मीना यादव
नवरात्र यानी नौ विशेष रात्रियाँ। इस समय शक्ति के नौ रूपों की उपासना का श्रेष्ठ काल माना जाता है। रात्रि शब्द सिद्धि का प्रतीक है। प्रत्येक संवत्सर (वर्ष) में चार नवरात्र होते हैं। जिनमें विद्वानों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों में आराधना का विधान बताया है। विक्रम सम्वत् के पहले दिन अर्थात् चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा(पहली तिथि) से नौ दिन यानी नवमी तक नवरात्र होते हैं। ठीक इसी तरह ६ माह बाद आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी यानी विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक देवी की उपासना की जाती है। सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति के संचय के लिए अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग साधना आदि करते हैं।
मुख्यतः शक्ति की उपासना आदि काल से चली आ रही है। वस्तुतः श्रीमद देवी भागवत महापुराण के अंतर्गत देवासुर संग्राम का विवरण दुर्गा की उत्पत्ति के रूप में उल्लेखित है। समस्त देवताओं की शक्ति का समुच्चय जो आसुरी शक्ति से देवत्व को बचाने के लिए एकत्रित हुआ था, उसकी आदिकल से आराधना दुर्गा उपासना के रूप में चली आ रही है।
मनीषियों ने नवरात्रि के महत्व को अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने और समझाने का प्रयास किया है। रात्रि में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध समाप्त हो जाते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है। हमारे ऋषि- मुनि आज से हज़ारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इस वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।
दिन में आवाज़ दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी किन्तु रात्रि को आवाज़ दी जाए तो वह दूर तक जाती है। इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावाएक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन में सूर्य की किरणें आवाज़ की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देतीं हैं। रेडियो इस बात का जीता जागता उदाहरण है। कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात् सुनना मुश्किल होता है, जबकि सूर्यास्त के बादछोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है। वैज्ञानिक सिद्धान्त यह है कि सूर्य की किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार रोकतीं हैं, उसी प्रकार मंत्र जाप की विचार तरंगों में भी दिन के समान रुकावट पड़ती है। इसलिये ऋषि- मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है। मन्दिरों में घंटेऔर शंख की आवाज़ के कम्पन से दूर- दूर तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है। यह रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है, जो इस वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं। उनकी कार्य सिद्धि, उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है।
नवरात्र के पीछे का वैज्ञानिक आधार यह है कि पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां हैं जिनमें से मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियां बढ़ती हैं। अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए तथा शरीर को शुद्ध रखने के लिए और तन-मन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम ‘नवरात्र’ है।
नवरात्रि पर 1005 कुंभाभिषेक और 2100 से अधिक चंडी होम आयोजित किए जाते हैं। नवरात्रि पर यज्ञ का भी आयोजन किया जाता है। इस समय में किया गया हवन, पूजा और यज्ञ बहुत अधिक लाभ पहुंचाता है। हवन और यज्ञ करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। इसी कारण से नवरात्रि को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
नवरात्रि को स्वास्थय के दृष्टिकोण से अत्याधिक महत्व दिया जाता है। इस समय व्रत करने से न केवल मानसिक शक्ति प्राप्त होती है। बल्कि शरीर और विचारों की भी शुद्धि होती है। जिस प्रकार से हम नहाकर अपने शरीर की सफाई करते हैं। उसी प्रकार नवरात्रि के इस पावन अवसर पर शरीर के साथ – साथ विचारों की शुद्धि की जाती है। जो अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। जिस समय मौसम बदलता है। उस समय शरीर को रोगों से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाना पड़ता है। नवरात्रि पर व्रत करने से शरीक की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इसलिए नवरात्रि को विशेष माना जाता है।
इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इन मुख्य इंद्रियों के अनुशासन, स्वच्छता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुद्धि, साफ सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सद्चरित्र और क्रमश: मन शुद्ध होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।