दिल्ली विचार

बिटिया दिवस पर विशेष : “तनुजा’

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यह मेरी पूजा का फल है,
इसके बिना जीवन निष्फल है।
सौम्य रूप जैसे चंदा का,
ज्यूँ पावन गंगा का जल है।

यही मेरे नयनों की ज्योति,
बन मेरे आँगन में आई।
जीवन के इस अंधियारे में,
आस किरन बन कर लहराई

जब इसके नयनों से मोती
तुहिन कणों जैसे झरते है।
मेरे उर का लहू रिसता है
आँखों में आँसू भरते है।
,
माँ का शुभ वरदान मिला है,
जीवन का उत्थान हुआ है।
कितने व्रत का पारण करके,
पूरा यह अरमान हुआ है।

मैंने पाली है प्राणों सी,
कोमल किसलय वा फूलों सी।
यह कोयलिया मन उपवन की,।
उर की डाली और झूलों की।

किलकारी से उसके मुख की,
खुशियों घर भर में मुसकाईं।
बांध के मुट्ठी जग में आई ,
मेरा भाग्य साथ में लाई।

उस मुट्ठी में बंधे हुए थे,
मेरी किस्मत के शुचि मोती।
खोल जिसे वह मुझे रोज ही,
ज्यूँ सीपी से मोती देती।

आज वही तन्वी बन आई ,
जैसे फूल लता चुन लाई।
उसका हास रहे फूलों सा,
जीवन में कलियाँ मुसकाईं।

मन की गागर में भर डालीं,
उसने जीवन भर की खुशियाँ।
बेटी बन कर आई घर में ,
वह मेरे आँगन की चिड़िया ।

लेखिका- प्रमोद पारवाला । बरेली (उत्तर प्रदेश )

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