अब कुएँ के मेंढकों में भी बढ़ी उत्तेजना
सभी तुकबंदी करेंगे बन गयी यह योजना।
एक को दादा बनाया जो कि कवियों से जला
और फिर तो तिकड़मों का चला ऐसा सिलसिला
माफिया का साथ पाकर उन्होंने सबको छला
हुई कवि की पलक गीली उठे आँसू छलछला
नहीं कोई साथ देगा, भाव यह मन में पला
क्योंकि अपनों ने यहाँ सम्बन्ध का घोटा गला
नफरतों की आग फैली मिट गयी सद्भावना
ठीकरा फूटा किसी पर क्या करे सम्भावना।
हुई टर-टर यहाँ इतनी उसी को कविता कहा
दबदबा अब तो यहाँ पर मेंढकों का ही रहा
इसलिए कवि ने व्यथा को आज जी भर कर सहा
हाय उसकी साधना रूपी नदी का पुल ढहा
और फिर दुर्भावना का जल यहाँ जमकर बहा
किंतु लक्ष्मी के पुजारी दूध में आए नहा
दिख रहे उज्ज्वल मगर धूमिल हुई संवेदना
कंटकों ने भी रखा जारी हृदय को भेदना।
– उपमेंद्र सक्सेना एड., ‘कुमुद- निवास’, बरेली (उत्तर प्रदेश )
मोबा० नं०- 98379 44187