नज़र नज़र में यही इक सवाल होता है।
पराये दर्द का क्यों कर मलाल होता है।।
निभाये उससे भला कैसे दोस्ती कोई।
कि जिसके लहजे में अक्सर उबाल होता है।।
बुलंदियाँ तो सभी को मिला नहीं करतीं।
कभी कभी ही किसी से कमाल होता है।।
किसी को आँख दिखाने से पहले यह सोचो।
लहू का रंग तो सबका ही लाल होता है।।
बला का लुत्फ़ झलकता है उसकी बातों में।
जो उससे मिल ले वो पल में निहाल होता है।।
ऐ ” *हंस”* लोग जो जीते हैं दूसरों के लिए।
जहान भर को ही उनका ख़याल होता है।।
-एस के कपूर “श्री हंस”
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