सुधीर राघव
पंडित तोताराम मंडी की ओर जा रहे थे. शहर-कस्बों में तो रोज मंडी लगती है. गांवों में लोग साप्ताहिक और पाक्षिक मंडी जाते हैं. पंडित तोताराम जिस मंडी में जा रहे थे, वह तो पूरे पांच साल बाद लगी थी. इसलिए इस मंडी को लेकर उत्साह बहुत ज्यादा था. पंडिताइन के लाख मना करने के बावजूद पंडित तोताराम नहीं माने और सुबह-सवेरे ही नाह धोकर निकल पड़े मंडी. मगर घर से निकलते ही बच्चों ने उन्हें चिढ़ाना शुरू कर दिया – तोताराम तुनक कर चल, पहन ले चड्डी छोड़ दे हल. तोताराम ईंट लेकर बच्चों के पीछे भागे मगर कोई उनके निशाने पर नहीं आया.
पंडित तोताराम अब आम लोगों के लिए भविष्यवाणी नहीं करते थे. वर्ना एक समय तो लोग उनकी भविष्यवाणी के दीवाने थे. वह क्लोज एंडेड प्रश्नों पर बड़ी ही नपी-तुली भविष्यवाणी करते थे, जिसका एक हिस्सा हमेशा सही निकलता था. जैसे कोई उनसे पूछता, पंडीजी मेरे बेटे की नौकरी लगेगी? तो वह एक गंभीर विचारक जैसी मुद्रा बनाकर थोड़ी देर तक सोचते फिर बर्फ जैसे ठंडे और निर्विकार लहजे में जवाब देते, नौकरी लग भी सकती है और नहीं भी.
कुछ लोग मानते थे कि पंडित तोताराम की भविष्यवाणी का पहला हिस्सा सही होता है, जबकि कुछ मानते थे कि दूसरा हिस्सा. इस तरह पंडित तोताराम की भविष्यवाणी ने पूरे गांव को दो खेमों में बांट दिया था. जो यह मानते थे कि भविष्यवाणी का पहला हिस्सा सही होता है वे उपसर्गवादी और जो दूसरे हिस्से को सही मानते थे, प्रत्ययवादी कहलाए. ऐसी भविष्यवाणी को लेकर अक्सर उपसर्गवादियों और प्रत्यय वादियों में दंगे हो जाते थे. क्योंकि उपसर्गवादी कहते भविष्यवाणी का आगे का हिस्सा सच निकलेगा और प्रत्ययवादी कहते पीछे का हिस्सा. इसी बात पर झगड़ा शुरू होता जो जल्द ही दंगे में बदल जाता. शेरों के राज में तो आए दिन ऐसे दंगे होते थे. मगर जब जंगल में गधे का राज आया तो सेठ दुलीचंद सुनामी ने पंडित तोताराम को लोगों के लिए भविष्यवाणी करने से रोक दिया. साथ ही आदेश दिया कि वह अब सिर्फ केलोबेलो के न्यूज चैनलों पर वही भविष्यवाणी करेंगे जो उन्हें बताई जाएगी.
सेठ सुनामी की बात मानने के अलावा तोताराम के पास और कोई विकल्प नहीं था. सेठ सुनामी ने तोताराम का हुलिया भी पूरी तरह बदलवा दिया था. चुटियाधारी तोताराम पहले जनेऊ के साथ कमर पर नीचे सफेद धोती पहनते थे. अक्सर उपसर्गवादियों और प्रत्यय वादियों के झगड़े में कोई न कोई उनकी धोती खींच देता था. इसलिए सेठ सुनामी ने उन्हें जनेऊ के साथ एक बड़ा सा ढीला निक्कर पहनवा दिया, जो कमर पर एक मोटी बेल्ट से कसकर बांधा जाता. इसके खींच दिए जाने का कोई खतरा नहीं था, इसलिए पंडित तोताराम अब ज्यादा कोन्फिडेंट नजर आते. उनका कोन्फिडेंस देखकर लोगों ने मान लिया कि पंडित तोताराम अब ज्यादा ज्ञानी हो गये हैं.
मगर मंडी में अचानक एक निक्कर वाले चुटियाधारी को देखकर किसानों ने तोताराम को घेर लिया. सब उनकी खिल्ली उड़ाने लगे कि मंडी में यह पाखंडी कौन? चुटिया और निक्कर का फ्यूजन किसानों को कन्फ्यूज कर रहा था. उन्होंने समवेत स्वर में गाना शुरू किया – चुटियाधारी चाल न चल, छोड़ दे निक्कर उठा ले हल. घबराए पंडित तोताराम सीधे घर की ओर भागे.