विचार

अंहकार जीवन में एक मादक सर्प समान है

Share now

अहंकार का नशा बहुत
मतवाला होता है।
मनुष्य नहीं स्वयं का ही
रखवाला होता है।।
एक दिन आसमां से जमीं
पर जरूर है गिरता।
अहम क्रोध केवल बुद्धि
का दिवाला होता है।।

वो कहलाता सभ्य सुशील
जो सरल होता है।
वो कहलाता विनम्र शालीन
जो तरल होता है।।
इसी में है बुद्धिमानी कि
व्यक्ति सहज रहे।
वही बनता सर्वप्रिय जो
नहीं गरल होता है।।

अहंकार जीवन के लिए एक
विषैले सर्प समान है।
कभी करे न त्रुटि स्वीकार
उस दर्प समान है।।
यह ईश्वरीय विधान है कि
घमंड सदा रहता नहीं।
वह कभी नया सीख न पाये
मादक गर्व समान है।।

साधन शक्ति संपत्ति सदा एक
से कभी रहते नहीं हैं।
अभिमानी को लोग सफल
कभी कहते नहीं हैं।।
वाणी का कुप्रभाव सदा ही
पड़ता है भोगना।
जान लीजिए सदैव यह जहर
लोग सहते नहीं हैं।।

-एसके कपूर “श्री हंस”
मो. 9897071046, 8218685464

Facebook Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *