पंजाब

इत्तेफाक से आई थीं राजनीति में, फिर जीता सबका दिल और लगा दी जीत की हैट्रिक, अब मारा जीत का चौका, पढ़ें आप नेत्री अरुणा अरोड़ा की अनकही दास्तान

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
जालंधर की सियासत में अरुणा अरोड़ा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है लेकिन एक दौर ऐसा भी था जब उन्हें चुनावी सियासत से कोई लेना -देना नहीं था। वो सिर्फ घर संभालती थीं और उनके पति स्वर्गीय मनोज अरोड़ा सियासत।
बात उन दिनों की है जब मनोज अरोड़ा सियासत के फलक पर सितारों की मानिंद चमक बिखेर रहे थे। उनकी गिनती कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में होने लगी थी। आज से लगभग ढाई दशक पहले सियासत में कदम रखने वाले मनोज अरोड़ा ने पहले दस साल चुनावी राजनीति से दूर जनता की सेवा में निकाल दिए। वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद जब नगर निगम चुनाव आए और मनोज अरोड़ा का चुनाव लड़ना लगभग तय माना जा रहा था तो जिस वार्ड से वह चुनाव लड़ना चाहते थे वो महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया गया। ऐसे में जब कोई विकल्प नहीं बचा तो उन्होंने अपनी पत्नी अरुणा अरोड़ा को चुनाव लड़ाने का फैसला किया। और इस तरह राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करने वाली अरुणा अरोड़ा इत्तेफाकन राजनीति में आ गईं। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगभग 17 साल पहले शुरू हुआ उनकी जीत का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। वह लगातार चौथी बार जीत हासिल करने वाली जालंधर की संभवत: एकमात्र महिला पार्षद हैं।

वार्ड की जनता के साथ जीत का जश्न मनातीं अरुणा अरोड़ा।

शुरूआत में यह माना जा रहा था कि अरुणा अरोड़ा भी अन्य महिला पार्षदों की तरह डमी पार्षद ही बनकर रह जाएंगी लेकिन मजबूत इरादों और सेवा के जज्बे के साथ राजनीति में कदम रखने वाली अरुणा अरोड़ा ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थीं। उन्होंने इस चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि पार भी किया। अपने पहले ही कार्यकाल से उन्होंने घर में कम और पब्लिक में ज्यादा समय देना शुरू किया। उन्होंने अपने वार्ड की समस्याओं को जाना, लोगों की जरूरतों को समझा और एक-एक कर उनकी उम्मीदों को पूरा करती चली गईं। जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया अरुणा अरोड़ा का राजनीतिक कद भी बढ़ता चला गया। उनकी लोकप्रियता का आलम यह हो गया था कि सूबे में सत्ता चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, नगर निगम पर कब्जा चाहे किसी भी पार्टी का रहा हो लेकिन मॉडल टाउन हमेशा अरुणा अरोड़ा के पास ही रहा। उन्होंने जो भी चुनाव जीते अपने काम के दम पर जीत और अबकी बार जब उन्हें आम आदमी पार्टी जैसी ईमानदार पार्टी का साथ मिला, अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान जैसे साफ-सुथरी और ईमानदार छवि वाले नेताओं की पार्टी का साथ मिला तो उन्होंने रिकॉर्ड जीत हासिल कर अपनी प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार वंदना मदान को 1827 वोटों से शिकस्त देकर शानदार जीत हासिल की। अरुणा अरोड़ा को कुल 2202 वोट मिले जबकि वंदना मदान महज 375 वोटों पर ही सिमट गईं।
अरुणा अरोड़ा के लिए यह चुनाव इसलिए भी अहम था क्योंकि इस बार उनके हमसफर और अपने दौर के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय मनोज अरोड़ा इस जहां को छोड़ चुके थे। अब पूरे चुनाव का दारोमदार उनके सुपुत्र अंशुल अरोड़ा और मॉडल टाउन की जनता पर था। यह चुनाव अरुणा अरोड़ा की उस सेवा और मेहनत का भी इम्तिहान था जो उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में अपनी और अपने बेटे की जान जोखिम में डालकर मॉडल टाउन के लोगों के लिए की थी। ये उन तमाम पुरस्कारों की वास्तविकता परखने का भी चुनाव था जिनसे उन्हें राज्यपाल सहित तमाम दिग्गज हस्तियों ने नवाजा था। आखिरकार यह साबित हो गया कि अरुणा अरोड़ा ने वो सारे ईनाम अपनी मेहनत से कमाए थे, किसी की मेहरबानी से नहीं। इस चुनाव ने यह भी साबित कर दिया कि अरुणा अरोड़ा का चेहरा मॉडल टाउन में जीत की सौ फीसदी गारंटी है। साथ ही मॉडल टाउन की जनता ने भी एक बार फिर साबित कर दिखाया कि अगर कोई राजनेता उनके लिए जी-जान लगाता है तो वो भी उस राजनेता को उसकी मेहनत का ईनाम जरूर देते हैं।
बहरहाल, अरुणा अरोड़ा को जनता ने एक बार फिर अपने प्यार से नवाजा है और उसे उम्मीद है कि एक ईमानदार और विकासवादी सोच रखने वाली पार्टी का साथ पाने के बाद अरुणा अरोड़ा एक ऐसी मिसाल पेश करेंगी जो न सिर्फ जालंधर बल्कि पूरे प्रदेश में उनका सिर गर्व से ऊंचा करेगी।

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