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लोकसभा चुनाव में सपा की जीत का अहम किरदार थी अल्पसंख्यक सभा, कैसे निकली भाजपा के मुस्लिम प्रेम की हवा और कैसे टूटा बसपा का तिलिस्म, नए चेहरों ने कैसे लिखी जीत की इबारत? बता रहे हैं सपा अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी, पढ़ें स्पेशल इंटरव्यू

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नीरज सिसौदिया, नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव में इस बार उत्तर प्रदेश एकमात्र ऐसा राज्य रहा जहां भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी और जीती हुई सीटें भी उसके हाथों से निकल गईं। इनमें सबसे ज्यादा सीटें ऐसी रहीं जहां मुस्लिम निर्णायक भूमिका में थे। बहुजन समाज पार्टी ने ऐसी कई सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर इंडिया गठबंधन का खेल बिगाड़ने की कोशिश भी की लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिल सकी। इंडिया की इस जीत में अहम भूमिका रही समाजवादी पार्टी की। एक तरह से कहा जाए तो यह चुनाव उत्तर प्रदेश में भाजपा बनाम इंडिया न होकर भाजपा बनाम सपा था। सपा का साथ मिलते ही न सिर्फ कांग्रेस ने अमेठी सीट भाजपा से वापस ले ली बल्कि आधा दर्जन से भी अधिक सीटों पर जीत भी हासिल कर ली। यूं तो इस जीत के कई किरदार रहे लेकिन सबसे अहम किरदार निभाया समाजवादी अल्पसंख्यक सभा ने। समाजवादी अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी के नेतृत्व में न सिर्फ मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मुस्लिम वोटों के बिखराव को रोकने में अल्पसंख्यक सभा ने अहम भूमिका निभाई बल्कि मुस्लिम वोटरों को बूथ तक पहुंचाने का भी काम किया। यही वजह रही कि बड़ी संख्या में मुस्लिम वोट पड़े और इंडिया गठबंधन ने 40 से भी अधिक सीटों पर जीत हासिल कर ली।
समाजवादी अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी बताते हैं, “इस बार लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर कई चुनौतियां थीं। पहली चुनौती अल्पसंख्यक वोटों के बिखराव को रोकने की थी और दूसरी चुनौती बहुजन समाज पार्टी की चुनावी चाल से निपटने की थी। मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर समाजवादी पार्टी को हराने के लिए एक सोची-समझी साजिश के तहत मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। कई जगहों पर मुस्लिम उम्मीदवारों ने अच्छे वोट भी हासिल किए लेकिन हमारी सभा की टीम की मेहनत के चलते बसपा को मुस्लिम वोट नहीं मिल सके और अंबेडकर नगर जैसी सीट जहां बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार को एक लाख से भी अधिक वोट मिले थे, वहां भी सपा ने भारी मतों से जीत हासिल की।’
लोकसभा चुनाव में कुछ मुस्लिम बाहुल्य सीटें ऐसी भी रहीं जहां से पार्टी ने नए चेहरों को मैदान में उतारा था। ऐसे में इन सीटों पर अल्पसंख्यकों को एकजुट करना अल्पसंख्यक सभा के लिए आसान नहीं था।

अपनी टीम के साथ समाजवादी अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी।

शकील नदवी बताते हैं, ‘सबसे बड़ी चुनौती रामपुर लोकसभा सीट पर थी। यहां हमारे नेता आजम खां और उनका परिवार जेल में था। प्रशासन पूरी तरह भाजपा के साथ था और बसपा ने मुस्लिम वोटों के बिखराव के लिए यहां से मुस्लिम प्रत्याशी उतार दिया था। उस पर समाजवादी पार्टी से एकदम नया चेहरा मोहिबुल्ला नदवी को उम्मीदवार बनाया गया था जो पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। लोगों में प्रशासन का बहुत खौफ था। पुलिस प्रशासन की गुंडागर्दी का यह आलम था कि अकेले स्वार विधानसभा क्षेत्र में 30 हजार मुस्लिमों को रेड कार्ड जारी कर दिया गया था। राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के आदेश पर मेरे नेतृत्व में 25 लोगों की टीम रामपुर भेजी गई। हम लोग वहां अप्रैल की शुरुआत से लगभग 17-18 दिन रामपुर में ही रहे। लोगों को समझाया-बुझाया, चुनाव आयोग के समक्ष मुद्दा उठाया और अंतत: हमारी जीत हुई।’
रामपुर के अलावा कैराना, मुजफ्फरनगर, जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, मुरादाबाद, सहारनपुर, मछलीशहर, फिरोजाबाद, संभल जैसी कई सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में है। इनमें कैराना, मुरादाबाद, मछलीशहर, संभल आदि सीटों पर सपा ने नए चेहरों पर भरोसा जताया था। इनमें से ज्यादातर सीटों पर बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे थे। इसके बावजूद अल्पसंख्यक सभा की टीम की कड़ी मेहनत और अखिलेश यादव की रणनीति ने सपा की जीत का परचम लहराया।
अल्पसंख्यक सभा की लोकसभा चुनाव में सक्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि खुद अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश अध्यक्ष शकील नदवी यूपी की 80 में से करीब 45-50 सीटों पर चुनाव लड़वाने गए और अल्पसंख्यक वोटों के बिखराव को रोकने और उसे सपा के पक्ष में लाने में अहम भूमिका निभाई। नतीजतन जिन 45-50 सीटों पर नदवी गए उनमें से करीब 35 सीटें इंडिया गठबंधन के हिस्से में आई।

अल्पसंख्यक वोटों को साधने की नदवी की क्या रणनीति रही? पूछने पर वो बताते हैं, ‘यूपी में सभी चरणों में मतदान हुआ। इससे हमें काम करने के लिए पर्याप्त समय मिल गया। अल्पसंख्यक सभा के स्थानीय पदाधिकारियों को हमने उनके लोकसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंप दी थी। इसके अलावा पूरी प्रदेश की कोर टीम भी लोकसभा क्षेत्र में जाती थी। जैसे- सबसे पहले हमारी महानगर से लेकर प्रदेश तक के पदाधिकरियों की टीम पहले चरण की लोकसभा सीटों पर गई। उसके बाद वही टीम दूसरे चरण की सीटों पर गई और यह सिलसिला अंतिम चरण के मतदान तक चलता रहा।’
निश्चित तौर पर नदवी के नेतृत्व में इस बार अल्पसंख्यक सभा ने जो करिश्मा कर दिखाया वो 2019 के चुनाव में अल्पसंख्यक सभा नहीं दिखा पाई थी।
इस बार समाजवादी अल्पसंख्यक सभा ने भाजपा के पसमांदा महाज की भी हवा निकाल दी है। अगर समाजवादी अल्पसंख्यक सभा इसी सक्रियता के साथ काम करती रही तो निश्चित तौर पर 2027 के विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की सरकार का रास्ता साफ हो सकता है।

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