नीरज सिसौदिया, बरेली
समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यक सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष इंजीनियर अनीस अहमद खां हाल ही में एक धार्मिक यात्रा से लौटे हैं, जिसने न केवल उनकी आध्यात्मिक अनुभूति को गहराई दी, बल्कि भारत और ईराक के बीच धार्मिक-सांस्कृतिक संबंधों को भी एक नई दिशा दी है। 1 अक्टूबर से 17 अक्टूबर तक चली यह यात्रा इस्लामी इतिहास और सूफी परंपराओं से ओतप्रोत रही। इस दौरान उन्होंने बगदाद शरीफ, करबला शरीफ और नजफ जैसे इस्लामी आस्था के तीन सबसे पवित्र स्थलों की ज़ियारत की और पूरी उम्मत-ए-मुस्लिम के लिए अमन, भाईचारा और तरक्की की दुआ मांगी। इंजीनियर अनीस अहमद खां की यह पहली ईराक यात्रा थी।
इंजीनियर अनीस अहमद खां यह यात्रा 11वें शरीफ के पाक अवसर पर करने पहुंचे थे। यह दिन गौस-ए-आजम हजरत अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह की याद में मनाया जाता है। सूफी मत के अनुयायियों के लिए यह तारीख अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, जब दुनिया भर से लाखों जायरीन बगदाद शरीफ पहुंचकर अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक की याद में फातिहा पढ़ते हैं और दुनिया में अमन-चैन के लिए दुआ करते हैं।

बगदाद शरीफ – सूफी सिलसिले का केंद्र
बगदाद शरीफ को इस्लामी दुनिया में रूहानियत की राजधानी कहा जाता है। यहीं पर गौस-ए-आजम हजरत अब्दुल कादिर जीलानी का रौजा शरीफ स्थित है, जिनकी शिक्षाओं ने इंसानियत, मोहब्बत और बराबरी का संदेश दिया। इंजीनियर अनीस अहमद खां ने यहां हाजिरी लगाई, फातिहा पढ़ी और देश में शांति एवं सौहार्द की दुआ मांगी। उन्होंने बताया कि “बगदाद शरीफ की रूहानी फिज़ा में जो सुकून है, वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। वहां हर कोई इंसानियत का पैगाम महसूस करता है।”
करबला शरीफ – बलिदान और इंसाफ की मिसाल
इसके बाद उन्होंने करबला शरीफ का रुख किया, जहां हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों ने हक़ और इंसाफ के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। करबला का मैदान इस्लाम के इतिहास का वह अध्याय है, जो इंसानियत, त्याग और सत्य के लिए संघर्ष का प्रतीक है। इमाम हुसैन की कुर्बानी दुनिया को यह सिखाती है कि अन्याय और अत्याचार के सामने सिर नहीं झुकाना चाहिए। इंजीनियर अनीस अहमद खां ने करबला में रौजा-ए-इमाम हुसैन पर हाजिरी दी और देश में एकता, भाईचारा और न्याय की स्थापना की दुआ मांगी।
उन्होंने कहा, “करबला की धरती हर इंसान को यह सिखाती है कि सच्चाई की राह मुश्किल जरूर होती है, लेकिन वही इंसानियत की असली जीत है।”
नजफ – ज्ञान और अध्यात्म की नगरी
यात्रा का तीसरा पड़ाव था नजफ, जहां हजरत अली इब्ने अबी तालिब, जो इस्लाम के चौथे खलीफा और पैगंबर मोहम्मद साहब के दामाद थे, का मजार शरीफ है। नजफ को ज्ञान और तालीम की धरती कहा जाता है। यहां मौजूद हौज़ा इल्मिया दुनिया का एक प्रमुख इस्लामी शिक्षाकेंद्र है, जहां सदियों से इस्लामी विचारधारा और तालीम की मशाल जल रही है।
इंजीनियर अनीस अहमद खां ने नजफ में भी रौजा शरीफ पर हाजिरी दी और बताया कि वहां की फिज़ा में रूहानी सुकून और इल्म की खुशबू बसती है। उन्होंने कहा कि “नजफ हमें यह सिखाता है कि इल्म (ज्ञान) ही इंसान को सही रास्ता दिखाता है, और यही अल्लाह की सबसे बड़ी नेमत है।”
सज्जादानशीन से मुलाकात और न्यौता
अपनी इस पवित्र यात्रा के दौरान इंजीनियर अनीस अहमद खां ने बगदाद शरीफ में मौजूद 70वें सज्जादानशीन से भी मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने हिन्दुस्तान की ओर से मोहब्बत और भाईचारे का पैगाम दिया और उन्हें भारत आने का न्यौता भी सौंपा। उन्होंने कहा कि “भारत और ईराक दोनों मुल्क सूफी परंपरा के जरिए दुनिया को मोहब्बत और अमन का संदेश देते हैं, इसलिए इन रिश्तों को और मजबूत करने की जरूरत है।”
बरेली में हुआ भव्य स्वागत
17 अक्टूबर को जब इंजीनियर अनीस अहमद खां वतन लौटे, तो बरेली में उनका भव्य स्वागत किया गया। समाजवादी पार्टी के महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी और पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें फूलमालाओं से लाद दिया। पार्टी कार्यकर्ताओं ने कहा कि इंजीनियर साहब की यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही, बल्कि इससे समाजवादी पार्टी के भीतर भी धार्मिक-सांस्कृतिक संवाद को नई ऊर्जा मिली है।
अमन और इंसानियत का पैगाम
इंजीनियर अनीस अहमद खां की यह यात्रा केवल धार्मिक नहीं थी, बल्कि इसमें इंसानियत, एकता और मोहब्बत का गहरा संदेश भी निहित था। उन्होंने लौटकर कहा—
“आज दुनिया को सबसे ज्यादा जरूरत अमन और भाईचारे की है। जब तक इंसान एक-दूसरे के मजहब का सम्मान नहीं करेगा, तब तक असली तरक्की मुमकिन नहीं। मैंने ईराक की धरती पर यही दुआ मांगी कि हिन्दुस्तान और पूरी दुनिया में अमन कायम रहे।”
बगदाद से करबला और नजफ तक की यह रूहानी यात्रा एक ऐसी दास्तान है जो बताती है कि धर्म का असली मकसद इंसान को जोड़ना है, तोड़ना नहीं। इंजीनियर अनीस अहमद खां ने अपने इस सफर से इस संदेश को और बुलंद किया है।