गीत -उपमेंद्र सक्सेना एड.
करते हैं अभिव्यक्ति उसी की, भाव उठे जो मन में प्यारा
जननी जन्म-भूमि जैसी ही, हिंदी है आँखों का तारा।
बदलें आज मानसिकता को, हिंदी को अब हम अपनाएँ
अपनी भाषा में है जो रस, और कहीं हम उसे न पाएँ
जो अब सबके दिल को छू ले, उसमें अपनापन है न्यारा
जननी जन्म-भूमि जैसी ही, हिंदी है आँखों का तारा।
हिंदी के अच्छे ग्रंथों को, पढ़ना कभी नहीं हम भूलें
उनसे जो भी ज्ञान मिले अब, उससे सुख- वैभव में झूलें
किसको आज पराया समझें, हर कोई अब लगे दुलारा
जननी जन्म-भूमि जैसी ही, हिंदी है आँखों का तारा।
वैदिक भाषा की संतानों, में हिंदी की गणना होती
जिसमें हो सद्बुद्धि वही तो, इसमें पा जाता है मोती
जिसके साथ विवेक जुड़ा है, नहीं कभी जीवन में हारा
जननी जन्म-भूमि जैसी ही, हिंदी है आँखों का तारा।
जो बच्चे हिंदी पढ़ते हैं, जीवन में आगे बढ़ते हैं
पीछे मुड़कर कभी न देखें, उन्नति की सीढ़ी चढ़ते हैं
वातावरण लगे अब मोहक, उनके कारण ही तो सारा
जननी जन्म-भूमि जैसी ही,हिंदी है आँखों का तारा।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
(गीतकार ,लोक गीतकार एवं संयोजक)
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ० प्र०)
मोबा.-98 379 44 187