यूपी

जब ‘एम’- ‘वाई’ में ‘डी’ जुड़ेगा तभी जीतेगी सपा, बरेली और मुरादाबाद के लिए हुकुम का इक्कार साबित हो सकते हैं ब्रह्मस्वरूप सागर, जानिए कैसे?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
वर्ष 2022 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए ‘करो या मरो’ वाले हालात लेकर आ रहे हैं. अभी तक एम-वाई यानि मुस्लिम-यादव फैक्टर के सहारे सत्‍ता की सीढ़ियां चढ़ने वाली समाजवादी पार्टी के लिए इस बार सबसे अहम ‘डी’ यानि दलित फैक्टर होगा। जब तक ‘एम’- ‘वाई’ में डी फैक्टर नहीं जुड़ेगा तब तक समाजवादी पार्टी के हाथों में यूपी की कमान नहीं आने वाली या यूं कहें कि अबकी बार सत्ता का रास्ता दलितों के घर होकर ही जाएगा. ऐसे में हर मंडल में सपा को ऐसे विश्वसनीय चेहरे की आवश्यकता है जो न सिर्फ खुद दलित समाज से ताल्लुक रखता हो बल्कि दलितों के बीच गहरी पैठ भी रखता हो।
बात अगर बरेली और मुरादाबाद मंडल की करें तो यहां फिलहाल ब्रह्मस्वरूप सागर ही एकमात्र ऐसा चेहरा नजर आते हैं जो दलित वोट बैंक को प्रभावित कर साइकिल की सवारी कराने में सक्षम नजर आते हैं. शायद यही वजह है कि ब्रह्मस्वरूप सागर को बसपा से तोड़कर समाजवादी पार्टी में लाया गया है।
बताया जाता है कि सपा फरीदपुर सीट से ब्रह्मस्वरूप सागर को चुनाव लड़ाने की तैयारी कर रही है ताकि उनके जरिये बरेली और मुरादाबाद मंडल के सियासी समीकरण अपने पक्ष में किए जा सकें।
दरअसल, समाजवादी पार्टी यह अच्छी तरह जानती है कि अबकी बार का विधानसभा चुनाव सिर्फ मुस्लिम-यादव फैक्टर के सहारे नहीं जीता जा सकता है। खास तौर पर बरेली और मुरादाबाद मंडल की लगभग 50 से भी अधिक सीटों में से दर्जनों सीटें ऐसी हैं जहां हार-जीत का अंतर दस से पंद्रह हजार के बीच ही रहा है। इन सीटों पर लगभग 25 से 30 हजार वोट सिर्फ दलित समाज का है। यह दलित वोट अब तक भाजपा और बसपा में बंटता रहा है। इसकी बड़ी वजह यह रही कि इन दलित वोटों को सपा के पाले में लाने के लिए अब तक कोई भी प्रभावी दलित चेहरा सपा के पास नहीं था। यही वजह रही कि दलित वोट बैंक साधने की सपा की तमाम कोशिशें अब तक नाकाम ही साबित हुई हैं। अगर अबकी बार यह आधा वोट भी सपा को मिल जाए तो जीत सुनिश्चित है. चूंकि इस बार दलित समाज का बसपा से मोह भंग होता नजर आ रहा है। दिग्गजों सहित बड़ी तादाद में बसपा नेता और कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी में शामिल भी हो चुके हैं। ऐसे में विगत कई विधानसभा चुनावों की तुलना में बसपा का दलित वोट बैंक तोड़ना सपा के लिए काफी आसान होगा मगर इसके लिए प्रयास के साथ-साथ उन्हें प्रतिनिधित्व भी देना होगा। सपा को एक ऐसे दलित चेहरे को प्रोजेक्ट करना होगा जो कम से कम मंडल स्तर पर गहरी पैठ रखता हो। आरक्षित सीट पर ऐसे चेहरे को मैदान में उतारकर समाजवादी पार्टी एक तीर से दो निशाने साध सकती है। पहला यह कि आरक्षित सीट पर दलित चेहरे का संकट दूर होगा और दूसरा उसी दलित चेहरे को प्रतिनिधित्व देने के नाम पर खुद को दलित हितैषी का टैग देकर अन्य सीटों पर दलित वोटों का समीकरण भी साधा जा सकेगा।
चूंकि ब्रह्मस्वरूप सागर बसपा में एक लंबे अरसे तक बरेली एवं मुरादाबाद मंडल के को-ऑर्डिनेटर भी रहे हैं और टिकट का बंटवारा भी उन्हीं के माध्यम से किया जाता था इसलिए उक्त दोनों मंडलों की दलित राजनीति से वह भली-भांति परिचित भी हैं। इतना ही नहीं ब्रह्मस्वरूप सागर के समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद उनके साथ आए बसपा नेताओं को जहां यह उम्मीाद है कि अखिलेश यादव उनके नेता को किसी बड़े सम्मान से नवाजेगी और ब्रह्मस्वरूप के सहारे उन नेताओं के भी दिन फिरेंगे तो वहीं दूसरी ओर बरेली और मुरादाबाद मंडल के हजारों दलितों की निगाहें इस पर टिकी हैं कि अखिलेश यादव ब्रह्मस्वरूप सागर को टिकट देकर विधायक बनने का मौका देंगे अथवा नहीं? दलित एवं पिछड़े समाज से ताल्लुक रखने वाले हजारों कार्यकर्ता इस इंतजार में बैठे हैं कि अगर सपा ब्रह्मस्वरूप सागर को फरीदपुर सीट से मैदान में उतारेगी तो वे भी समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे क्योंकि उनके नेता को टिकट मिलने पर उनका भी राजनीतिक भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। चूंकि बसपा से आए विजयपाल सिंह की छवि पहले से ही खराब है और लगातार दो चुनाव हारने के बाद उनका जनाधार भी उनसे दूरी बना चुका है, साथ ही फरीदपुर के बाहर वह एक आम नागरिक का चेहरा बन जाते हैं। इसलिए सपा को बुझे हुए चिराग से अपना आशियाना रोशन करने की कोशिश करने की गलती भारी पड़ सकती है. अन्य कोई बड़ा दलित चेहरा सपा के पास फिलहाल नजर नहीं आता जो मंडल की सियासत में कभी सक्रिय रहा हो अथवा अन्य सीटों के दलित वोट बैंक को प्रभावित करने में सक्षम हो। ऐसे में ब्रह्मस्वरूप सागर बरेली और मुरादाबाद मंडल में समाजवादी पार्टी का दलित चेहरा बन सकते हैं। अगर सपा ब्रह्मस्वरूप सागर पर दांव खेलती है तो बरेली मंडल की लगभग दो दर्जन से भी अधिक सीटों पर ही नहीं मुरादाबाद मंडल की सीटों पर भी भाजपा का हिन्दू-मुस्लिम खेल फेल हो सकता है। चूंकि ब्रह्मस्वरूप सागर जाटव समाज से आते हैं और दलितों में सबसे बड़ा वोट बैंक भी जाटव समाज का ही है, इसलिए भी ब्रह्मस्वरूप सागर की राह आसान नजर आती है। अब देखना यह है कि दलित वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ब्रह्मस्वरूप सागर के चेहरे को इस्तेेमाल करते हैं अथवा नहीं?
(शुक्रवार को पढ़ें – जब सपा को मिला था दलितों का साथ तो बरेली जिले की नौ में से सात सीटें जीती थी समाजवादी पार्टी)

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