विचार

बदले की राह पर मोदी सरकार, निशाने पर गांधी परिवार

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
केंद्र की सत्ता पर नरेंद्र मोदी नीत एनडीए सरकार के दोबारा काबिज होने के बाद देश के सियासी और सामाजिक हालातों में कुछ अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिल रहे हैं. कश्मीर और राम मंदिर जैसे मसलों का स्थाई समाधान मिलने के साथ ही गांधी परिवार और उसके करीबियों को निशाना बनाया जाने लगा है. कांग्रेस समर्थक इसे बदले की राजनीति करार दे रहे हैं. लेकिन क्या यह वाकई बदले की राजनीति है? या देश हित में की गई आवश्यक कार्यवाही?
दरअसल, सबसे ज्यादा हंगामा गांधी परिवार की सुरक्षा को लेकर हो रहा है. इस मुद्दे पर पिछले दो दिनों से संसद के शीतकालीन सत्र में हंगामा हो रहा है. बता दें कि देश में सिर्फ चार लोगों को एसपीजी सुरक्षा दी गई थी. इनमें एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और बाकी तीन गांधी परिवार के सदस्य थे. मोदी सरकार ने गांधी परिवार की एसपीजी सुरक्षा उस वक्त वापस ली जब अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना था. संभव है कि मोदी सरकार नहीं चाहती थी कि अयोध्या मसले का हल निकलने के बाद पहले की तरह दंगों का सामना देश की जनता को करना पड़े. ऐसे में गांधी परिवार की एसपीजी सुरक्षा वापस लेने का फैसला कर मोदी सरकार कांग्रेस नेताओं का ध्यान भटकाना चाहती हो. लेकिन ध्यान भटकाने के लिए यह कोई इतना बड़ा फैसला नहीं था जिससे अयोध्या मसले पर संभावित हिंसा को रोका जा सके. हां, अयोध्या पर फैसला आने के ठीक एक दिन पहले किए गए मोदी कैबिनेट के इस फैसले से जनता में एक गलत संदेश गया. जनता में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति और बढ़ गई. जनता यह सोचने पर मजबूर हो गई कि जिस वक्त गांधी परिवार की सुरक्षा और ज्यादा मजबूत करनी चाहिए थी उस वक्त ही उनकी एसपीजी सुरक्षा वापस करने का ऐलान क्यों किया गया. गनीमत रही कि अयोध्या के फैसले के बाद देश में माहौल शांतिपूर्ण बना हुआ है. लेकिन अगर दंगे होते और गांधी परिवार का कोई सदस्य दंगाइयों के निशाने पर आ जाता तो इसका जिम्मेदार कौन होता? ऐसे में अयोध्या पर फैसले से ठीक एक दिन पहले गांधी परिवार की एसपीजी सुरक्षा वापस लेना मोदी सरकार का मूर्खतापूर्ण कदम ही कहा जाएगा. जिसका सीधा सा फायदा कांग्रेस को होगा. संसद में हो रहा हंगामा इस बात का सबसे बड़ा सबूत है.
दूसरा बड़ा मुद्दा संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सामने आया. यह भी कांग्रेस के लिए सहानुभूति की वजह बनेगा. मोदी सरकार ने जलियांवाला बाग राष्ट्रीय स्मारक संशोधन विधेयक राज्यसभा में पास कर दिया. जलियांवाला बाग राष्ट्रीय मेमोरियल एक्ट 1951 के तहत यहां मेमोरियल के निर्माण से लेकर मैनेजमेंट तक का अधिकार ट्रस्ट का है. कांग्रेस अध्यक्ष इस ट्रस्ट का स्थायी सदस्य होता है लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. संशोधन विधेयक के अनुसार सदन के नेता प्रतिपक्ष को यह अधिकार प्राप्त होगा.
दरअसल, 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुए भीषण नरसंहार के बाद कांग्रेस की पहल पर ही इस ट्रस्ट का गठन किया गया था. उस वक्त से ही कांग्रेस अध्यक्ष इसका स्थायी सदस्य होता था. नये कानून के मुताबिक कांग्रेस अध्यक्ष इसका सदस्य नहीं रह पाएगा.
अब सवाल यह उठता है कि अचानक से कांग्रेस अध्यक्ष को इस ट्रस्ट से हटाना इतना जरूरी क्यों हो गया कि उसके लिए तुरंत कानून में संशोधन करना पड़ा.

मोदी सरकार कांग्रेस अध्यक्ष को हटाने के लिये तो तत्काल कानून ले आई लेकिन जलियांवाला बाग की बदहाली दूर करने के लिए कोई भी कदम उठाना जरूरी नहीं समझा. जलियांवाला बाग के शहीदों के परिजनों की आज तक मोदी सरकार ने कोई सुध नहीं ली. जलियांवाला बाग की बदहाली की कहानी भी खुद भाजपा सांसद श्वेत मलिक ने सदन में अपनी जुबानी सुनाई. श्वेत मलिक खुद गुरुनगरी से बिलॉन्ग करते हैं. वह अमृतसर के मेयर भी रह चुके हैं और दस साल तक पंजाब में उन्हीं की अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने ही राज किया है लेकिन तब उन्हें जलियांवाला बाग की कभी याद नहीं आई. क्या किसी ने उन्हें जलियांवाला बाग की बदहाली दूर करने से रोका था?उनका दर्द यह भी था कि कांग्रेस इस ट्रस्ट में अपने लोगों को ही डाल रही है. श्वेत मलिक को इस ट्रस्ट में अचानक से इतना इंट्रेस्ट क्यों जागा. पक्ष या विपक्ष में बोले हों पर मलिक ने कम से कम इस मसले पर अपना तर्क तो दिया लेकिन केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी अब तक कुछ भी नहीं बोले हैं. क्योंकि गुरु नगरी से उन्हें लोकसभा चुनाव में करारी हार झेलनी पड़ी थी. निश्चित तौर पर जलियांवाला बाग से संबंधित यह फैसला मोदी सरकार की ओर से उसकी बेहतरी के लिए तो नहीं ही लिया गया है. अगर ऐसा होता तो जलियांवाला बाग की बदहाली दूर करने के तरीके भी शामिल किए गए होते. उसके विकास का खाका भी तैयार किया गया होता. उसके शहीदों के परिजनों को भी कोई सम्मान या ट्रस्ट में जगह दी गई होती.

अत: मोदी सरकार के इस फैसले ने भी उसकी बदले की पॉलिटिक्स की ओर ही इशारा किया है. कांग्रेस के लिए यह भी सहानुभूति बटोरने का दौर है. मुमकिन है कि भाजपा का अगला निशाना रॉबर्ट वाड्रा हो सकते हैं. वाड्रा को लेकर जो मामले अदालत में हैं उनमें वाड्रा की जमानत याचिका खारिज हो सकती है और उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है.
बहरहाल, मोदी सरकार कांग्रेस को लेकर जिस तरह की कार्रवाई कर रही है उससे एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि कांग्रेस अब तक विरासत में मिले सम्मान पर जो सियासी रोटियां सेंक रही थी वह बीजेपी को हजम नहीं हो रहीं. यही वजह है कि वह कुछ ऐसे बचकाने फैसले ले रही है जिससे खुद उसकी ही फजीहत हो रही. मोदी सरकार को चाहिए कि वह कांग्रेस के खिलाफ ऐसे हथकंडे अपनाना बंद करे जिससे कांग्रेस को ही सहानुभूति मिलने लगे. उसे यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि सहानुभूति की इस लहर ने ही राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की झोली में एक बार फिर सत्ता की चाबी डाल दी थी.

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