नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली नगर निगम इन दिनों भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। मंगलवार को 50 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों टैक्स विभाग के इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि नगर निगम में भ्रष्टाचार चरम पर है। लेकिन गिरफ्तार इंस्पेक्टर तो भ्रष्टाचार के इस समुंदर की एक छोटी सी मछली है। असल भ्रष्टाचार तो कथित तौर पर नगर निगम के ठेकों को लेकर हो रहा है। यहां मोटे-मोटे कई मगरमच्छ बैठे हुए हैं। भ्रष्टाचार के इस समुंदर का सबसे बड़ा मगरमच्छ तो खुलेआम ठेका कंपनियों को संरक्षण दे रहा है। आखिर वह सबसे बड़ा मगरमच्छ कब पकड़ा जाएगा? पकड़ा जाएगा भी या नहीं? यह सबसे बड़ा सवाल है।
दरअसल, नगर निगम के रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले लगभग दो वर्षों के भीतर बरेली नगर निगम के ज्यादातर टेंडर सिर्फ चार ठेका कंपनियों को ही दिए गए हैं। इनमें राजीव ट्रेडर्स, सत्य साईं, लविश और कैलाश कंस्ट्रक्शन हैं। नगर निगम के टेंडर के खेल में इन्हीं चार कंपनियों का वर्चस्व बना हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि इन कंपनियों को तय दर से आधा से एक प्रतिशत कम रेट में भी कुछ टेंडर आवंटित किए गए हैं जबकि आईएस तोमर और सुप्रिया ऐरन के महापौर पद के कार्यकाल के दौरान तय रेट से 15 से 25 प्रतिशत तक बिलो रेट पर टेंडर आवंटित किए जाते थे। वहीं, पीडब्ल्यूडी के टेंडर तो मौजूदा समय में भी 10 से 20 प्रतिशत तक कम दरों में आवंटित किए जा रहे हैं।
हाल ही में समाजवादी पार्टी के शहर विधानसभा सीट से पूर्व प्रत्याशी और मौजूदा पार्षद राजेश अग्रवाल ने नगर निगम में टैक्स विभाग में भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। उस वक्त इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया लेकिन अब जबकि मंगलवार को एक टैक्स इंस्पेक्टर को 50 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया गया है तो इस भ्रष्टाचार का खुलासा अपने आप ही हो गया है।
उम्मीद जताई जा रही है कि अब नगर निगम के भ्रष्टाचार में कुछ कमी आएगी या यूं कहें कि कुछ दिनों तक जनता को राहत मिलेगी। लेकिन इस तरह की कार्रवाइयां पहले भी होती रहीं है और महज खानापूर्ति बनकर ही रह गई हैं। सिर्फ छोटी मछलियां ही शिकंजे में आती रही हैं, बड़े-बड़े मगरमच्छ आज भी खुले घूम रहे हैं।
