विचार

हिंदी है आँखों का तारा…

गीत -उपमेंद्र सक्सेना एड. करते हैं अभिव्यक्ति उसी की, भाव उठे जो मन में प्यारा जननी जन्म-भूमि जैसी ही, हिंदी है आँखों का तारा। बदलें आज मानसिकता को, हिंदी को अब हम अपनाएँ अपनी भाषा में है जो रस, और कहीं हम उसे न पाएँ जो अब सबके दिल को छू ले, उसमें अपनापन है […]

यूपी

मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ…

जिससे अपना मतलब निकला, क्यों मैं उसके लात लगाऊँ दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे म्याऊँ। मगरमच्छ के आँसू गिरते, जब वह सुख से भोजन करता बगुला भगत यहाँ पर देखो, अपनों पर यों कभी न मरता जिस थाली में भोज खिलाया, क्यों मैं उसमें छेद बनाऊँ दुनिया का सिद्धांत अनोखा, मेरी बिल्ली मुझसे […]

विचार

सावन का चल रहा महीना

सपने अब साकार हो रहे, जो थे कब से मन में पाले सावन का चल रहा महीना, देखो सबने झूले डाले। पत्थर पर जब घिसा हिना को, फिर हाथों पर उसे लगाया निखरी सुंदरता इससे तब, रंग यहाँ जीवन में छाया हरियाली तीजों पर मेला, किसके मन को यहाँ न भाया आयोजन हर साल हो […]

विचार

हाय बेबसी इस दुनिया में , कैसे -कैसे काम कराए

जीवन में ऐसी विडम्बना, जाने क्यों अब हमें डराए। मन क्यों आज यहाँ पर भटका, क्यों अपना मुँह इतना लटका ऐंठ दिखाने लगा आज वह, जिससे काम किसी का अटका जिसको लगा खूब है झटका, उसने अपना माथा पटका भ्रष्टाचार फूलता- फलता,यही आजकल हमको खटका जिनको अपना समझ रहे थे, वे अब लगने लगे पराए […]

विचार

नींद चैन की आए कैसे

हाय यहाँ पर हमने देखे, गेहूँ के संग घुन पिसते और दलालों के कारण, भोले- भाले चप्पल घिसते। नींद चैन की आए कैसे, सपनों की खटिया टूटी बनता कोई काम न उनका, लगता है किस्मत रूठी बात नहीं करते अधिकारी, जो हैं यहाँ ऑन ड्यूटी और कर्मचारी भी क्यों अब, कसमें खाते हैं झूठी काली […]

विचार

ऑक्सीजन बिना वे तड़पकर मरें

कोठियों ने उजाड़े यहाँ घोंसले, हाय पक्षी बसेरा कहाँ पर करें पेड़ काटे गए आज इतने अधिक, ऑक्सीजन बिना वे तड़पकर मरें। ऐंठ मेंआज मानव भरा खूब है, क्यों मलिन कर रहा हाय पर्यावरण रेडियोधर्मिता बढ़ गयी है यहाँ, भूत अब वायरस का करे जागरण लोग उल्लू यहाँ अब बनाने लगे, इसलिए सामने आ रहा […]

विचार

कितनी पीड़ा अब देखो, तीमारदार सहते हैं…

कितनी पीड़ा अब देखो, तीमारदार सहते हैं दुत्कारा जाता जिनको, आँसू पीकर रहते हैं । बेबस मरीज की आहें, बेरहम नहीं हैं सुनते दौलत का खेल चल रहा, ताने-बाने वे बुनते बीमार भले मर जाए, वे अपना मतलब चुनते उनके कारण कितने ही, देखे अपना सिर धुनते घर में मर जाना अच्छा, कुछ लोग यही […]

विचार

अब कुएं के मेंढकों में भी बढ़ी उत्तेजना

अब कुएँ के मेंढकों में भी बढ़ी उत्तेजना सभी तुकबंदी करेंगे बन गयी यह योजना। एक को दादा बनाया जो कि कवियों से जला और फिर तो तिकड़मों का चला ऐसा सिलसिला माफिया का साथ पाकर उन्होंने सबको छला हुई कवि की पलक गीली उठे आँसू छलछला नहीं कोई साथ देगा, भाव यह मन में […]