कहानी बनी आज संताप की, कड़ी अब जुड़ी वार्तालाप की
न मानी कभी बात माँ-बाप की, चलें आज गठरी लिए पाप की।
भरी ऐंठ इतनी न कुछ भी सुना, कहा कुछ किसी ने उसी को धुना
लड़ी आँख जिससे उसे ही चुना, मगर प्यार का जाल ऐसा बुना
बने फिर कहीं वह कभी आपकी, रखी एक बाला सड़क छाप की
न मानी कभी बात माँ-बाप की, चलें आज गठरी लिए पाप की।
भरी थी जवानी हुए मस्त हम, समझते रहे तब किसी से न कम
भिड़े कौन हमसे किसी में न दम, हुए उस समय थे सभी दूर गम
न चिंता कभी की किसी शाप की, न परमात्मा के लिए जाप की
न मानी कभी बात माँ- बाप की, चलें आज गठरी लिए पाप की।
अनैतिक हुआ जो उसी को नमन, उसी पर समर्पित रहा खूब मन
मिटाई यहाँ वासना की तपन, नए प्राणियों का हुआ आगमन
अधर ने यहाँ प्यार की माप की, मुखों से मिली ऊष्मा भाप की
न मानी कभी बात माँ-बाप की, चलें आज गठरी लिए पाप की।
न सम्वेदना थी यहाँ पर पली, मिली खूब मछली सुरा भी चली
नहीं आस्था अब गई थी छली, उसे मिल गई आज पतली गली
चली खूब दावत चिकन- चाप की, जरूरत पड़ी आज अनुताप की
न मानी कभी बात माँ-बाप की, चलें आज गठरी लिए पाप की।
रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
‘कुमुद- निवास’, बरेली (उ० प्र०)
मोबा- 98379 44187