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70 साल की उम्र में नवाब मुजाहिद हसन खां ने रचा इतिहास, लगातार तीसरी बार निशानेबाजी में जीता गोल्ड मेडल, पढ़ें नवाब मुजाहिद के जुनून, जज्बे और सफलता की कहानी

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नीरज सिसौदिया, बरेली
खेलों की दुनिया में अक्सर कहा जाता है कि उम्र केवल एक संख्या है। इस कहावत को सच साबित किया है वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राष्ट्रीय स्तर के मशहूर निशानेबाज नवाब मुजाहिद हसन खां ने। 70 वर्ष की आयु में भी उन्होंने अपनी सटीक निशानेबाजी से यह दिखा दिया कि जज्बा और मेहनत अगर कायम रहे तो सफलता उम्र की किसी सीमा में बंधी नहीं होती। जयपुर में 30 अगस्त से 7 सितम्बर तक आयोजित 48वीं यूपी स्टेट शॉटगन प्रतियोगिता में नवाब मुजाहिद ने ट्रैप शूटिंग में गोल्ड मेडल जीतकर न केवल बरेली बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश का नाम रोशन कर दिया।
इस प्रतियोगिता में नवाब मुजाहिद की प्रदर्शन क्षमता सभी पर भारी पड़ी। 12 बोर गन से उन्होंने एक के बाद एक सटीक निशाने साधे और 11 बार का ऐसा कमाल किया जो कोई अन्य निशानेबाज नहीं कर पाया। यह गोल्ड मेडल उनके करियर का नया अध्याय तो है ही, साथ ही यह लगातार तीसरा मौका है जब उन्होंने इस प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। तीन साल पहले भी वह इसी मुकाबले में राष्ट्रीय चैंपियन रह चुके हैं।

70 वर्ष की उम्र में ट्रैप शूटिंग में गोल्ड मेडल जीतने का रिकॉर्ड नवाब मुजाहिद हसन खां को बरेली ही नहीं बल्कि संभवतः पूरे प्रदेश का पहला निशानेबाज बना देता है। उनके समर्थकों और खेल प्रेमियों का कहना है कि इस उम्र में इतना बड़ा खिताब जीतना आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
उनकी इस उपलब्धि पर बरेली के स्थानीय लोगों और समर्थकों ने खुशी जाहिर की। समाजवादी पार्टी के पार्षद शमीम अहमद ने कहा—“नवाब मुजाहिद जैसे निशानेबाज पूरे प्रदेश में हमारा मान बढ़ा रहे हैं। हम इस उपलब्धि के लिए उन्हें दिल से बधाई देते हैं। 70 वर्ष की उम्र में उनका यह प्रदर्शन काबिले तारीफ है।”
नवाब मुजाहिद हसन खां का निशानेबाजी से रिश्ता नया नहीं है। युवावस्था से ही वे इस खेल के दीवाने रहे हैं और एक वक्त पर उन्होंने अपने हुनर से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई थी। लेकिन राजनीति में सक्रियता बढ़ने के कारण उन्हें निशानेबाजी से दूरी बनानी पड़ी। लगभग 25 वर्षों तक वे खेल से अलग रहे। इसके बाद जब उन्होंने दोबारा मैदान में वापसी की तो अपने पुराने कौशल और नई ऊर्जा से सबको चौंका दिया। उन्होंने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा कभी बूढ़ी नहीं होती।
नवाब मुजाहिद हसन खां सिर्फ एक सफल खिलाड़ी ही नहीं बल्कि राजनीति में भी उनका सफर लंबा और महत्वपूर्ण रहा है। वर्ष 2017 में वे बरेली कैंट विधानसभा सीट से सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार रहे और भाजपा के दिग्गज नेता राजेश अग्रवाल को कड़ी टक्कर दी थी। अब 2027 के चुनावों को लेकर उनकी सक्रियता एक बार फिर चर्चा में है। उन्हें बरेली कैंट से कांग्रेस का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। खेल और राजनीति, दोनों में उनका यह समानांतर सफर उन्हें एक खास शख्सियत बनाता है।


नवाब मुजाहिद की उपलब्धि सिर्फ व्यक्तिगत गौरव नहीं है, बल्कि यह पूरे खेल जगत के लिए एक बड़ा संदेश है। जहां आज युवा खिलाड़ियों को अक्सर शुरुआती असफलताओं से निराश होकर हार मानते देखा जाता है, वहीं नवाब साहब ने यह दिखा दिया कि दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। उन्होंने यह भी साबित किया कि खेलों में सफलता के लिए उम्र कभी रुकावट नहीं हो सकती।


बरेली खेलों के लिहाज से अब तक उतना बड़ा केंद्र नहीं माना जाता, लेकिन नवाब मुजाहिद हसन खां जैसे खिलाड़ी इस शहर को नई पहचान दे रहे हैं। स्थानीय खेल संघों का मानना है कि उनकी सफलता से जिले में शूटिंग स्पोर्ट्स के प्रति युवाओं का रुझान बढ़ेगा। कई स्थानीय कोच मानते हैं कि नवाब मुजाहिद की प्रेरणा से आने वाले वर्षों में बरेली से और भी बेहतरीन निशानेबाज सामने आ सकते हैं।


नवाब मुजाहिद हसन खां की कहानी उन सभी खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है, जिन्होंने किसी कारणवश अपने खेल करियर को बीच में छोड़ दिया था। उनका संदेश साफ है कि चाहे कितना भी लंबा अंतराल क्यों न हो, अगर दिल में जुनून जिंदा है तो वापसी हमेशा संभव है। उन्होंने खुद को राजनीति और खेल दोनों में साबित किया है और अब उनकी नजरें आने वाले राष्ट्रीय और संभवतः अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों पर भी हो सकती हैं।
जयपुर की प्रतियोगिता में नवाब मुजाहिद की जीत सिर्फ एक गोल्ड मेडल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा संदेश है जो पूरे समाज को प्रेरित करता है। 70 साल की उम्र में उनकी उपलब्धि यह बताती है कि जीत का रास्ता सिर्फ मेहनत, लगन और आत्मविश्वास से ही निकलता है।

इस तरह नवाब मुजाहिद हसन खां की यह उपलब्धि न केवल बरेली और उत्तर प्रदेश के लिए गौरव की बात है, बल्कि यह पूरे देश के खेल प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है।

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