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फिर विवादों में घिरे मेयर उमेश गौतम, सूटकेस और लिफाफों से राजनीतिक निष्ठा खरीदने की कोशिश, जिन्हें पार्टी से करना चाहिए था निष्कासित उन्हें भी किया सम्मानित, बरेली की सियासत में मचा बवाल, पढ़ें किसे क्या मिला?

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नीरज सिसौदिया, बरेली
बरेली में दीपावली के त्योहार के साथ-साथ अब एक नए ‘गिफ्ट कांड’ की चर्चा जोरों पर है। शहर के मेयर और भाजपा नेता उमेश गौतम इस बार अपनी कथित उदारता को लेकर सुर्खियों में हैं। बताया जा रहा है कि दीपावली के अवसर पर उन्होंने पार्टी के तमाम पदाधिकारियों, भाजपा पार्षदों, नगर निगम के उपसभापति, उपनेता, कार्यकारिणी सदस्यों, अधीनस्थ कर्मचारियों, और यहां तक कि पिछले चुनाव में भाजपा से बगावत करने वाले नेताओं तक को महंगे उपहार और नकदी भेंट की। इस पूरे आयोजन ने न सिर्फ भाजपा संगठन के भीतर खलबली मचा दी है, बल्कि शहर की सियासत में भी तूफान ला दिया है।
सूत्रों के अनुसार, मेयर गौतम ने दीपावली पर आयोजित अपने विशेष कार्यक्रम में उपस्थित नेताओं और पदाधिकारियों को वीआईपी कंपनी का सूटकेस और नकद राशि के लिफाफे वितरित किए। बताया जाता है कि इन सूटकेस की एमआरपी करीब 10 हजार रुपये है। वहीं, लिफाफों में रखी गई रकम व्यक्ति के पद और नजदीकी के हिसाब से अलग-अलग थी।
कार्यक्रम में सबसे पहले बरेली महानगर के अंतर्गत आने वाले शहर और कैंट विधानसभा क्षेत्र के नौ मंडल अध्यक्षों को बुलाया गया। प्रत्येक मंडल अध्यक्ष को 10-10 हजार रुपये के लिफाफे के साथ एक सूटकेस दिया गया। इसके बाद नगर निगम की उपनेता और उपसभापति को भी यही तोहफा दिया गया—10-10 हजार रुपये के लिफाफे के साथ एक-एक सूटकेस।


इसके बाद नगर निगम कार्यकारिणी के सदस्यों की बारी आई। इन्हें भी समान मूल्य के लिफाफे और सूटकेस दिए गए। फिर बारी आई भाजपा के पार्षदों की। पार्षदों को 5-5 हजार रुपये के लिफाफे के साथ सूटकेस दिए गए। इतना ही नहीं, पार्टी के अन्य पदाधिकारियों, अधीनस्थ कर्मचारियों और कुछ अन्य नेताओं को भी तोहफे में नकदी दी गई।

उपहार में दिए गए सूटकेस का टैग

बगावत करके चुनाव लड़ने वाले नेताओं को भी सम्मान
इस पूरे आयोजन में सबसे अधिक चर्चा का विषय बना बगावती नेताओं को सम्मान देना। पार्टी अनुशासन के हिसाब से यह कदम सबसे विवादास्पद माना जा रहा है। जिन नेताओं ने पिछला नगर निगम चुनाव पार्टी के खिलाफ लड़कर भाजपा की आधिकारिक उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी, उन्हें भी मेयर गौतम ने खुलेआम गिफ्ट देकर सम्मानित किया।
सूत्रों के मुताबिक, इस सूची में दो नाम खासतौर पर चर्चा में हैं- पूर्व पार्षद मुनेंद्र बंटू और राजू मिश्रा। दोनों ने पिछले चुनाव में भाजपा के उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में उतरकर पार्टी की मुश्किलें बढ़ाई थीं। इनमें से राजू मिश्रा तो भाजपा कैंट विधायक संजीव अग्रवाल के भांजे प्रांजल गर्ग के खिलाफ चुनाव लड़े थे, लेकिन उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा। इनके अलावा अजय चौहान भी बगावत करके चुनाव लड़े थे।
भाजपा के नियमों के अनुसार, कोई भी नेता अगर पार्टी की अधिकृत उम्मीदवारी के खिलाफ चुनाव लड़ता है तो उसे छह साल के लिए निष्कासित कर दिया जाता है। लेकिन बरेली भाजपा में इस अनुशासन को नजरअंदाज करते हुए इन नेताओं को न केवल पार्टी में सक्रिय रखा गया, बल्कि अब अजय चौहान को तो पहले ही महानगर कार्यालय मंत्री का पद दिया गया था। अब मेयर गौतम ने मिश्रा और बंटू को सूटकेस और लिफाफा देकर एक तरह से पुरस्कृत कर दिया है।

पहले भी विवादों में रहे हैं मेयर
यह पहला मौका नहीं है जब मेयर उमेश गौतम विवादों में आए हों। इससे पहले भी वे कई बार पार्टी और प्रशासन दोनों को असहज कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने जगद्गुरु रामभद्राचार्य के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने वाले मौलाना शहाबुद्दीन की पुस्तक का विमोचन किया था। उस घटना ने भाजपा को भारी फजीहत का सामना करवाया था। अब दीपावली पर ‘गिफ्ट वितरण’ का यह मामला पार्टी के भीतर नई सिरदर्दी बन गया है।

बरेली में आम लोगों और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच इस कार्यक्रम को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं। कई लोगों का कहना है कि दीपावली पर सौगात देने में कोई बुराई नहीं, लेकिन जिस तरह से मेयर ने इसे एक राजनीतिक संदेश में बदल दिया, उससे पार्टी की छवि पर असर पड़ा है। शहर में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर बगावती नेताओं को क्यों सम्मानित किया गया? क्या यह पार्टी अनुशासन की खुली अनदेखी नहीं है?
कुछ कार्यकर्ताओं ने यह भी आरोप लगाया है कि यह पूरा आयोजन मेयर की राजनीतिक छवि चमकाने का प्रयास है। बरेली में नगर निकाय चुनाव के बाद से ही उमेश गौतम और पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं के बीच मनमुटाव की खबरें आती रही हैं। अब यह कार्यक्रम उस अंतर्विरोध को और गहरा करता दिख रहा है।

खर्च को लेकर भी उठे सवाल
सूत्रों के मुताबिक, मेयर उमेश गौतम ने इस आयोजन पर लाखों रुपये खर्च किए। इतने महंगे सूटकेस और नकदी लिफाफों का हिसाब कहां से आया, यह अब बड़ा सवाल बन गया है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अगर मेयर ने यह राशि अपनी व्यक्तिगत आय से दी है तो उन्हें इसे वर्ष 2025-26 के आयकर विवरण में शामिल करना होगा। अन्यथा यह मामला टैक्स चोरी के दायरे में आ सकता है।
विपक्षी दलों ने भी अब इस पर उंगली उठानी शुरू कर दी है। कांग्रेस और सपा नेताओं का कहना है कि भाजपा जिन मुद्दों पर ईमानदारी और पारदर्शिता की बात करती है, वही उसके अपने मेयर की कार्यशैली में नजर नहीं आती।

भाजपा संगठन की चुप्पी
सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि अभी तक भाजपा संगठन की ओर से इस मामले पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। पार्टी के कुछ स्थानीय नेताओं ने इसे “व्यक्तिगत कार्यक्रम” बताकर पल्ला झाड़ लिया, जबकि कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी अंदरखाने इसे “अनुशासनहीनता” मान रहे हैं।
सूत्र बताते हैं कि प्रदेश नेतृत्व ने भी इस पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी है। अगर यह साबित हुआ कि कार्यक्रम में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को सम्मानित किया गया है, तो मेयर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।

शहर की सियासत में नया विवाद
दीपावली का यह आयोजन अब बरेली की राजनीति में नया विवाद बन गया है। मेयर उमेश गौतम के समर्थक इसे “अपनापन दिखाने की परंपरा” बता रहे हैं, जबकि उनके विरोधी इसे “पार्टी अनुशासन की धज्जियां उड़ाने” वाला कदम कह रहे हैं।
बहरहाल, भाजपा की नगर इकाई में इस कार्यक्रम ने नई खाई खोल दी है। एक तरफ वह धड़ा है जो मेयर की कार्यशैली से असहमत है, दूसरी तरफ उनके समर्थक हैं जो इसे “मेयर की उदारता” बताते हैं।
लेकिन सवाल अब भी वही है- क्या दीपावली के उपहारों के जरिए मेयर ने राजनीतिक निष्ठा खरीदी है या सचमुच यह सिर्फ शुभकामनाओं का प्रतीक था? बरेली की गलियों और राजनीतिक हलकों में यही चर्चा इन दिनों सबसे ज्यादा हो रही है।
मेयर उमेश गौतम की यह पहल, चाहे उनकी मंशा कुछ भी रही हो, भाजपा के भीतर असहजता और असंतोष की एक नई लकीर जरूर खींच गई है जिसके निशान शायद अगले चुनाव तक बने रहेंगे।

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