नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली नगर निगम इन दिनों भ्रष्टाचार और मनमानी का गढ़ बन चुका है। स्थिति यह है कि यहां जिन अधिकारियों और कर्मचारियों पर शहर की स्वच्छता, प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण की जिम्मेदारी है, वे अपने असली काम को छोड़कर भ्रष्टाचार और धन उगाही में व्यस्त हैं।
सबसे चौंकाने वाला नाम नगर निगम के पर्यावरण अभियंता राजीव राठी का है। शासनादेश में पर्यावरण अभियंता की जिम्मेदारियां साफ-साफ लिखी हैं – जैसे ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, सीवर और नालों की सफाई, सीटी सैनिटेशन प्लान तैयार करना, सार्वजनिक शौचालयों और नदी घाटों की सफाई, प्लास्टिक और निर्माण मलबे का निस्तारण, प्रदूषण नियंत्रण और जनता की भागीदारी वाले कार्यक्रम चलाना। इन आदेशों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि उनसे किसी तरह का सिविल काम नहीं लिया जाएगा, ताकि वे पर्यावरण संबंधी कर्तव्यों पर पूरी तरह ध्यान दें।
लेकिन बरेली नगर निगम में ठीक उल्टा हो रहा है। राजीव राठी पर आरोप है कि वे पर्यावरण सुधार की जिम्मेदारियों से ध्यान हटाकर ठेकेदारों और निर्माण कार्यों से जुड़े अन्य कामों में उलझे हुए हैं। कहा जा रहा है कि इन कामों के जरिए उन्होंने करोड़ों की कमाई की है। यहां तक कि रिश्वत लेने की भी बातें सामने आई हैं। नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य इस पूरे मामले पर आंखें मूंदे बैठे हैं और सरकार भी खामोश है।
इसके अलावा एक और बड़ी गड़बड़ी नगर निगम में देखने को मिल रही है। निगम का एक आउटसोर्सिंग कर्मचारी ही इन दिनों असली बॉस बनकर बैठा है। जिन कामों के लिए निगम के क्लर्क तैनात हैं, वे सब इस आउटसोर्स कर्मचारी के हाथों में चले गए हैं। टेंडर से लेकर कागजी कार्रवाई तक पूरा खेल उसी के इशारों पर चलता है। सूत्र बताते हैं कि उसने ठेकेदारों से वसूली करके करोड़ों रुपए कमाए हैं। इसी काली कमाई से उसने महंगी कार खरीदी और ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा है। सवाल उठता है कि मामूली वेतन पाने वाला कर्मचारी आखिर इतनी बड़ी लाइफस्टाइल कैसे जी रहा है?
नगर निगम के कई पार्षद और कर्मचारी इस खेल से नाराज हैं, लेकिन उनकी आवाज दबा दी जाती है। उन्हें डर है कि इस भ्रष्ट गठजोड़ में नगर निगम के बड़े अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं। यही वजह है कि आउटसोर्स कर्मचारी पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हो रही है।
इसी तरह, राजीव राठी की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। कहा जाता है कि उन्हें नियमों के विरुद्ध कई अतिरिक्त जिम्मेदारियां दे दी गईं और उन्होंने इनका इस्तेमाल निजी लाभ के लिए किया। कुछ कर्मचारियों का तो यहां तक कहना है कि राठी ने इन जिम्मेदारियों की आड़ में अकूत संपत्ति जुटा ली है।
शहर के लोगों का मानना है कि अगर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या सीबीआई इन दोनों—पर्यावरण अभियंता राजीव राठी और आउटसोर्सिंग कर्मचारी—की संपत्तियों की जांच करे, तो बड़ा घोटाला सामने आ सकता है। इससे सिर्फ इन दोनों की ही नहीं, बल्कि नगर निगम से जुड़े कुछ बड़े मगरमच्छों की गर्दन भी फंस सकती है।
कुल मिलाकर, बरेली नगर निगम में भ्रष्टाचार की परतें लगातार मोटी होती जा रही हैं। एक ओर शहर की गंदगी, नाले और प्रदूषण की समस्या जस की तस बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर अधिकारी और कर्मचारी जनता के पैसे से अपनी तिजोरियां भरने में लगे हुए हैं। सवाल यह है कि आखिर सरकार और प्रशासन कब जागेगा और इस भ्रष्ट तंत्र पर नकेल कसेगा?