नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी के संस्थापक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का सोमवार सुबह गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया था। मुलायम सिंह के निधन से पार्टी का हर कार्यकर्ता गमगीन है। खास तौर पर वे लोग जो उनकी सादगी और आत्मीयता के चश्मदीद गवाह रहे हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं इंजीनियर अनीस अहमद खां। अनीस अहमद उस दौर से मुलायम सिंह यादव के संपर्क में रहे हैं जब समाजवादी पार्टी का गठन भी नहीं हुआ था। उस वक्त वह जल निगम में जूनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे और मंडी परिषद में डेपुटेशन पर तबादले के लिए प्रयासरत थे लेकिन विभाग के डायरेक्टर उनका तबादला नहीं होने देना चाहते थे। तब मुलायम सिंह मसीहा बनकर आए और इंजीनियर अनीस अहमद खां के लिए विभागीय सचिव एवं डायरेक्टर को रात में ही तलब कर लिया।
पुरानी यादों को ताजा करते हुए इंजीनियर अनीस अहमद खां बताते हैं कि मुलायम सिंह को यूं ही धरती पुत्र नहीं कहा जाता था। वह तो सादगी, समर्पण और सेवा भाव की मिसाल थे। उन्होंने कभी छोटे-बड़े में कोई भेदभाव नहीं किया। अनीस अहमद आगे कहते हैं, बात वर्ष 1991 की है। तब तिलहर में विधानसभा के उपचुनाव हो रहे थे और मुलायम सिंह समाजवादी जनता पार्टी से मैदान में थे। यह पहला मौका था जब मुलायम सिंह यादव अपना गृहक्षेत्र छोड़कर कहीं बाहर से चुनाव लड़ रहे थे। उनका मुकाबला सिटिंग सांसद और सिटिंग विधायक की पत्नी शकुंतला यादव से था। उस दौरान पहली बार मेरी मुलाकात मुलायम सिंह यादव से हुई थी। तत्कालीन एमएलसी हीरा लाल यादव और फर्रूखाबाद के कायमगंज के तत्कालीन विधायक अनवार खां मेरे पास आए थे। वे मेरे बड़े भाई और तिलहर के तत्कालीन ब्लॉक प्रमुख हामिद सईद खां को कांग्रेस में शामिल करवाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने मुझसे मदद मांगी। नेताजी से मेरी वह पहली मुलाकात थी। मेरे भाई से जब मुलायम सिंह ने हाथ मिलाया तो कहा कि अब यह हाथ कभी छोड़ना मत। नेताजी से उस दौरान मेरी औपचारिक मुलाकातें हुई थीं। फिर मेरा तबादला जलनिगम में कर दिया गया था। बातों-बातों में मैंने नेताजी से डेपुटेशन पर मंडी परिषद में जाने की मंशा जताई थी। फिर चुनाव हुए और नेताजी तकरीबन आठ हजर वोटों से जीत गए। उसके बाद नेताजी ने समाजवादी पार्टी का गठन किया और वर्ष 1993 में मायावती के साथ मिलकर प्रदेश में सरकार बनाई। वर्ष 1993 में मैं एक रात नेताजी से मिलने कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास के बाहर पहुंचा ही था कि उनका काफिला निकलने लगा था। उस वक्त रात के लगभग आठ बजे थे। नेताजी से मैं लगभग डेढ़ साल बाद मिल रहा था लेकिन मुझे देखते ही उन्होंने अपनी गाड़ी रुकवाई और मेरे सामने आकर उनकी गाड़ी खड़ी हो गई। मैं संकोच में था कि नेताजी मुझे पहचानेंगे भी या नहीं लेकिन उनकी सादगी का इससे बड़ा उदाहरण भला और क्या होगा कि नेताजी ने न सिर्फ मुझे पहचाना बल्कि उन्हें मेरा काम भी याद था। उन्होंने तुरंत मुझसे पूछा कि आपका काम हुआ कि नहीं। जब मैंने कहा कि नहीं हुआ तो उन्होंने मौके पर ही तत्कालीन कृषि विभाग के सचिव अनीस अंसारी को मौके पर ही तलब कर लिया। रात में ही कृषि सचिव तत्काल मौके पर पहुंचे तो नेताजी ने उन्हें मौके पर ही आदेश दिया कि तत्काल मुझे डेपुटेशन पर मंडी परिषद में भेजा जाए और जिन अधिकारियों ने अब तक आदेश का पालन नहीं किया है उन सभी के खिलाफ कार्रवाई की जाए। उन्होंने तत्कालीन कृषि निदेशक प्रभुनाथ मिश्रा से आदेश जारी करवाने को कहा। उनके आदेश पर मौके पर ही मेरा तबादला कर दिया गया तो मेरी आंखें खुशी से उनके सामने ही छलक उठीं।
इंजीनियर अनीस अहमद कहते हैं, “नेता जी जैसा नेता इस पूरे भारत के राजनीतिक परिदृश्य में न तो अब तक कोई हुआ है और न ही कोई हो सकता है। धरती पुत्र की उस संज्ञा को सार्थक करने वाली और समाजवाद को नई ऊंचाइयां देने वाली इस महान शख्सियत का जाना उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे हिन्दुस्तान के लिए अपूर्णीय क्षति है। “