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बुझा हुआ चिराग हैं अवधेश वर्मा, दो बार लगातार हुई जमानत जब्त, खत्म हुआ जनाधार, पूर्व मंत्री राममूर्ति के बेटे को ददरौल से उतारने की तैयारी कर रही सपा

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नीरज सिसौदिया, बरेली
बसपा सरकार में मंत्री रहे अवधेश कुमार वर्मा बहुजन समाज पार्टी और भाजपा की चुनावी नैय्या डुबोने के बाद अब साइकिल पंक्चर करने को बेकरार नजर आ रहे हैं. इसी साल जनवरी में समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने वाले अवधेश कुमार वर्मा अब ददरौल सीट से टिकट की कतार में खड़े नजर आ रहे हैं. फिलहाल उनकी गिनती उन बुझे हुए चिरागों में की जा रही है जो ‘साइकिल’ की अंधेरी राहों को रोशन करने में नाकाम नजर आ रहे हैं.
दरअसल, एक दौर था जब अवधेश कुमार वर्मा विधायक बने और बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें मंत्री पद के सम्मान से नवाजा था. मंत्री पद मिलते ही अवधेश वर्मा सत्ता के नशे में इस कदर चूर हो गए कि मायावती को ही नजरअंदाज करने लगे. नतीजतन वर्ष 2012 के चुनाव से पहले मायावती ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया. बेचारे अवधेश वर्मा सड़क पर आए तो बीच सड़क पर ही दहाड़े मारकर रोने लगे. इसके बाद वर्ष 2012 में वह भगवा ब्रिगेड में शामिल हो गए और ददरौल विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े. यहां सपा के दिग्गज नेता राममूर्ति वर्मा ने उन्हें धूल चटाई और अवधेश वर्मा की जमानत तक जब्त हो गई.
पांच साल के इंतजार के बाद वर्ष 2017 में फिर से विधानसभा चुनाव आए तो अवधेश वर्मा एक बार फिर उसी बसपा में शामिल हो गए जहां से बेइज्जत करके निकाले गए थे. इस बार वह ददरौल सीट से टिकट मांग रहे थे लेकिन ददरौल सीट पर उनका विरोध था. मायावती उनकी जमीनी हकीकत भांप चुकी थीं इसलिए उन्हें ददरौल से टिकट देने से मना कर दिया. काफी कोशिशों के बाद वह निगोही (तिलहर) सीट से बसपा के टिकट पर मैदान में उतरे लेकिन इस बार भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी और एक बार फिर अवधेश वर्मा जमानत जब्त करा बैठे. इसी साल जनवरी में वह बसपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए. दस वर्षों की सियासी उठापटक और एक के बाद एक दल बदलने के कारण अवधेश वर्मा का जनाधार शून्य हो चुका है. फिलहाल वह अपना पुराना सियासी वजूद पूरी तरह से खो चुके हैं और नई सियासी जमीन की तलाश में हैं. ऐसे में समाजवादी पार्टी उन पर दांव खेलने का रिस्क बिल्कुल भी नहीं लेगी.

राजेश वर्मा

पार्टी के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि पूर्व मंत्री और ददरौल सीट के पूर्व विधायक स्व. राममूर्ति वर्मा के निधन के बाद उनके सुपुत्र राजेश वर्मा ने अपने पिता की सियासी विरासत संभाल ली है. वह लगातार क्षेत्र में दौरे भी कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों में राजेश वर्मा पर दांव खेलने की तैयारी कर रही है ताकि राममूर्ति वर्मा के निधन पर उनके पुत्र के प्रति क्षेत्र की जनता की जो सहानुभूति है उसे वोटों में तब्दील किया जा सके. सहानुभूति के वोटों के साथ सपा को सरकार विरोधी वोट भी मिलते हैं तो ददरौल सीट पर राजेश वर्मा की जीत सुनिश्चित है. कुछ दिनों में अखिलेश यादव स्व. राममूर्ति की याद में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में शामिल होने शाहजहांपुर आने वाले हैं. ऐसे में राजेश वर्मा का कद और बढ़ता नजर आ रहा है. वहीं, अवधेश वर्मा को फिलहाल खोया हुआ सियासी वजूद हासिल करने में लंबा समय लगेगा. ऐसे में सपा उन पर दांव खेलने की गलती नहीं करने वाली.

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