नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय इन दिनों सियासत की आग में जल रहा है| महज एक तस्वीर की खातिर सैकड़ों छात्र सड़कों पर हैं और विश्व विद्यालय कैंपस छावनी में तब्दील हो गया है| अचानक से यह बवाल भारत के विभाजन सूत्रधार रहे मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर हो रहा है| यह वही जिन्ना हैं जिन्होंने कभी सरदार भगत सिंह का केस लड़ा था| यह वही जिन्ना है जिन्होंने कभी अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था और यह वही जिन्ना हैं जिनकी बदौलत हिंदुस्तान के टुकड़े हो गए लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या जिन्ना की तस्वीर को लेकर इतना हंगामा जायज है?
इतिहास गवाह है, पिछले लगभग 80 वर्षों से मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स यूनियन हॉल में लगी हुई है| विश्वविद्यालय का तर्क यह है कि हॉल में सिर्फ उसी की तस्वीर लगती है जो लाइफटाइम मेंबर होता है| यही वजह है कि बंटवारे के बाद भी जिन्ना की तस्वीर को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के स्टूडेंट यूनियन हॉल से नहीं हटाया गया था| जिन्ना 1938 में ही लाइफ मेंबर बन गए थे| वह यूनिवर्सिटी के दानदाताओं में से एक थे और 1920 में स्थापित यूनिवर्सिटी कोर्ट के फाउंडर मेंबर भी थे|
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि जिन्ना को किसी भी सूरत में भारत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्होंने भारत के टुकड़े किए थे| अब सवाल यह उठता है कि अगर जिन्ना बर्दाश्त नहीं तो फिर अंग्रेजों को बर्दाश्त क्यों किया जा रहा है? क्यों विक्टोरिया हाउस, विक्टोरिया गार्डन और अंग्रेजों के जमाने के अंग्रेज अफसरों के नाम से उल्लिखित शिलापट्ट आज भी नजर आ रहे हैं? क्यों आज भी अंग्रेज अफसरों और उनकी पत्नियों के नाम की सड़कों पर भारत की गाड़ियां दौड़ रही हैं? क्या अंग्रेजों का कोई दोष नहीं था? क्या बंटवारे के लिए हिंदुस्तान का कोई सियासतदान जिम्मेवार नहीं था? क्या सिर्फ जिन्ना के चाहने से पाकिस्तान अलग हो जाता? बंटवारे को उन जख्मों को फिर से क्यों कुरेदा जा रहा है? आजादी के 70 साल बाद इसकी याद क्यों आई? अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर सिर्फ लाइफटाइम मेंबर के रुप में रखी गई है| अगर इस तस्वीर को वहां से हटा भी दिया जाए तो क्या हिंदुस्तान के इतिहास से जिन्ना का नाम मिट सकता है? अगर नहीं तो फिर एक तस्वीर को प्रतिष्ठा का सवाल क्यों बनाया जा रहा है? ऐसे कई सवाल हैं जो आम जनता के जहन में उठ रहे हैं| वर्ष 2019 से पहले मजहबी सियासत के अभी और रंग देखने को मिलेंगे| सियासतदान अपना उल्लू सीधा करना बखूबी जानते हैं लेकिन समझदारी जनता को दिखानी होगी| हिंदू मुस्लिम के नाम पर अबकी बार बंटे तो मिट जाएंगे| अंत में इस पर मुझे एक शेर याद आ रहा है…
“मैं जिंदगी तुझे कब तक बचा कर रखूंगा, मौत हर पल निवाले बदलती रहती है,
खुदा बचाए हमें मजहबी सियासत से, जो रोज रोज पाले बदलती रहती है”

एएमयू में जिन्ना : मजहबी सियासत की एक और चाल!
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