पंजाब

तू धरना मत लगाना, मैं तेरी अवैध बिल्डिंग नहीं गिरने दूंगा, जानिए देसराज जस्सल और निगम के बीच क्या हुआ था समझौता

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नीरज सिसौदिया, जालंधर
इन दिनों वार्ड 80 के पार्षद देसराज जस्सल अपनी अवैध बिल्डिंग को लेकर चर्चा में हैं. इस बार उन्हें सुर्खियों में लाने का श्रेय भाजपा नेता नीरज जस्सल को जाता है. नीरज जस्सल भी उसी वार्ड से चुनाव लड़ चुके हैं जिस वार्ड से देसराज जस्सल पार्षद हैं. नीरज बताते हैं कि लगभग 4-5 साल पहले जब नगर निगम पर अकाली भाजपा गठबंधन काबिज था तो देसराज जस्सल ने मकसूदां में अपनी अवैध बिल्डिंग बनानी शुरू की थी. प्रतिबंधित एरिया में होने के कारण उन्होंने इसका विरोध तब भी किया था. इस पर नगर निगम ने तत्काल कार्रवाई की थी लेकिन देसराज उस वक्त कोर्ट की शरण में चले गए थे. मामला न्यायालय में होने के कारण निगम ने उनकी अवैध बिल्डिंग के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. इसी बीच निगम में सत्ता परिवर्तन हुआ और कांग्रेस काबिज हो गई और जगदीश राजा मेयर बने. चूंकि अब कांग्रेस का राज था इसलिए जस्सल की बिल्डिंग पर कार्रवाई का सवाल ही नहीं उठता था. वक्त बीता तो कोर्ट का फैसला भी आ गया. कोर्ट ने जस्सल की बिल्डिंग को अवैध करार देते हुए कहा कि यह बिल्डिंग आर्म्ड बेस ऑर्डिनेंस डिपो के पांच सौ यार्ड के दायरे में आती है. अत: यहां किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं किया जा सकता. जस्सल ने तर्क दिया था कि वह निगम की फीस भर कर बिल्डिंग कंपाउंड करा लेंगे लेकिन कोर्ट में उनका यह तर्क भी नहीं चला और अदालत ने कहा कि यहां बिल्डिंग की अनुमति कानूनी रूप से दी ही नहीं जा सकती. जनवरी 2020 में नगर निगम के पक्ष में फैसला सुनाते हुए अदालत ने जस्सल की बिल्डिंग को अवैध करार दे दिया. इस बिल्डिंग को गिराने के आदेश पहले ही निगम कमिश्नर कर चुके हैं.
नीरज आगे बताते हैं कि पिछले साल दिसंबर माह में देसराज ने जनसमस्याओं को लेकर मेयर जगदीश राज राजा के खिलाफ मोर्चा भी खोल रखा था. देसराज ने निगम के खिलाफ धरने पर बैठने की चेतावनी भी दी थी. लेकिन अगले ही महीने देसराज की बिल्डिंग का फैसला आ गया और देसराज ढीले पड़ गए. उन्होंने कहा कि मेयर राजा और देसराज ने आपस में ही समझौता कर लिया है कि न तो देसराज मेयर के खिलाफ धरना देंगे और न ही मेयर देसराज की बिल्डिंग डिमॉलिश करेंगे. यही वजह रही कि नगर निगम पिछले छह महीने से अदालती आदेशों को दबाए हुए है. अब जबकि अदालत के आदेश की प्रति भाजपा नेता नीरज जस्सल के पास पहुंच गई तो हंगामा खड़ा हो गया. अब देसराज चौतरफा घिर चुके हैं.

नीरज जस्सल और देसराज जस्सल

वैसे तो देसराज की बिल्डिंग के आसपास बने बैंक, हास्पिटल और पेट्रोल पंप तक अवैध हैं लेकिन चूंकि अदालत ने सिर्फ देसराज की बिल्डिंग के खिलाफ आदेश दिए हैं इसलिए उनकी बिल्डिंग पर कार्रवाई करना निगम की मजबूरी बन गई है. अगर देसराज के पूर्व मंत्री अवतार हैनरी से अच्छे संबंध होते तो शायद जस्सल को राहत मिल भी सकती थी लेकिन ऐसा नहीं है. इसलिए देसराज की बिल्डिंग पर डिच चलना तय है.
अगर निगम देसराज की बिल्डिंग पर कार्रवाई नहीं करता तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा और निगम पर अदालत के आदेश की अवमानना की कार्रवाई भी की जा सकती है.
जस्सल अगर विरोध भी करना चाहें तो नहीं कर पाएंगे क्योंकि अगर उन्होंने विरोध किया तो कार्रवाई की जद में उन लोगों की बिल्डिंगें भी आ सकती हैं जो देसराज के आसपास बनी हैं या कहें कि ऑर्डिनेंस डिपो के प्रतिबंधित क्षेत्र में बनी हैं. अगर देसराज इसका हवाला देते हुए शीर्ष अदालत की शरण में भी जाते हैं तो कहीं हालात नया बाजार जैसे न हो जाएं. नया बाज़ार में दो लोगों की लड़ाई के चक्कर में पूरे बाजार की दुकानें तोड़नी पड़ी थीं. हालांकि वहां की कुछ दुकानों पर कार्रवाई के मामले को निगम अभी भी दबाए बैठा है. अगर नया बाजार की तरह देसराज अन्य अवैध बिल्डिंगों का हलाला देते हैं तो उनकी सियासत खतरे में पड़ सकती है. जिनके मकान गिराए जाएंगे वो देसराज को पार्षद भला क्यों बनाएंगे. बता दें कि यहां की जनता ने उस वक्त भी देसराज को पार्षद चुना था जब पार्टी ने उन्हें टिकट देना भी जरूरी नहीं समझा था. ऐसे में देसराज की नाव मझधार में फंसी हुई है. एक तरफ कुआं है तो दूसरी तरफ खाई. या तो वह अपनी लाखों रुपए की बिल्डिंग ही बचा सकते हैं या अपनी सियासत.

बिल्डिंग इंस्पेक्टर नीरज शर्मा के कार्यकाल में बन गईं कई अवैध दुकानें और कॉलोनियां
मकसूदां में अवैध निर्माण के दोषी बिल्डिंग इंस्पेक्टर नीरज शर्मा भी हैं. नीरज शर्मा इस इलाके में बतौर बिल्डिंग इंस्पेक्टर लंबा समय गुजार चुके हैं. उनके कार्यकाल में यहां सैकड़ों की तादाद में अवैध बिल्डिंगों और अवैध कॉलोनियों का निर्माण हो चुका है. देसराज जस्सल की बिल्डिंग को जिस 223 एबीओडी का हवाला देते हुए अदालत ने अवैध करार दिया है उसके दायरे में कई और अवैध बिल्डिंगें और कॉलोनियां नीरज शर्मा के कार्यकाल में बनाई गई हैं. इसके लिए नीरज शर्मा को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त किया जाना चाहिए था लेकिन राजनीतिक संरक्षण के चलते ऐसा नहीं किया गया.

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