विचार

कितनी पीड़ा अब देखो, तीमारदार सहते हैं…

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कितनी पीड़ा अब देखो, तीमारदार सहते हैं
दुत्कारा जाता जिनको, आँसू पीकर रहते हैं ।

बेबस मरीज की आहें, बेरहम नहीं हैं सुनते
दौलत का खेल चल रहा, ताने-बाने वे बुनते
बीमार भले मर जाए, वे अपना मतलब चुनते
उनके कारण कितने ही, देखे अपना सिर धुनते

घर में मर जाना अच्छा, कुछ लोग यही कहते हैं
दुत्कारा जाता जिनको, आँसू पीकर रहते हैं।

नियमों की उड़ें धज्जियाँ, अब दिखें कागजी घोड़े
कथनी- करनी में अंतर, फिर कौन वायरस तोड़े
जब भीड़ यहाँ चलती है, कोरोना को वह जोड़े
क्यों कौन किसी के सिर पर,अब यहाँ ठीकरा फोड़े

नफरत की बाढ़ आ गयी, इसमें कितने बहते हैं
दुत्कारा जाता जिनको, आँसू पीकर रहते हैं।

जो अपनी चालाकी से, मानवता पर हैं भारी
जब तक मतलब रहता है,करते हैं तब तक यारी
है वातावरण घिनौना, अफरा-तफरी भी जारी
अपना उल्लू हो सीधा,चाहे हो मारा-मारी

सपनों के महल बने थे, वे आज यहाँ ढहते हैं
दुत्कारा जाता जिनको, आँसू पीकर रहते हैं।

अब बढ़ती मँहगाई में, रोटी के जिसको लाले
बोलो बेचारा निर्धन, बच्चों को कैसे पाले
उससे भी करें वसूली, क्यों हाय यहाँ रखवाले
अवसर का लाभ उठाते, देखे हैं मन के काले

क्या कभी आस्थाओं के, उजड़े छप्पर छहते हैं
दुत्कारा जाता जिनको, आँसू पीकर रहते हैं।

रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’, बरेली (उ० प्र०)
मो. नं.- 98379 44187

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