विचार

आत्माओं से सीधी बात-2, गोरखनाथ की विद्या के आगे दस मिनट भी नहीं टिक पाई अतृप्त आत्मा

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नरेश नाथ की कलम से 
शादी विवाह करते वक्त सावधानियां बरतने  और गुरुओं, सिद्धों के आशीर्वाद युक्त उपायों की क्यों आवश्यकता होती है? इसी विषय के संदर्भ में मैं आपको सन 2004 के एक किस्से से रूबरू करवाता हूं. उन दिनों मैैं बैैंक में जॉब करता था. मैं बैंक से शाम को छुट्टी कर आ रहा था. रास्ते में मेरा एक जानकार अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ नई बाइक पर बैठकर मेरे घर के रास्ते की तरफ ही जा रहा था. उसने मुझे देखा और आवाज लगाई. मैं हैरान हो गया और पूछा, तेरी शादी हो गई परंतु तूने मुझे बताया ही नहीं. वह बोला- मैं काफी दिनों से तुझे ही ढूंढ रहा हूं. अब मैं तेरे साथ तेरे घर जाना चाहता हूं. वह मेरे साथ घर आया और मेरे ड्राइंग रूम में पत्नी सहित बैठा. उसकी पत्नी की अजीब हरकतें देखकर मैं उसे अपने अध्यात्म कक्ष में ले गया. दोनों पति-पत्नी वहां बैठकर बातें करने लगे. मैंने पूछा- इसको क्या है. वह बोला अभी तुम्हें पता चल जाएगा. मैंने गुरु गोरखनाथ विद्या का आह्वान किया और 10 मिनट तक वह स्त्री अपने साथ आई अदृश्य शक्तियों के साथ मुझसे वाद-विवाद करने लगी, लेकिन ब्रह्मविद्या और गुरु गोरखनाथ विद्या के आगे सब शक्तियां बेकार होती हैं. हार कर वह अतृप्त आत्मा उसके शरीर से निकलकर काल भैरव की पकड़ में चली गई. फिर वही दंपति नॉर्मल होकर मेरे साथ चाय पी कर अपने धाम की ओर चले गए.
जाते-जाते उन्होंने बताया कि हम सभी तरफ से निराश हो चुके थे और जब भी शादी के बाद कोई भी मंगल कार्य होता था, जैसे- किसी देवा जी द्वारा कीर्तन करना या किसी धार्मिक गुरु द्वारा पाठ करना घर में मंगल कार्य करना हर तरह की विद्या ने उस लड़की के गैर सात्विक ऊर्जा द्वारा खराब हुए शरीर को ठीक नहीं किया जा रहा था. तब मेरे बारे में किसी ने बताया और उसे इस बात का ध्यान आया कि वह नौकरी और परमार्थ की लाइन चलाता है और वही हुआ. आज उनके घर में बच्चे हैं सुखी जीवन है.
उन्होंने गलतियां कई की थीं . जैसे- शादी में पितरों की पूजा नहीं करना, लड़की का थोड़ा अस्वस्थ होने के कारण बिना स्नान के मंडप में फेरे लेना, इत्यादि कर्म किए गए थे और ब्राह्मण द्वारा करवाए गए संस्कारों को नाममात्र रूप से ही पूरा किया गया था. जैसे आज की पीढ़ी कर रही है. शुद्धता के अभाव में और मॉडर्न बनकर शादी करवा ली गई. इस दरम्यान किसी भी जठेरे की पूजा नहीं की गई और किसी भी धार्मिक गुरु या देव की धर्म संगत वोट नहीं ली गई. बाद में दिखावे के लिए धार्मिक कार्यक्रम करवाने शुरू कर दिए गए.
इस सारी कथा का सार यह है कि जब भी कोई मंगल कार्य हो, जिसके बाद आपकी जिंदगी का दूसरा अध्याय शुरू होना हो, उस समय अपने धर्म के अनुसार पूरी रीति का पालन करें. स्वच्छता में ही शुद्धता है, शुद्धता में ही देवता का वास होता है.
जय गुरु गोरखनाथ

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