को मिले और दर्द से बिलबिलाना […]
व्यंग्य : गोभी और गधे का प्रेम…
विद्वानों ने कहा है, एक बरस के मौसम चार! जो इनसे भी बड़े विद्वान हैं, वे पांचवां मौसम प्यार को मानते हैं. प्रेम करने वाले प्रेमी प्रेमिका कहलाते हैं. उनके किस्से मशहूर होते हैं. प्रेम हमेशा प्रेमी-प्रेमिका में ही माना जाता है, मियां-बीवी का प्यार मान्यता प्राप्त प्रेम नहीं है. पति-पत्नी का प्रेम बाकी समाज […]