आनंद सिंह, नई दिल्ली
सत्ता का जो ड्रामा आज महाराष्ट्र में खेला गया, इसे क्या माना जाए?
क्या यह कि भाजपा को अब सत्ता पाने के लिए सेटिंग करनी नहीं आती? या फिर यह कि फडणवीस बेवकूफी कर गए?
फडणवीस ने जिस तरीके से सत्ता ठुकराई थी, उस ठोकर से जनता के बीच उनकी इमेज जोरदार, शानदार, जानदार बन गई थी।
लेकिन, 78 घंटे बाद उन्होंने जो कदम उठाया और मंगलवार की दोपहरिया में जो-जो बोल कर इस्तीफा देने राजभवन पहुंचे, वह उनकी सियासी अपरिपक्वता को ही निरूपित करता है।
वह कह रहे थे कि सत्ता के लिए जरूरी नंबर गेम उनके पास नहीं था, इसलिए वह इस्तीफा दे रहे हैं। कमाल है….उनके पास तो कभी भी सत्ता के लिए जरूरी 145 का आंकड़ा नहीं था। फिर किसके दम पर पर भोरे-भोर राजभवन जाकर दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे? अजित के दम पर??
दरअसल, अजित की धोखाधड़ी और फडणवीस की सियासी बेवकूफी ने फडणवीस की छवि को चूर-चूर कर दिया।
देवेंद्र फडणवीस उन नेताओं में रहे हैं जिनके करियर के साथ मेरा भी कैरियर लगभग चलता रहा।
वह बेहद मिलनसार, दोस्त बनाने वाले नेताओं में से रहे। सबसे कम उम्र के मेयर रहे तो विधानसभा में भी एक आमदार (विधायक) के रूप में उन्होंने खूब वाहवाही लूटी।
इन्हीं कारणों से भाजपा ने उन पर दाव भी खेला-उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया।
5 साल उन्होंने खींच-तान करके सरकार चलाई। लेकिन, चुनाव परिणाम किसी के पक्ष में नहीं रहे। त्रिशंकु विधानसभा बनी।
वह ज्यादा बढ़िया मौका था, जब 105 के आंकड़े के बल पर राज्यपाल द्वारा बुलाने पर भी भाजपा ने सरकार बनाने से पल्ला झाड़ लिया था।
लेकिन, सबसे खराब वह दिन आया, जब उन्होंने भोरे-भोर खुद भी शपथ ले ली, अजित पवार को भी उप मुख्यमंत्री बना दिया।
जिस नागपुर से वह आते हैं, उस नागपुर में ही उनके इस कदम की किसी ने तारीफ नहीं की।
सबको पता था कि भाजपा के पास आंकड़ा नहीं है। इसके बावजूद जब शपथ हो गया तो भी नागपुर में कोई शोर नहीं हुआ।
अखबारों ने मोटे शब्दों में उनके मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की खबर तो छापी पर प्रायः हर संपादक यह जानते थे कि देवेंद्र के पास बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं था।
एक साथी ने बताया भीः भाऊ के इस फैसले से प्रेस क्लब में कोलाहल मच गया, जब पता चला कि अजित राव भी उप मुख्यमंत्री बन चुके हैं। आखिर 70000 करोड़ का घोटाला रातों-रात कैसे दबाया जा सकेगा? फिर, अजित के पास तो अगले दिन विधानमंडल नेता का पद भी नहीं रहा। उसके बावजूद भाउ (फडणवीस) ने इस्तीफा नहीं दिया तो हम लोग चौंके। आज जब उन्होंने नंबर गेम न होने की बात कह कर इस्तीफा दे दिया, तब हमें थोड़ी तसल्ली हुई कि चलो, जो फजीहत कल होती, उससे कम में आज ही काम चल गया। अब जो भद पिटनी है, वह आज ही पिटेगी। कल उतने हमले नहीं होंगे।
लेकिन, मूल मसला वहीं है…
चूक किसकी रही?
फडणवीस की?
शाह की?
या मोदी की??
इस सवाल का जवाब खोजा जा रहा है…