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क्या बहेड़ी और भोजीपुरा विधानसभा सीट के ‘लंगड़े घोड़ों’ पर दांव लगाएंगे अखिलेश? जानिये दोनों सीटों पर कैसे घटता जा रहा है पूर्व दिग्गजों का जनाधार?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के हाल ही में दिए गए एक बयान के बाद समाजवादी पार्टी के कुछ पूर्व दिग्गज नेताओं के सियासी भविष्य पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं. बात अगर बरेली जिले की करें तो यहां कभी दिग्गजों की श्रेणी में शामिल रहे दो नेता ऐसे हैं जो पिछले पांच वर्षों में इतने कमजोर हो गए हैं कि अब उनके विधानसभा क्षेत्र में उनकी ही पार्टी के लोग खुलकर उनका विरोध करते नजर आ रहे हैं. हाल ही में कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं जो इन दोनों नेताओं के राजनीतिक भविष्य और सियासी वजूद पर सवालिया निशान खड़े कर रहे हैं.
इन नेताओं में पहला नाम आता है पूर्व मंत्री और 118 बहेड़ी विधानसभा सीट से पूर्व विधायक अता उर रहमान का. अता उर रहमान पिछले पांच वर्षों में इतने कमजोर हो चुके हैं कि हाल ही में हुए ब्लॉक प्रमुख चुनाव में अपने भाई तक का नामांकन नहीं करा पाए. बहेड़ी के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में अब खुलकर उनका विरोध होने लगा है. गांव भुड़िया, नंदेली, धिमरी, रम्पुरा, फरदिया मनकरा, गरीबपुरा, अर्सियाबोझ, सिल्ली सहित दर्जनों गांव ऐसे हैं जहां अता उर रहमान का लोग खुलकर करने लगे हैं. कुछ समय पहले सिखों को लेकर की गई विवादित टिप्पणी के बाद सिख समाज भी खुलकर अता उर रहमान के विरोध में उतर आया है. विगत जिला पंचायत चुनाव में बहेड़ी विधानसभा की तीन सीटों में से अता उर रहमान एक भी सीट नहीं जिता पाए. दो सीटें सपा से टिकट के दावेदार नसीम अहमद ले उड़े तो एक सीट भाजपा के खाते में गई. अता उर रहमान खुद रिछा में रहते हैं लेकिन रिछा की चेयरमैनी भी वह नहीं जिता सके. इसी तरह फरीदपुर नगर पंचायत की चेयरमैनी भी अता उर रहमान अपने समर्थक को नहीं जिता सके. ग्राम प्रधान के चुनावों में भी प्रधान संघ का अध्यक्ष नसीम अहमद अपने समर्थक को बना ले गए. आलम यह है कि बहेड़ी विधानसभा क्षेत्र में अता उर रहमान पोस्टर वार में भी नसीम अहमद से काफी पीछे रह गए हैं. कोई कैमरे के सामने उन्हें भूमाफिया कहने लगा है तो कोई उन्हें नेता जी 307 तक कहने से नहीं चूक रहा. जिस तरह से अता उर रहमान का विरोध तेज हो रहा है उससे जनता के बीच यही संदेश जा रहा है कि अता उर रहमान अब समाजवादी पार्टी के लिए ‘लंबी रेस के घोड़े की बजाय लंगड़े घोड़े’ साबित होंगे. ऐसे में अखिलेश यादव उन पर दांव खेलने का जोखिम उठाएंगे या उन्हें ससम्मान संगठन में बिठाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा. फिलहाल नसीम अहमद के सितारे बुलंदियों पर नजर आ रहे हैं और अता उर रहमान की राजनीति का सूरज ढलता दिखाई दे रहा है. हालांकि, अता उर रहमान के बारे में कहा जाता है कि वह ठंडे दिमाग के सियासतदान हैं जो सही समय पर सही जगह चोट करते हैं लेकिन फिलहाल उनके बाजुओं की ताकत नसीम अहमद के खेमे में पहुंच चुकी है. इसलिए अता उर रहमान को हाईकमान के समक्ष अपना सियासी वजूद साबित करना होगा.
इस श्रेणी में अगला नाम आता है पूर्व मंत्री और भोजीपुरा के पूर्व विधायक शहजिल इस्लाम का. शहजिल इस्लाम का विरोध दो कारणों से हो रहा है. पहला कारण उनका ताल्लुक़ मूल रूप से कैंट विधानसभा सीट से होना बताया गया है. लोगों का कहना है कि चुनाव हारने के बाद वह भोजीपुरा विधानसभा क्षेत्र की जनता से पूरी तरह दूर हो गए. सत्ता में रहते हुए भी उनका यही रवैया था. जिला पंचायत चुनावों में जिले में भले ही समाजवादी पार्टी के सबसे अधिक सदस्य जीते थे पर शहजिल इस्लाम अपने विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाली 6 में से एक भी सीट नहीं जिता सके. शहजिल इस्लाम को लेकर स्थानीय ग्रामीणों में खासी नाराजगी है और कई गांवों में सभाओं के माध्यम से खुलकर शहजिल इस्लाम का विरोध किया जा रहा है. हाल ही में भोजीपुरा, अंबरपुर, भूड़ा, करमपुर चौधरी, डहिया, दोहना अलीनगर, भीकमपुर और शेरगढ़ ब्लॉक के कई गांवों में शहजिल इस्लाम के खिलाफ लगातार सभाओं का आयोजन कर विरोध किया गया है. बताया जाता है कि शहजिल इस्लाम के विरोध में अक्टूबर माह में समाजवादी पार्टी के ही नेता और कार्यकर्ता विशाल सभा का आयोजन करने जा रहे हैं जिसमें 15-20 हजार लोगों के जुटने की संभावना जताई जा रही है. विगत लोकसभा चुनाव में भी भगवत सरन गंगवार का खुला विरोध कर इस्लाम साबिर और उनका परिवार सबकी निगाहों में चढ़ गया था. मेवाती समाज भी अब एकजुट होकर खुलेआम शहजिल इस्लाम का विरोध करने लगा है. वहीं कुछ गांव तो ऐसे हैं जो शहजिल इस्लाम की एंट्री तक गांव में बैन करने की तैयारी कर रहे हैं.
बहरहाल, शहजिल इस्लाम के पैरों तले सियासी जमीन भी अब खिसकती नजर आ रही है. ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि क्या अखिलेश यादव अबकी बार शहजिल इस्लाम पर दांव लगाएंगे?

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