विचार

व्यंग्य : नफ़रत के बीज और वोटों की बारिश

Share now

सुधीर राघव

अंग्रेजी में जिसे यूनियन बोलते हैं, हिंदी में उसे संघ कहते हैं. इस तरह हर यूनियनिस्ट संघी है. संघी या यूनियनिस्ट होना बुरी बात नहीं है. बुरा तब लगता है जब मछली तेजराम खाए और कांटा संघी के फंस जाए. मछली का सारा स्वाद और प्रोटीन तेजराम को मिले और दर्द से बिलबिलाना तथा छटपटाना संघी के हिस्से आए. तेजराम चटखारे ले और संघी आंसू बहाये. तेजराम तली हुई मसालेदार मछली की सेल्फी डाले और संघी यह भी न दिखा सके कि कांटा कहां फंसा है. उल्टा सब उसके विधवा विलाप का मज़ाक़ उड़ाएं. ही-ही खी-खी करें. तब बुरा लगना स्वाभाविक है.

यह और भी बुरा है कि माछ-भात खाते तेजराम को लाखों लोग लाइक कर रहे हैं. हजारों कमेंट कर रहे हैं. मगर संघियों के रोने पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा. वे एक-दूसरे को ही अपना दुखड़ा व्हाट्सएप कर रहे हैं. भाई! थोड़ी सी सहानुभूति तो संघियों के साथ भी रखो. आखिर कांटा तो उन्हीं बेचारों के फंसा है. उनकी कोई सुन ही नहीं रहा है. इसलिए बेचारे यूनियनिस्ट उर्फ संघी यूनियन बनाकर माछखोर तेजराम के खिलाफ रुदन कर रहे हैं. वे मिलकर तय कर देना चाहते हैं कि तेजराम कब क्या खाये और क्या नहीं. तेजराम से संघी नहीं डरते उन्हें तो बस उसके चटखारों का डर है. इसलिए वे चाहते हैं कि तेजराम सात्विक बने. वह सिर्फ गाय का गोबर खाए और गोमूत्र पिया करे. दोनों चीजें पहले ही गाय के पेट से प्रोसेस होकर निकलती हैं, इसलिए इनमें ऐसा कोई कांटा नहीं होता जो संघियों को फंस जाए.

दर्द से कराहते यूनियनिस्ट गोबर का प्रचार कर रहे हैं, जबकि तेजराम मछली पर ही अड़ा है. उसकी डाइट प्रोटीन रिच है, जो एक मजबूत शरीर में मजबूत दिमाग बना रही है. उधर, संघी उर्फ यूनियनिस्ट वर्षों से गोबर निर्भर है. वर्षों पहले खाया गोबर उसके दिमाग तक पहुंच चुका है. वह गोबर अब सड़कर खाद बन चुका है. सभी यूनियनिस्ट इस खाद में नफ़रत के बीज रोप रहे हैं. बस अब उन्हें वोटों की बारिश का इंतजार है. उनकी फसल लहलहा उठेगी तब वे तेजराम को सबक सिखाएंगे.
#सुधीर_राघव

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *