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नगरायुक्त ने नियमों को तोड़कर जेई राजीव शर्मा को बिठाया था उच्च पद पर, चीफ सेक्रेटरी ने हटाया, करोड़ों का हुआ खेल, पढ़ें आदेश की कॉपी

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नीरज सिसौदिया, बरेली
नगर निगम बरेली भ्रष्टाचार का अड्डा बनता जा रहा है. निजी स्वार्थ के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाने में आईएएस अधिकारी भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. शासनादेशों को अधिकारियों ने अपने हाथों की कठपुतली बनाकर रख दिया है. नगर आयुक्त की मनमानी का ऐसा ही एक मामला चीफ सेक्रेटरी तक पहुंचा तो उन्होंने कार्रवाई करते हुए तत्काल प्रभाव से सहायक अभियंता का काम देख रहे अवर अभियंता को तत्काल प्रभाव से सहायक अभियंता के पद से हटाने का आदेश दिया. साथ ही मुख्य प्रकाश अधीक्षक का कार्यभार भी वापस ले लिया गया है.


दरअसल, नगर निगम में करोड़ों रुपये के काले खेल को अंजाम देने के लिए तैनाती के इस खेल को अंजाम दिया गया था. अवर अभियंता के पद पर तैनात राजीव शर्मा को सहायक अभियंता के साथ ही मुख्य प्रकाश अधीक्षक के पद पर भी बैठा दिया गया था. जबकि
राज्यपाल के आदेश पर 9 नवंबर 1990 के शासन द्वारा जारी राजाज्ञा में यह लिखा है कि किसी भी अवर को प्रवर नहीं बनाया जा सकता. अगर कहीं किसी अधिकारी को उसके पद से बड़े पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है तो उसे तत्काल हटाया जाए. इसी के आधार पर डायरेक्टर लोकल बॉडी डॉक्टर काजल ने जुलाई माह में एक राजाज्ञा जारी की कि जो आदमी जिस पद पर है उसी पद का काम देखेगा. अपने से बड़े पद का काम नहीं देखेगा. अगर ऐसे किसी व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जाती है उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इसकी लगातार शिकायतें पूर्व पार्षद राजेश तिवारी मंडलायुक्त से लेकर मुख्यमंत्री तक करते रहे. इसके बावजूद नगर आयुक्त अभिषेक आनंद ने कोई कार्रवाई नहीं की. तिवारी बताते हैं कि नगर आयुक्त सब कुछ जानते हुए भी नियमों को ताक पर रखकर राजीव शर्मा पर पूरी तरह मेहरबान हो गए. इसका नतीजा यह रहा कि अपने सहायक अभियंता पद के कार्यकाल में राजीव शर्मा ने पद का दुरुपयोग कर अवैध कालोनियों में लगभग सौ करोड़ रुपये से भी अधिक की सड़के बनवाकर नगर निगम के राजस्व को चपत लगा दी. नगर आयुक्त की मेहरबानियां यहीं तक सीमित नहीं रहीं. नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों के राजस्व की चपत लगाने वाले राजीव शर्मा को मुख्य प्रकाश अधीक्षक का पद भी सौंप दिया. यह पद इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के लिए है और राजीव शर्मा सिविल के हैं. ऐसा भी नहीं था कि नगर आयुक्त के पास कोई विकल्प नहीं था. नगर आयुक्त चाहते तो प्रकाश अधीक्षक वीके उपाध्याय को यह जिम्मेदारी सौंप सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. वीके उपाध्याय को दरकिनार कर उनसे छोटे पद के राजीव शर्मा को यह पद दिया गया. सेक्शन 290 के अनुसार जब तक कोई भी अवैध कॉलोनी नगर निगम में समाहित नहीं होगी तब तक उन्हें कोई सुविधा नहीं दी जा सकती है. फिर राजीव शर्मा ने कैसे अवैध कॉलोनियों में सड़कें बनवा दीं. 70 से 80 हजार रुपये में 80 ऑर्नामेंंटल पोल लगवा दिये जो 20-25 हजार रुपए में लगवाए जा सकते थे. तिवारी कहते हैं कि इसी भ्रष्टाचार को अंजाम देने के लिए राजीव शर्मा को अयोग्य होने के बाद भी सहायक अभियंता और मुख्य प्रकाश अधीक्षक जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठा दिया गया. पिछले लगभग एक साल के दौरान जिस तरह से अवैध कॉलोनियों में सड़क निर्माण के नाम पर करोड़ों रुपये खपाकर अधिकारियों ने अपनी जेबें गरम की हैं उससे स्पष्ट है कि नगर निगम में भ्रष्टाचार चरम पर है. इसका ताजा उदाहरण बन्नूवाल कॉलोनी है जहां नियमों को ताक पर रखकर ढाई करोड़ रुपये की सड़के कॉलोनाइजर को लाभ पहुंचाने के लिए बनवा दी गईं. राजीव शर्मा को तो सिर्फ मोहरा बनाया गया है. असल खिलाड़ी तो उसे इन पदों पर बैठाने वाले जिम्मेदार हैं. इन जिम्मेदारों के खिलाफ फिलहाल कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है. बता दें कि नगर आयुक्त अभिषेक आनंद पर पहले ही भ्रष्टाचार के आरोप खुद मेयर उमेश गौतम लगा चुके हैं. वहीं राजेश तिवारी पिछले लगभग छह माह से राजीव शर्मा को मोहरा बनाकर किए जा रहे इस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. कई बार शिकायत होने के बाद आखिरकार मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया और राजीव शर्मा को तत्काल प्रभाव से उक्त पदों से हटाने के आदेश दिए. फिलहाल राजीव शर्मा को तो हटा दिया गया है लेकिन उसे इस पद पर बैठाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
करोड़ों रुपये की सड़कें अवैध कॉलोनियों में बनवाकर जो करोड़ों रुपये बर्बाद किए गए हैं उसकी भरपाई कहां से होगी? क्या यह राशि राजीव शर्मा से वसूल की जाएगी अथवा उसे इन जिम्मेदार पदों पर बैठाने वालों से वसूलेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा.

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