यूपी

ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने पर निर्माण विभाग का क्लर्क निलंबित, राजनीतिक दबाव में नहीं हो सकी एफआईआर, ठेकेदारों पर कब होगी कार्रवाई

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नीरज सिसौदिया, बरेली
नगर निगम बरेली भ्रष्टाचार का गढ़ बनता जा रहा है. कहीं लोगों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रही हैं तो कहीं नियमों की धज्जियां उड़ा कर करोड़ों रुपये के वारे न्यारे किये जा रहे हैं. विभागीय अधिकारी भी कभी निजी स्वार्थ के चलते तो कभी राजनीतिक दबाव में ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने में लगे हुए हैं. ताजा मामला निर्माण विभाग का सामने आया है. यहां तैनात लिपिक संजीव कुमार को नियमों को ताक पर रखकर ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के आरोप में निलंबित कर दिया गया है. नगर आयुक्त अभिषेक आनंद की ओर से जारी पत्र के अनुसार, संजीव कुमार लिपिक द्वारा निर्माण विभाग में अनुबंध जैसे महत्वपूर्ण कार्यों का संपादित किया गया.संजीव कुमार पर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे| इस संबंध में मुख्य अभियंता निर्माण द्वारा दिसंबर माह में कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था| इस नोटिस के जवाब में दिए गए उत्तर का मुख्य अभियंता द्वारा परिशीलन करने के उपरांत संजीव कुमार पर पत्रावली यों में नंबरिंग की कटिंग करना अभिलेखों और एफडीआर को बाद में संलग्न करना और एफडीआर बदलकर अनुबंध संपादित करने के आरोप सिद्ध हुए हैं| शासकीय अभिलेखों में हेराफेरी और विभाग के प्रति निष्ठावान ना होकर ठेकेदार की प्रति निष्ठा रखने के आरोप में उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली के प्रावधानों के प्रतिकूल आचरण के लिए संजीव कुमार को दोषी पाया गया है| अतः उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है| अब सवाल यह उठता है कि संजीव कुमार ने जिन ठेकेदारों को अनुचित तरीके से लाभ पहुंचाया है उनके खिलाफ विभाग कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा| ऐसे ठेकेदारों को ब्लैक लिस्टेड क्यों नहीं किया जाना चाहिए| जब नियमों को ताक पर रखकर ठेके आवंटित किए जाएंगे तो फिर कार्य में गुणवत्ता कैसे आएगी| इस पर नगर निगम के मेयर उमेश गौतम और नगर आयुक्त अभिषेक आनंद का ध्यान क्यों नहीं गया| अगर उनका ध्यान गया तो फिर ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई के लिए उन्होंने कोई एक्शन अब तक क्यों नहीं| ऐसे कई सवाल हैं जो नगर निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के सामने आने के बाद उठने लगे हैं| अब देखना यह होगा कि क्या नियर उमेश गौतम और नगर आयुक्त अभिषेक आनंद इन ठेकेदारों को काली सूची में डालेंगे अथवा नहीं| हालांकि मामले में नगर आयुक्त की ओर से अपर नगर आयुक्त को जांच अधिकारी नामित करते हुए 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट देने को कहा गया है.
बताया जाता है कि संजीव कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की तैयारी की जा रही थी लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते ऐसा नहीं हो सका.

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