नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
बरेली के मशहूर आला हजरत खानदान के शीरान रजा खान ने अपनी पत्नी निदा खान के पेट पर लात-घूंसे मारे थे। उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से यातनाएं भी दी थीं और मारपीट कर निदा को घर से भी निकाल दिया था। निदा खान के इन आरोपों पर मुहर लगाते हुए बरेली सत्र न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने निदा खान के पक्ष में फैसला सुनाते हुए शीरान रजा खान को निदा खान को गुजारा भत्ता और प्रतिकर बढ़ाकर देने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि विपक्षीगण खुद पर लगे आरोपों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सके। हालांकि, अदालत ने शीरान रजा के परिजनों के खिलाफ दायर अपील को निरस्त कर दिया है।
बरेली सत्र न्यायाधीश विनोद कुमार तृतीय की अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि
प्रस्तुत प्रकरण में निर्विवाद रूप से निदा खान का विवाह (निकाह) शीरान रजा खान पुत्र उस्मान रजा खान से दिनांक 18.02.2015 को मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार हुआ था। निदा की तरफ से विपक्षीगण के विरूद्ध मानसिक एवं शारीरिक यातनाएं देने का कथन करते हुए इस सम्बंध में बतौर साक्षी पीडब्लू-1 स्वयं को तथा बतौर साक्षी पीडब्लू-2 अपने भाई मोईन हसन खान को परीक्षित कराया गया है। इन दोनों साक्षीगण के साक्ष्य के अवलोकन उपरान्त अवर न्यायालय ने यह पाया कि विपक्षीगण द्वारा अपीलार्थिनी को मानसिक एवं शारीरिक यातनाएं दी गयीं। साक्षी पीडब्लू-1 व पीडब्लू-2 से विपक्षीगण के अधिवक्ता द्वारा जो जिरह की गयी है, उसमें ऐसी कोई बात सामने नहीं आयी है, जिससे विपक्षीगण पर लगाये गये आरोप खण्डित होते हों। जिरह में भी इन दोनों साक्षीगण ने अपने प्रार्थना पत्र का बखूबी समर्थन किया है, और बताया है कि विवाह के बाद से विपक्षीगण द्वारा निदा खान से दहेज में डस्टर कार की लगातार मांग की जा रही थी और निदा खान को मानसिक व शारीरिक यातनाएं दी जा रही थीं। इसके तहत विवाह के बाद जब निदा खान अपनी ससुराल में गयी तो घर में काम करने वाली नौकरानी को हटा दिया गया तथा सारा काम निदा खान से कराया जाता था तथा उसको भर पेट भोजन नहीं दिया जाता था तथा उसके साथ मारपीट भी की जा रही थी।
इसी क्रम में विपक्षीगण ने दिनांक 16.07.2015 को निदा खान के साथ मारपीट की, शीरान रजा खान ने निदा खान के पेट में लात घूंसे मारे तथा पहने हुए कपड़ों में घर से बाहर निकाल दिया। इस साक्ष्य के विपरीत विपक्षीगण द्वारा ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे विपक्षीगण पर लगाये गये आरोप का खण्डन होता हो। विपक्षीगण को विचारण न्यायालय द्वारा कई बार अवसर दिया गया, परन्तु जब उनके द्वारा अपने बचाव में कोई मौखिक अथवा अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया, तब विचारण न्यायालय द्वारा विपक्षीगण का साक्ष्य का अवसर समाप्त किया गया है।
उपरोक्त से यह बखूबी स्पष्ट है कि विपक्षीगण द्वारा, निदा खान व विपक्षी सं-1 शीरान रजा खान के बीच वैवाहिक सम्बंध स्थापित रहने के दौरान निदा खान के साथ घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम में परिभाषित घरेलू हिंसा की गयी।
प्रस्तुत प्रकरण में विपक्षीगण की तरफ से स्वयं इस बात को स्वीकार किया गया है कि वे सम्मानित आला हजरत परिवार से ताल्लुक रखते है तथा उनके वंशज है। आला हजरत वैश्विक प्रभाव रखने वाले शख्स रहे हैं तथा उनका परिवार भी पूरे विश्व में सम्मानित लोगों में गिना जाता है। ऐसी दशा में विपक्षीगण की हैसियत सामान्य व्यक्तियों से कई गुना अधिक है। इस सम्बंध में किसी तरह का कोई संदेह नहीं है। निदा खान की तरफ से शपथ पत्र पर, विपक्षी सं-1 की आमदनी के सम्बंध में आला हजरत दरगाह के पास स्थित दुकानों तथा जमीनों के खरीद-फरोख्त से 60 हजार रूपये प्रतिमाह आय प्राप्त करने का कथन किया है। इसके खण्डन में कोई दस्तावेजीय या मौखिक साक्ष्य विपक्षीगण की तरफ से प्रस्तुत नहीं किया गया है। विपक्षीगण की सामाजिक हैसियत को देखते हुए 60 हजार रूपये प्रतिमाह आय प्राप्त होना किसी भी दशा में
अधिक नहीं मानी जा सकती और वह भी तब जब इसके खण्डन में कोई दस्तावेजीय अथवा मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत न किया गया हो। उक्त आय को दृष्टिगत रखते हुए विचारण न्यायालय, द्वारा प्रतिमाह 15 हजार रूपये आवश्यक खर्च की मद में जो आदेश, पारित किया गया है उसे किसी भी दशा में अत्याधिक नहीं कहा जा सकता तथा यह सर्वथा उचित परिलक्षित होता है।, इस धनराशि के सम्बंध में विपक्षीगण की तरफ से कहा गया है कि, निदा को धारा 125 दंप्रसं के प्राविधान के, अन्तर्गत 12 हजार रूपये प्रतिमाह बतौर भरण पोषण प्राप्त हो रहा है, जिसका संज्ञान आदेश पारित करते समय विचारण न्यायालय द्वारा नहीं लिया गया है, तो इस सम्बंध में यह महत्वपूर्ण है कि विपक्षीगण की तरफ से ऐसा कोई भी आदेश पत्रावली पर दाखिल नहीं किया गया है और महज कागज सं-17 ता 19 धारा 125 दंप्रसं पारिवारिक न्यायालय बरेली के वाद पत्र की छाया प्रति दाखिल की गयी है। महज वाद पत्र की छाया प्रति दाखिल करने से यह नहीं माना जा सकता कि कोई भरण-पोषण का आदेश पारित हुआ हो। यदि ऐसा कोई आदेश पारित किया गया था तो विपक्षीगण की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वे उसे पत्रावली पर दाखिल करते।
जहां तक दाण्डिक अपील सं-09/2024 के अपीलार्थिनी ने अपनी दाण्डिक अपील में 15 हजार रूपये प्रतिमाह की धनराशि को बढ़ाकर 25 हजार रूपये प्रतिमाह दिलाये जाने की बात कही है तो यह महत्वपूर्ण है कि स्वयं निदा खान ने परिवाद में विपक्षी सं-1 की मासिक आय 60 हजार रूपये प्रतिमाह बतायी है तथा निदा ने स्वयं अपने परिवाद में 15 हजार रूपये विभिन्न खर्च की बावत मांगे थे, जो कि विचारण न्यायालय ने प्रदत्त भी किये हैं तो इन परिस्थितियों में 15 हजार रूपये का जो आदेश पारित किया गया है उसे बढ़ाये जाने का कोई औचित्य नहीं है।
जहां तक उक्त आलोच्य निर्णय में, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम की धारा 22 के तहत विपक्षी सं-1 शीरान रजा खान को प्रतिकर आदेश के रूप में एकमुश्त राशि मु. तीन लाख रूपये दिये जाने हेतु आदेश पारित किया गया है तो इसके बावत निदा खान द्वारा कहा गया है कि यह धनराशि अत्यन्त कम है तथा उसे बढाकर दस लाख रूपये प्रतिमाह दिलाया जाना चाहिए।
उपरोक्त के सम्बंध में जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया है कि, विपक्षीगण सम्मानित आला हजरत परिवार से ताल्लुक रखते है और आला हजरत परिवार समाज में अपना एक व्यापक प्रभाव रखते हैं और उनकी हैसियत सामान्यजन से कहीं अधिक है तो इसका यह तात्पर्य है कि निदा का जब विवाह आला हजरत परिवार के किसी सदस्य के साथ हो गया तो उसकी भी हैसियत उसी अनुपात में बढ़ जाती है। और यदि उसके साथ घरेलू हिंसा कारित होती है तो इस सम्बंध में प्रतिकर की गणना भी इसी सामाजिक हैसियत को दृष्टिगत रखते हुए की जानी चाहिए। जो क्षति निदा खान को विपक्षीगण द्वारा कारित की गयी है उसको दृष्टिगत रखते हुए प्रतिकर के रूप में महज तीन लाख रूपये की धनराशि दिलाया जाना उचित नहीं होगा, क्योंकि यह धनराशि विपक्षीगण की हैसियत को दृष्टिगत रखते हुए अत्यन्त सूक्ष्म धनराशि है। निदा खान का इस सम्बंध में लिया गया तर्क स्वीकार किये जाने योग्य है कि इस धनराशि को बढाकर प्रतिकर दिया जाना चाहिए। अतएव इस न्यायालय की राय में, विपक्षीगण द्वारा अपीलार्थिनी को की गयी क्षति तथा विपक्षीगण की सामाजिक स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए निदा खान धारा 22 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत दस लाख रूपये प्रतिकर के रूप में एकमुश्त धनराशि प्राप्त करने की हकदार है।
इसी तरह से विचारण न्यायालय द्वारा जो किराये के रूप में धारा 19 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत 4 हजार रूपये प्रतिमाह दिये जाने का आदेश पारित किया गया है तो इस सम्बंध में यह स्पष्ट है कि आज की तिथि में महज 04 हजार रूपये प्रतिमाह में, निदा खान की हैसियत को दृष्टिगत रखते हुए निदा के निवास योग्य कोई आवास उपलब्ध नहीं हो सकता है। निदा का विवाह विपक्षी शीरान रजा खान के साथ हुआ था, जो कि आला हजरत परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जो एक सम्मानित परिवार वैश्विक रूप से माना जाता है। ऐसे परिवार की बहू की भी एक सामाजिक हैसियत है जिसके तहत वह एक स्तरीय मकान में, निवास पाने की हकदार है। अतः ऐसी स्थिति में इस न्यायालय की राय में निदा खान को किराये के रूप में, धारा 19 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत, 10 हजार रूपये प्रतिमाह दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है।
इस प्रकार उक्त विवेचन एवं विश्लेषण से यह निष्कर्षित है कि अपीलार्थिनी निदा खान को धारा 20 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत जो जीवन खर्च एवं भरण पोषण दूरी धनराशि के मद में 15 हजार रूपये प्रतिमाह दिलाये जाने का आदेश पारित किया गया है उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, तथा धारा 22 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत जो तीन लाख रूपये एक मुश्त प्रतिकर, दिलाये जाने का आदेश पारित किया गया है, उसे बढ़ाकर दस लाख रूपये, किया जाता है, तथा धारा 19 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत जो किराये की मद में 4 हजार रूपये प्रतिमाह दिलाये जाने का आदेश पारित किया है, उसे बढाकर, 10 हजार रूपये प्रतिमाह किया जाता है।
अदालत ने कहा कि स्पेशल लीव टू अपील (कि.) 1614/2024 दिनांकित 10.07.2024 एक महत्वपूर्ण विधि व्यवस्था है, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि विवाह विच्छेद के उपरान्त भी मुस्लिम महिला धारा 125 दं.प्र.सं. के तहत उपचार प्राप्त कर सकती है। इस विधि व्यवस्था के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मुस्लिम महिला विवाह विच्छेद के उपरान्त भी घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत वाद ला सकती है, क्योंकि धारा 125 दं.प्र.सं. के प्रावधान, की तरह ही घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के प्रावधान तलाकशुदा मुस्लिम महिला को तलाक के बाद उसके जीवन यापन से सम्बंधित प्रावधान उपलब्ध कराती है, जो महिला के हित के सम्बंध में है। धारा 125 दं.प्र.सं. का प्रावधान तथा घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम के प्रावधान जो कि महिला को भरण-पोषण प्रदान करने से सम्बंधित है, वे दोनों ही महिलाओं के कल्याण के सम्बंध में है, इसलिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय की उक्त विधि व्यवस्था जो धारा 125 दं.प्र.सं. के सम्बंध में है, उसकी एनोलॉजी घरेलू हिंसा से व्यवस्था जा धारा 125 द०प्र०स० के सम्बंध में है, उसकी एनालाजा घरलू हिंसा स संरक्षण के मामलों में भी लागू होगी। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि विवाह विच्छेद के उपरान्त तलाकशुदा मुस्लिम महिला को घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत कोई उपचार नहीं प्राप्त है।
अपीलार्थीगण का यह तर्क कि विचारण न्यायालय ने बिना इस बात का निस्तारण किए कि निदा खान के पति शीरान रजा खान का प्रश्नगत मकान में हिस्सा है या नहीं, प्रश्नगत मकान में रहने के सम्बंध में आदेश पारित कर दिया है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि विचारण न्यायालय ने आवास के सम्बंध में जो आदेश पारित किया है, उसमें स्पष्ट रूप से कहा है कि निदा शीरान रजा खान के सहभागी आवास, जिसमें उसका पति का अंश है, में निवास कर सकेगी तथा विपक्षीगण 1 लगायत 4 उस मकान में निवास से निदा को वंचित नहीं करेंगे। इसके साथ ही विचारण न्यायालय ने यह आदेश किया है कि यदि निदा किसी कारण से उक्त सहभागी आवास में निवास नहीं करना चाहती है या स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करती है तो शीरान रजा खान उसे निवास हेतु उचित आवास सुविधा उपलब्ध करायेंगे, जिसका किराया 04 हजार रूपये प्रतिमाह से कम न हो। इस आदेश से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि शीरान रजा खान का प्रश्नगत आवास में कोई अंश न हो तो ऐसी दशा में वे परिवादिनी को आवास हेतु किराया उपलब्ध करा सकते हैं। ऐसी दशा में दाण्डिक अपील सं-13/2024 तथा दाण्डिक अपील सं.-14/2024 के अपीलार्थीगण का यह तर्क कि बिना आवास में हिस्सा का निस्तारण किये आवास आदेश गलत है, यह स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। अपीलार्थीगण की तरफ से इन दोनों दाण्डिक अपीलों में यह भी तर्क लिया गया है कि विचारण न्यायालय द्वारा फोटो कापी दस्तावेजों के आधार पर निष्कर्ष दिया गया है। अपीलार्थीगण का यह तर्क भी स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। विचारण न्यायालय के आलोच्य निर्णय व आदेश से यह स्पष्ट होता है कि दस्तावेजीय साक्ष्य के साथ पीडब्लू-1 तथा पीडब्लू-2 के साक्ष्य शपथ पत्र को भी आधार बनाते हुए उक्त आलोच्य निर्णय व आदेश पारित किया गया है। ऐसी दशा में विचारण न्यायालय का निर्णय व आदेश इस आधार पर चुनौती देने योग्य नहीं है।
न्यायाधीश ने कहा कि उपरोक्त समस्त विश्लेषण के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि दाण्डिक अपील सं.-09/2024 निदा खान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य को आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है तथा विचारण न्यायालय द्वारा मुकदमा संख्या-66/23, 21/16 निदा खान बनाम शीरान रजा खान आदि, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 12 के अधीन प्रस्तुत प्रार्थना पत्र पर उक्त अधिनियम की धारा 18, 19, 20, 22 व 23, थाना बारादरी, जिला बरेली में पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 17.01.2024 में धारा 22 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत जो 3,00,000/- (तीन लाख रूपये) एक मुश्त प्रतिकर दिलाये जाने का आदेश पारित किया गया है, उसे बढ़ाकर 10,00,000/- (दस लाख रूपये) एक मुश्त प्रतिकर किया जाना, तथा धारा 19 घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत जो किराये की मद में 4,000/- (चार हजार रूपये) प्रतिमाह दिलाये जाने का आदेश पारित किया है, उसे बढाकर 10,000/- (दस हजार रूपये) प्रतिमाह किया जाना, तथा शेष निर्णय व आदेश दिनांकित 17.01.2024 उपरोक्तानुसार पुष्ट किये जाने योग्य है तथा दाण्डिक अपील सं0-13/2024 शीरान रजा खान बनाम निदा खान व अन्य तथा दाण्डिक अपील सं-14/2024 उस्मान रजा खान व अन्य बनाम निदा खान व अन्य निरस्त किये जाने योग्य है।