विचार

अब लौट चलें, प्रकृति की गोद में।

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अब लौट चलें, प्रकृति
की गोद में।

आ अब लौट चलें प्रकृति
की गोद में।
उसी शुद्ध स्वच्छ शीतल
अमोद प्रमोद में।।
वरदायिनी धरती माँ की
सेवा का लें प्रसाद।
संकट ही संकट पाया है
प्रकृति के विरोध में।।

यह आपदा तो बहुत बड़ी
सीखा कर जायेगी।
कैसी हो जीवन शैली ये
दिखा कर बतायेगी।।
हमारा पुरातन खान पान
श्रेष्ठतम दुनिया में।
बात ये सम्पूर्ण विश्व को
सिद्ध कर दिखायेगी।।

आधुनिकता के साथ बात
संस्कृति की भरपूरी है।
प्रकृति के विरुद्ध प्रगति ये
कैसी मजबूरी है।।
खोखली प्रगति की राहें
गिरा देती आसमां से।
विश्व गुरु भारत की हर
शिक्षा बहुत जरूरी है।।
रचयिता।।एस के कपूर श्री हंस
बरेली।

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