नीरज सिसौदिया, बरेली
नए साल में बरेली की सियासत नई करवट लेने जा रही है। यह साल 2027 में प्रस्तावित उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की दशा और दिशा तय करने वाला होगा। अब तक बिलों में छुपकर बैठे चुनावी बरसात के सियासी मेढक एक बार फिर टरटराते नजर आएंगे। टिकट की टिकटिक रफ्तार पकड़ने वाली है। 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भले अभी दूर हों, लेकिन उनकी तैयारी ज़मीन पर शुरू हो चुकी है। आम तौर पर जो नेता चुनाव के समय ही सक्रिय होते हैं, वे अब खुलकर सामने आने लगे हैं। टिकट को लेकर अंदरखाने बातचीत, जोड़-तोड़ और रणनीति तेज़ हो गई है। बरेली कैंट विधानसभा सीट इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में है और इसकी मुख्य वजह समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ पार्षद, महानगर उपाध्यक्ष और शहर विधानसभा सीट से पूर्व प्रत्याशी राजेश अग्रवाल हैं।
राजेश अग्रवाल सपा के ऐसे नेता हैं, जिनसे न सिर्फ़ भाजपा, बल्कि समाजवादी पार्टी के भीतर के कई दावेदार भी परेशान हैं। वे पिछले लगभग तीन दशक से रामपुर बाग वार्ड से पार्षद चुने जाते रहे हैं। इसके अलावा कैंट विधानसभा क्षेत्र के एक अन्य वार्ड से उनकी पत्नी भी पार्षद रह चुकी हैं। यानी कैंट क्षेत्र की राजनीति, सामाजिक समीकरण और मतदाताओं की नब्ज से वे लंबे समय से जुड़े हुए हैं।
यही वजह है कि अगर समाजवादी पार्टी उन्हें बरेली कैंट से विधानसभा उम्मीदवार बनाती है, तो मुकाबला भाजपा के लिए बेहद कठिन हो सकता है। इस खतरे को भाजपा के स्थानीय नेता और कैंट विधायक संजीव अग्रवाल के करीबी अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि किसी भी कीमत पर राजेश अग्रवाल को सपा का टिकट न मिले। इसके लिए वे जनता के बीच और सपा के शीर्ष नेताओं के सामने उन्हें कमजोर उम्मीदवार के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि राजेश अग्रवाल का विरोध सिर्फ़ भाजपा तक सीमित नहीं है। समाजवादी पार्टी के भीतर भी कुछ मुस्लिम पदाधिकारी खुलकर यह प्रचार कर रहे हैं कि राजेश अग्रवाल कैंट सीट से चुनाव नहीं जीत सकते। इन नेताओं की मंशा है कि इस सीट से सपा किसी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारे। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि कैंट विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है।
लेकिन राजनीति केवल गणित से नहीं, ज़मीनी पकड़ से चलती है। राजेश अग्रवाल यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि मुस्लिम मतदाता परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी को एकतरफा वोट देता आया है। हाल ही में बरेली में हुए दंगों के बाद मुस्लिम वोट और भी ज़्यादा सपा के पक्ष में एकजुट हुआ है। ऐसे में असली मुकाबला हिंदू वोटों को लेकर है। कैंट सीट वही उम्मीदवार जीत सकता है, जो मुस्लिम वोट के साथ-साथ कुछ प्रतिशत हिंदू वोट भी अपने दम पर हासिल कर सके।
राजेश अग्रवाल की सबसे बड़ी ताकत यही मानी जा रही है। वे उन इलाकों से लगातार जीतते आए हैं, जिन्हें भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाता है। रामपुर बाग वार्ड ऐसा ही क्षेत्र है, जहां समाजवादी पार्टी कभी विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकी। इसके बावजूद पार्षद चुनावों में राजेश अग्रवाल लगातार जीतते रहे हैं।
भाजपा ने कई बार उन्हें हराने के लिए ताकतवर उम्मीदवार उतारे। यहां तक कि एक बार भाजपा ने एक पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता के रिश्तेदार को मैदान में उतारा, फिर भी राजेश अग्रवाल को हराया नहीं जा सका। पिछले नगर निगम चुनाव में कैंट विधायक संजीव अग्रवाल के करीबी ब्रजेश मिश्रा को उतारा गया, लेकिन नतीजा वही रहा- जीत राजेश अग्रवाल की हुई।
यही नहीं, कुछ सपा नेता यह तर्क देते हैं कि राजेश अग्रवाल खुर्रम गौटिया और सेमलखेड़ा जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों की वजह से जीतते रहे हैं। लेकिन यह तर्क पूरी सच्चाई नहीं बताता। हाल के चुनाव में राजेश अग्रवाल उस बूथ से भी जीतकर आए, जहां कैंट विधायक संजीव अग्रवाल का खुद का घर आता है। इससे यह साफ हो जाता है कि उनकी जीत सिर्फ़ मुस्लिम वोटों पर आधारित नहीं है।
अगर विधानसभा चुनावों में भाजपा को जिन बूथों पर सपा को वोट मिले और नगर निगम चुनाव में उन्हीं बूथों पर राजेश अग्रवाल को मिले वोटों की तुलना की जाए, तो फर्क साफ दिखाई देता है। यह आंकड़े उन सपा नेताओं के दावों को कमजोर करते हैं जो उन्हें सिर्फ़ एक समुदाय का नेता बताने की कोशिश करते हैं।
पिछले करीब चार वर्षों से राजेश अग्रवाल 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर लगातार काम कर रहे हैं। वे भाजपा के कोर वोट बैंक में चुपचाप सेंध लगाने में लगे हैं। चूंकि प्रदेश में भाजपा की सरकार है, इसलिए कोई भी भाजपाई नेता खुलकर उनका समर्थन नहीं करता, लेकिन अंदरखाने स्थिति अलग है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक धीरे-धीरे उनसे प्रभावित हो रहा है। यही बात भाजपा की सबसे बड़ी चिंता है।
यही कारण है कि भाजपा के कुछ नेता खुद मुस्लिम दावेदारों का प्रचार करते नज़र आ रहे हैं, ताकि सपा से राजेश अग्रवाल के बजाय कोई ऐसा उम्मीदवार उतरे जो भाजपा के लिए कम ख़तरनाक हो। चर्चा यह भी है कि सपा के कुछ शीर्ष मुस्लिम नेता कैंट विधायक और उनके करीबियों के संपर्क में हैं। इन नजदीकियों को आगामी चुनाव में भाजपा के पक्ष में ‘फ्रेंडली फाइट’ की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है।
सूत्र यह भी बताते हैं कि भाजपा एक बड़े मुस्लिम समाजवादी नेता को आगे बढ़ा रही है, ताकि भविष्य में उसे बसपा से उम्मीदवार बनाकर सपा के मुस्लिम वोटों में भी सेंध लगाई जा सके। यह पूरी रणनीति आने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर तैयार की जा रही है।
इन तमाम परिस्थितियों में राजेश अग्रवाल की दावेदारी और मजबूत होती दिख रही है। उन्हें समाजवादी पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं का समर्थन तो है ही, साथ ही भाजपा के भीतर मौजूद असंतुष्ट नेताओं का भी अंदरखाने सहयोग मिल सकता है। हालांकि भाजपा कैंट सीट को ‘हॉट सीट’ बनाने की तैयारी में है। इसके तहत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नेताओं के दौरे कराए जा सकते हैं, ताकि किसी भी तरह सीट को बचाया जा सके।
फिलहाल इतना तय है कि राजेश अग्रवाल की सक्रियता और चुनावी तैयारी ने भाजपा और सपा—दोनों के ही टिकट दावेदारों के होश उड़ा दिए हैं। हालांकि दिल्ली अभी दूर है और टिकट बंटवारे में लगभग एक साल का समय बाकी है। लेकिन बरेली कैंट की सियासत यह साफ संकेत दे रही है कि आने वाले दिनों में यह सीट प्रदेश की सबसे रोचक और चर्चित सीटों में शामिल रहने वाली है।

भाजपाई हों या सपाई, सबके निशाने पर हैं राजेश अग्रवाल, सत्ता पक्ष भी चाहता है कि राजेश अग्रवाल न बनें बरेली कैंट सीट से सपा के उम्मीदवार, जानिए क्या है वजह?




